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John Saunders Murder History: कैसे गलती से हो गई थी जॉन सॉन्डर्स की हत्या, इतिहास में हैं अब भी दर्ज

John Saunders Murder History: सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह के समूह ने पोस्टर और पर्चे लगाए, जिनमें लिखा था: "आज दुनिया ने देखा है कि भारत के लोग बेजान नहीं हैं; उनका खून ठंडा नहीं हुआ है।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 17 Dec 2024 4:21 PM IST
John Saunders Murder Case 1927 17th December History
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John Saunders Murder Case 1927 17th December History

John Saunders Murder History: जॉन सॉन्डर्स की हत्या भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और साहसिक अध्याय है। यह घटना भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों के साहस और स्वतंत्रता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। आइए, इस घटना को विस्तार से समझते हैं।

1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था। जनरल डायर द्वारा किए गए इस नरसंहार ने लाखों भारतीयों के मन में ब्रिटिश सरकार के प्रति गुस्सा भर दिया।इस घटना ने भगत सिंह के मन में स्वतंत्रता संग्राम की आग जलाई। उन्होंने महसूस किया कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए हिंसक क्रांति आवश्यक हो सकती है।


8 नवंबर, 1927 को ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक और संवैधानिक सुधारों की जांच के लिए एक कमीशन का गठन किया, जिसे ‘साइमन कमीशन’ के नाम से जाना गया। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे और इसमें सात ब्रिटिश सांसद शामिल थे। इसका उद्देश्य मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों की समीक्षा करना था। ये सुधार, जिन्हें मोंट-फोर्ड सुधार भी कहा जाता है, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत को स्वराज की दिशा में ले जाने के लिए प्रस्तावित किए गए थे। सुधारों का नाम भारत के तत्कालीन राज्य सचिव एडविन सेमुअल मोंटेग्यू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम पर पड़ा था।

साइमन कमीशन 3 फरवरी, 1928 को भारत पहुंचा। लेकिन इसके आगमन से पहले ही इसका विरोध शुरू हो चुका था। भारतीय जनता का गुस्सा इस बात पर था कि भारतीय राजनीतिक और संवैधानिक सुधारों के लिए गठित इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य शामिल नहीं था। इस कारण कांग्रेस और मुस्लिम लीग सहित कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने एकजुट होकर इसका विरोध किया।

साइमन कमीशन ने ब्रिटिश सरकार को जो सुझाव दिए, उनमें मुख्य बिंदु इस प्रकार थे

भारत में एक संघ की स्थापना हो, जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांतों और देशी रियासतों को शामिल किया जाए।

केंद्र में उत्तरदायी शासन की व्यवस्था लागू की जाए। वायसराय और प्रांतीय गवर्नरों को अतिरिक्त शक्तियां प्रदान की जाएं।

एक लचीले संविधान का निर्माण किया जाए।

साइमन कमीशन का भारत में हर ओर विरोध हुआ। सभी वर्ग और समूह, चाहे वे कांग्रेस के सदस्य हों, मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि हों, या स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी, सभी ने इसे अस्वीकार किया। इसके विरोध ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक तीव्र बना दिया और देश में एकता की भावना को मजबूत किया।


30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक बड़ा प्रदर्शन हो रहा था। उस समय पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट भारी पुलिस बल के साथ कानून-व्यवस्था बनाए रखने में तैनात थे। जब प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ी और माहौल गरमाया, तो स्कॉट ने अपने अधिकारियों को भीड़ पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। इस लाठीचार्ज के दौरान एक लाठी लाला लाजपत राय के सिर पर लगी, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। 17 दिन बाद 17 नवंबर , 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। पंडित जवाहर लाल नेहरू उस भीड़ में शामिल थे, जो लखनऊ में कमीशन का विरोध कर रही थी। भीड़ पर हुए लाठीचार्ज में नेहरू भी घायल हो गए और गोविंद वल्लभ पंत हमेशा के लिए अपंग हो गए।

लाला लाजपत राय ने अपने अंतिम भाषण में कहा था

"मेरे शरीर पर पड़ी हर लाठी, ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में एक कील साबित होगी।"

सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह के समूह ने पोस्टर और पर्चे लगाए, जिनमें लिखा था: "आज दुनिया ने देखा है कि भारत के लोग बेजान नहीं हैं; उनका खून ठंडा नहीं हुआ है। वे देश के सम्मान के लिए अपनी जान दे सकते हैं.। हमें एक आदमी को मारने का दुख है। लेकिन यह आदमी एक क्रूर, घृणित और अन्यायपूर्ण व्यवस्था का हिस्सा था और उसे मारना ज़रूरी था। यह सरकार दुनिया की सबसे दमनकारी सरकार है।"

लाला लाजपत राय की मौत ने क्रांतिकारियों के भीतर गहरा आक्रोश पैदा कर दिया था। उन्हें यकीन था कि यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार द्वारा योजनाबद्ध हत्या थी। क्रांतिकारियों ने तय किया कि इस अन्याय का बदला लिया जाएगा। 10 दिसंबर, 1928 की रात को एक गुप्त बैठक आयोजित की गई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को गोली मारकर लाला जी की मौत का बदला लिया जाएगा। यह कदम न केवल क्रांतिकारी भावना का प्रदर्शन था, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत को यह संदेश देने के लिए भी था कि अब हर भारतीय के खून का हिसाब लिया जाएगा।


इस बैठक में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल, दुर्गा भाभी और अन्य प्रमुख क्रांतिकारी शामिल थे। चर्चा के दौरान भगत सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि स्कॉट को गोली मारने का कार्य वे स्वयं करेंगे। इसके बाद योजना को अंतिम रूप दिया गया और इस मिशन के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल और चंद्रशेखर आजाद को चुना गया।

यह बैठक केवल बदले की कार्रवाई तय करने के लिए नहीं थी, बल्कि इसके पीछे उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को यह बताना भी था कि अब भारत के स्वतंत्रता सेनानी अन्याय के खिलाफ खामोश नहीं बैठेंगे। इस फैसले ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक नए अध्याय की शुरुआत की।

7 दिन बाद 17 दिसंबर को गोली मारने की तारीख तय की गई थी। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सब स्‍कॉट के दफ्तर के बाहर अपनी-अपनी पोजीशन लेकर स्‍कॉट के बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे। तभी सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स बाहर निकला और अपनी मोटरसाइकिल स्‍टार्ट करने लगा। राजगुरु के हाथों में बंदूक थी। वो सॉन्डर्स के ज्‍यादा नजदीक थे। तभी भगत सिंह को लगा कि शायद यह स्‍कॉट नहीं है। उन्‍होंने इशारे से राजगुरु को बताना चाहा, लेकिन तब तक राजगुरु गोली चला चुके थे। गोली सीधा स्‍कॉट के सिर पर लगी और वो वहीं ढेर हो गया। तभी भगत सिंह ने भी आगे बढ़कर स्‍कॉट के सीने पर दनादन कई राउंड फायर किए।


हत्या के बाद भगत सिंह और राजगुरु वहां से भागे।रास्ते में चंद्रशेखर आज़ाद ने एक पुलिसकर्मी को रोका, जिससे भगत सिंह और राजगुरु सुरक्षित निकल सके।भगत सिंह ने अंग्रेजी कपड़े पहने और बाल कटवा लिए ताकि उनकी पहचान न हो सके।

हत्या का उद्देश्य- जॉन सॉन्डर्स की हत्या ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक चेतावनी थी।यह घटना दिखाती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल अहिंसा तक सीमित नहीं था, बल्कि हिंसक क्रांति भी इसका हिस्सा थी।भगत सिंह और उनके साथियों का मानना था कि इस तरह की कार्रवाई ब्रिटिश सरकार को जगाने के लिए आवश्यक थी।

घटना के बाद क्या हुआ

हत्या के बाद भगत सिंह और उनके साथी कुछ समय तक छिपे रहे।8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली असेंबली में बम फेंका।उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाना था।इस घटना के बाद उन्होंने स्वयं को गिरफ्तार करवा लिया।

भगत सिंह ने अदालत में स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई ब्रिटिश सरकार से थी, न कि ब्रिटिश जनता से।उन्होंने अपने कार्यों को ‘क्रांति का आह्वान’ बताया।भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जॉन सॉन्डर्स की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई। 23 मार्च, 1931 को उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई।


23 मार्च, 1931 को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने यह कहा कि हालांकि पार्टी "किसी भी प्रकार की राजनीतिक हिंसा" का विरोध करती है, फिर भी वह तीनों क्रांतिकारियों की ‘वीरता और बलिदान’ की सराहना करती है। कांग्रेस ने यह भी माना कि यह फांसी "निरंकुश प्रतिशोध और राष्ट्र की सर्वसम्मति की अवहेलना" का स्पष्ट उदाहरण थी।

जॉन सॉन्डर्स की हत्या भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक अध्याय है। यह घटना भगत सिंह और उनके साथियों के साहस, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक है।भगत सिंह का उद्देश्य केवल ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देना नहीं था, बल्कि भारतीयों को यह सिखाना था कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना आवश्यक है। आज भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की कुर्बानी को पूरे देश में श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। उनके बलिदान ने भारत की आजादी की नींव को मजबूत किया और लाखों लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।



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