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खेल से मालामाल झारखंड: लेकिन नहीं मिलती सुविधाएं, खिलाड़ी बिता रहे ऐसी जिंदगी

बहुत सारे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होने अभाव के कारण मैदान छोड़ दिया और ज़िंदगी की गाड़ी चलाने के लिए सब्जी, मज़दूरी और हड़िया तक बेचने को मजबूर होना पड़ा। ऐसी ही एक राष्ट्रीय स्तर की कराटे खिलाड़ी हैं विमला मुंडा।

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Published on: 14 Oct 2020 11:02 AM GMT
खेल से मालामाल झारखंड: लेकिन नहीं मिलती सुविधाएं, खिलाड़ी बिता रहे ऐसी जिंदगी
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खेल से मालामाल झारखंड: लेकिन नहीं मिलती सुविधाएं, खिलाड़ी बिता रहे ऐसी जिंदगी

झारखंड: झारखंड खेल और खिलाड़ियों के मामले में धनी प्रदेश है। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी से लेकर ओलंपियन तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, भारतीय हॉकी टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा समेत कई नामचीन खिलाड़ी देश को दिए हैं। सुविधाओं और संसाधनों की कमी के बावजूद इन खिलाड़ियों ने झारखंड और देश का नाम रौशन किया है।

कराटे खिलाड़ी हैं विमला मुंडा

हालांकि, बहुत सारे ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होने अभाव के कारण मैदान छोड़ दिया और ज़िंदगी की गाड़ी चलाने के लिए सब्जी, मज़दूरी और हड़िया तक बेचने को मजबूर होना पड़ा। ऐसी ही एक राष्ट्रीय स्तर की कराटे खिलाड़ी हैं विमला मुंडा। रांची से महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी पर कराटे चैंपियन हड़िया यानी राइस बियर बेचने को मजबूर हैं।

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हड़िया बेचने को मजबूर कराटे चैंपियन

मार्शल आर्ट की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी विमला मुंडा हड़िया यानी राइस बीयर बेचकर घर-परिवार चला रही हैं। कहती हैं कि, हमारे पास खेती-बाड़ी के अलावा हड़िया ही आमदनी का एक ज़रिया है। 2011 में आयोजित नेशनल गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने वाली विमला मुंडा की मानें तो उनके पास मेडल रखने के लिए भी जगह नहीं है। कई मेडल हैं जो रख-रखाव के अभाव में टूट चुके हैं।

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सरकार पर नाराज़गी का इज़हार करते हुए कहती हैं कि, झारखंड के किसी भी सरकार ने खेल और खिलाड़ियों का भला नहीं किया है। साल 2019 में खिलाड़ियों की सरकारी नौकरी में सीधी नियुक्ति की बात सामने आई लेकिन उसका भी लाभ खिलाड़ियों को नहीं मिला। संसाधनों के अभाव और सरकारी उदासीनता के कारण खिलाड़ी आज खेल से दूर होते जा रहे हैं।

मज़दूरी कर बेटी को पढ़ाया लेकिन सरकारी मदद नहीं मिली

मार्शल आर्ट की चैंपियन विमला मुंडा की मां सुंगरिन मुंडा कहती हैं कि, रेज़ा-कुली का काम कर बाल-बच्चों को पढ़ाया-लिखाया। सरकार से उम्मीद थी कि, बेटी के बेहतर प्रदर्शन की बुनियाद पर कुछ मदद मिलेगी लेकिन सरकार आंखे मूंदे रही। मजबूर होकर हड़िया बेचना पड़ रहा है। आमदनी का कोई ज़रिया नहीं होने की वजह से घर-परिवार चलाना काफी मुश्किल होता है।

झारखंड सरकार की खेल नीति

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार आने के बाद नई खेल नीति तैयार की जा रही है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद खेल नीति को अमली जामा पहनाने की काग़ज़ी प्रक्रिया चल रही है। नई खेल नीति में झारखंड में खेले जाने वाले खेल और स्थानीय प्रतिभाओं को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की जाएगी। नई खेल नीति के तहत एक पोर्टल तैयार किया जाएगा जिसमें राज्यभर के खिलाड़ियों का डाटाबेस तैयार किया जाएगा। नई खेल नीति में खिलाड़ियों को स्कॉलरशिप देने के साथ ही पूर्व खिलाड़ियों को पेंशन का लाभ दिया जाएगा।

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झारखंड की विडंबना

झारखंड की राजधानी रांची में विश्व स्तरीय खेल गांव है। बाकी ज़िलों में भी खेल और खिलाड़ियों के लिए संसाधनों की व्यवस्था है। हालांकि, खेल संघों में राजनीति और संसाधनों के सुदुपयोग नहीं होने के कारण खिलाड़ी खेल से दूर होते जा रहे हैं। रांची के खेल गांव में रख-रखाव ठीक नहीं होने की वजह से खिलाड़ियों को प्रैक्टिस में दुश्वारी का सामना करना पड़ता है। हालांकि, नई हेमंत सोरेन सरकार ने नई खेल नीति के साथ ही खेल और खिलाड़ियों को लेकर दिलचस्पी दिखाई है।

-रांची से शाहनवाज़ की रिपोर्ट

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