TRENDING TAGS :
JPC: क्या होती है ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी, अडानी मामले में जांच पर क्यों अड़ा है विपक्ष?..जिसने भी की गठित उसकी गई सरकार
Joint Parliamentary Committee:अडानी मामले में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां सरकार से जेपीसी से जांच की मांग कर रही है। चलिए जानते हैं क्या होता है ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी..
Joint Parliamentary Committee: अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद बिजनेसमैन गौतम अडानी और उनकी कंपनियां संकट में घिरती चली गई। अडानी समूह के शेयरों में सुनामी के बाद अब संसद में बवाल मचा है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां लगातार संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) यानी JPC का गठन कर इस मामले की जांच कराने की मांग पर अड़ी है। मोदी सरकार ने इसे खारिज कर दिया है। अडानी मसले पर बजट सत्र में दो दिन संसद की कार्रवाई ठप रही। तो चलिए जानते हैं जेपीसी होती क्या है और अब तक गठित मामलों का क्या परिणाम रहा?
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन 1987 से अब तक कुल 6 बार हुआ। चार बार कांग्रेस (Congress) शासित सरकार में और दो बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार में जेपीसी का गठन हुआ। मगर, दिलचस्प बात ये है कि जिन सरकारों में जेपीसी गठित हुई वो सरकारें दोबारा फिर लौटकर नहीं आईं। देश में राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जेपीसी का गठन अपने कार्यकाल में किया था। ये सरकारें दोबारा दोबारा सत्ता में फिर वापस नहीं आई।
क्या होता है जेपीसी?
संसदीय नियमों के अनुसार, दो समिति का प्रावधान है। पहला, स्थाई समिति (Standing Committee) और दूसरा अस्थाई समिति (Temporary Committee)। स्थाई समिति या स्टैंडिंग कमिटी पूरे समय काम करती है। ये सरकार के वित्त तथा अन्य मामलों की निगरानी करती है। इसी तरह, अस्थाई समिति किसी विशेष मुद्दे पर बनाई जाती है। जिसके तहत समिति रिपोर्ट बनाकर सदन में पेश करती है। अस्थाई समिति के तहत ही संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन होता है। JPC के पास सबूत जुटाने के असीमित अधिकार होते हैं। समिति के निर्देश को नकारना यानी संसद की अवमानना माना जाता है।
किसे है जेपीसी बनाने का अधिकार?
अब सवाल उठता है कि जेपीसी बनने का अधिकार किसे है? आपको बता दें, किसी भी मुद्दे पर JPC बनाने की सिफारिश केंद्र सरकार करती है। सिफारिश के बाद लोकसभा में एक प्रस्ताव भी पास कराया जाता है। जिसके इसके बाद संसद के दोनों सदन अर्थात लोकसभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha) मिलकर जेपीसी का गठन करता है। वर्तमान समय में अडानी मसले पर अगर जेपीसी का गठन किया जाता है तो उसकी सिफारिश केंद्र की मोदी सरकार को करनी होगी। जिसके बाद नियमानुसार कार्यवाही होगी।
...तो इसलिए कहते हैं JPC
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में लोकसभा सांसदों की संख्या राज्यसभा की दोगुनी होती है। संसद के दोनों सदन के मेंबर इसमें शामिल होते हैं। इसी वजह से इसे संयुक्त संसदीय समिति कहा जाता है। जेपीसी में एक अध्यक्ष भी होता है। जिसका फैसला सर्वमान्य माना जाता है। लेकिन यहां भी एक दिलचस्प बात है, कि अमूमन सत्ताधारी पार्टी के सांसद ही इसके अध्यक्ष बनते रहे हैं।
आखिर क्यों होती है जेपीसी की मांग?
दरअसल, जेपीसी में सभी दलों के सांसद होते हैं। ऐसे में समिति से उम्मीद रहती है कि निष्पक्ष रिपोर्ट सामने आएगी। इसके पीछे तर्क ये है कि अगर जेपीसी के अधिकांश सदस्य किसी मामले को दबाने की कोशिश करते भी हैं, तो अल्पमत के सदस्य अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, बोफोर्स मामले (Bofors Case) में AIADMK के सांसद ने जांच के खिलाफ आपत्ति दर्ज कराया था।
क्या कहते हैं जानकार?
अडानी मामले में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी (Congress MP Manish Tewari) का कहना है कि, इसमें शेयर बाजार (Share Market) और सरकारी बैंकों के कर्ज से जुड़ा मामला है। ऐसे में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को जो अधिकार प्राप्त हैं, उससे इस मामले में कई सवालों के जवाब मिल जाएंगे। बता दें, मनीष तिवारी कांग्रेस सांसद होने के साथ-साथ वरिष्ठ वकील भी हैं।
कब-कब बना जेपीसी?
- बोफोर्स घोटाला (Bofors scandal)
- हर्षद मेहता केस (Harshad Mehta scam)
- केतन पारेख केस (Ketan Parekh Scam Case)
- सॉफ्ट ड्रिंक में पेस्टिसाइड का मामला (Pesticides in soft drinks)
- 2 जी स्पेक्ट्रम केस (2G SCAM)
- वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाला (VVIP chopper scam)
कई बार जेपीसी की मांग सरकार ने ठुकराई
हालांकि, कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हुई जब घपले-घोटाले के मद्देनजर जेपीसी की मांग हुई। मगर, सरकार ने जेपीसी से जांच कराने की मांग ठुकरा दिया। इनमें ताबूत घोटाला, राफेल मामला तथा न्यूक्लियर डील प्रमुख मामला है। यूपीए की मनमोहन सरकार ने महाराष्ट्र के आदर्श सोसायटी घोटाला की जांच भी जेपीसी से कराने से साफ इनकार कर दिया था।