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Bihar: सीमांचल राज्य की बात बेकार, PMJVK से भाजपा लगाएगी अपनी नैया पार ! जानिए क्यों और कैसा रास्ता

Bihar: पिछले दिनों खूब ताकत से चर्चा उठी कि बिहार के चार सीमावर्ती जिलों किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया को पश्चिम बंगला के कूच बिहार।

Shishir Kumar Sinha
Published on: 15 Sept 2022 4:28 PM IST
Bihar News
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Bihar Rajya (social media)

Bihar: पिछले दिनों खूब ताकत से चर्चा उठी कि बिहार के चार सीमावर्ती जिलों किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया को पश्चिम बंगला के कूच बिहार, अलीपुरद्वार, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, दिनाजपुर और मालदा को मिलाकर केंद्र सरकार 'सीमांचल केंद्र शासित प्रदेश' बनाएगी। जितनी तेज चर्चा, उतनी ही ताकत के साथ भारतीय जनता पार्टी ने इसका खंडन किया। वाजिब भी था। भाजपा कम-से-कम बांग्लादेश से सटे और रोहिंग्या प्रभावित जिलों को मिलाकर धर्म के आधार पर कोई राज्य या केंद्र शासित प्रदेश तो किसी हालत में नहीं बनाएगी।

तो क्या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद देश के गृह मंत्री बने देश के दूसरे सबसे ताकतवर नेता अमित शाह यूं ही सीमांचल के दौरे पर आ रहे? शाह आ रहे हैं और उनके इस दौरे की तैयारी पहले ही हो चुकी है। केंद्र सरकार ने 'अल्पसंख्यक बहुल' क्षेत्रों के लिए एक अमोघ अस्त्र छोड़ा है, जिसके फायदे को दिखाने के लिए शाह आ रहे हैं। कांग्रेस की पुरानी योजना में नई जान फूंक कर भाजपा अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में अपनी जमीन तैयार करने जा रही है। इसमें किशनगंज को छोड़ सीमांचल के तीन जिले ही नहीं होंगे, बल्कि राज्य के 13 जिलों के साथ देश के कुल 33 प्रदेशों (केंद्र शासित समेत) के 308 जिले दायरे में आएंगे।

योजना का नाम प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम, यानी PMJVK है। योजना का यह नाम वर्तमान केंद्र सरकार ने दिया है, हालांकि इसकी शुरुआत 1987 में 41 जिलों के साथ हुई थी। जिस उदासीन गति से योजना चल रही थी, उसमें मंत्रालय इसे 14वें वित्त आयोग के शेष समय में वित्तीय वर्ष 2019-20 तक खत्म करने की तैयारी में था। लेकिन, उसी वित्तीय वर्ष में इस योजना का नाम प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम किया गया और अब न केवल इसका दायरा बढ़ा दिया गया है, बल्कि 2025-26 तक इसकी मियाद भी बढ़ा दी गई है।

1987 में देशभर के अल्पसंख्यक केंद्रित 41 जिलों को चुनकर वहां केंद्र प्रायोजित कुछ विशेष योजनाओं से विकास की रोशनी पहुंचाने का प्रण लिया गया था। अल्पसंख्यक, यानी मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध, पारसी और जैन की जनसंख्या के आधार पर जिलों का चयन हुआ था। 1971 की जनसंख्या में जिन जिलों में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 प्रतिशत से अधिक थी, उनका चयन हुआ था। 2008-09 में मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (MsDP) के नाम से इसमें जिलों की संख्या 90 करते हुए काम को बढ़ाने की बात कही गई। 31 मार्च 2018 तक इस प्रोग्राम के तहत इन क्षेत्रों में विकास करना था।

जब इस दायरे को बढ़ाने के बावजूद लक्ष्य हासिल नहीं हुआ तो तत्कालीन सरकार ने वित्तीय वर्ष 2013-14 में इसे विकेंद्रीकृत कर दिया, मतलब जिलों के हिसाब से नहीं बल्कि प्रखंड, शहर और गांव के हिसाब से विकास का फॉर्मूला जारी हुआ। हालांकि, दस्तावेजों में तय यही था कि 31 मार्च 2018 तक ही इसकी मियाद रहेगी। इस बीच, मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आ गई। MsDP कोई बहु-प्रचारित योजना नहीं थी, फिर भी अल्पसंख्यक राजनीति करने वालों को डर था कि इसे बंद कर दिया जाएगा। जब योजना की मियाद खत्म होने का समय आ रहा था तो सवाल उठने शुरू हुए।

भाजपा ने अल्पसंख्यकों को अपना दुश्मन बताने वालों का मुंह बंद करने के लिए वित्तीय वर्ष 2019-20 से प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK) के नए रूप में इसे आगे बढ़ा दिया। न केवल मियाद बढ़ी, बल्कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे 90 जिलों से बढ़ाकर 308 जिलों तक पहुंचा दिया। केंद्र में मजबूती से सरकार आने के बाद बिहार में भी मजबूत सरकार बनी तो एक बार फिर योजना की समीक्षा हुई और अब पिछले दिनों केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने 2022-23 से लागू करने के लिए PMJVK की संशोधित गाइडलाइन जारी कर दी है। इसके साथ ही योजना को 15वें वित्त आयोग से जोड़ते हुए 2025-26 तक विस्तारित कर दिया है।

इस समय यह मंत्रालय स्मृति ईरानी के पास है और इसमें राज्यमंत्री भी मुस्लिम नहीं हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के निर्देशों के मद्देनजर PMJVK को बहुत साफ और दूरगामी प्रभाव वाला बनाया गया है। गृह मंत्री अमित शाह के 23 सितंबर को बिहार में होने वाले कार्यक्रम की तैयारी कर रहे भाजपा के वरीय नेताओं की मानें तो सीमांचल UT को लेकर कोई चर्चा पार्टी के अंदर नहीं हुई, लेकिन PMJVK की बात जरूर हो रही है। कई वरीय नेताओं ने PMJVK की बात की तो यह भी अंदरूनी अफवाह बताई कि अल्पसंख्यकों को कांग्रेस सरकार से मिली यह सौगात अब भाजपा हटाने वाली है। लेकिन, जब अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के संशोधित गाइडलाइन को ध्यान से देखें तो कहानी कुछ और नजर आती है।

किशनगंज का नाम संशोधित सूची से गायब होना बन सकता है मुद्दा, दरअसल PMJVK को अब बहुत ताकतवर और विकास केंद्रित बना दिया गया है। आबादी को 20 की जगह 25 प्रतिशत तो किया गया है, लेकिन इसके साथ ही पिछड़ेपन के फॉर्मूले को जोड़ दिया गया है। शिक्षा और खासकर महिला शिक्षा, श्रम भागीदारी दर में भी विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी को देखने वाले सामाजिक-आर्थिक निर्धारक तय किए गए हैं। इसी तरह, हालत में सुधार को सुनिश्चित करने के लिए जो मानक निर्धारित किए गए हैं, उनमें यह देखा जाएगा कि पक्का मकान, स्वच्छ पेयजल, बिजली और घर के अंदर शौचालय का प्रतिशत इन चिह्नित क्षेत्रों में कितना है?

नई व्यवस्था में अल्पसंख्यक बहुल उन शहरों को भी फायदा मिलेगा, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा पिछड़े होंगे। सूत्रों की मानें तो भाजपा इस योजना में हुए बदलावों को सीमांचल में विशेष रूप से प्रसारित करेगी, क्योंकि बिहार के चयनित 13 में से तीन जिले कटिहार, पूर्णिया और अररिया यहीं हैं। बाकी विशेषताओं के साथ इसमें यह भी जोड़ा गया है कि विकास के नजरिए से जो भी इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़े हों या सुविधाएं दी जाएं, उनमें से 33 से 40 प्रतिशत महिलाओं पर केंद्रित हों। मतलब, अल्पसंख्यक वर्ग में भी महिलाओं को लेकर PMJVK में बहुत कुछ जोड़ा गया है। स्किल डेवलपमेंट पर फोकस रखा गया है।

सीमांचल के तीन जिलों के अलावा PMJVK का फायदा राज्य के सीतामढ़ी, शेखपुरा, नवादा, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, जमुई, गया, बेगूसराय, बांका और औरंगाबाद जिले के अल्पसंख्यक बहुल गांवों, प्रखंडों, शहरों, जिला मुख्यालयों को भी मिलेगा। PMJVK के दायरे में आने वाले जिलों की सूची में किशनगंज का गायब रहना चौंका रहा है, हालांकि इस बारे में पूछने पर भी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह किशनगंज को लेकर क्या बोलते हैं, इसपर भी सभी का ध्यान रहेगा और संभव है कि यह बड़ा मुद्दा बन जाए।



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Prashant Dixit

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