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आप को झटके पर झटके, अभी और बढ़ सकती हैं महत्वाकांक्षी केजरीवाल की मुश्किलें

लाभ के दोहरे पद को लेकर आप के 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका दाखिल की गई है। विधायकों पर कानून का उल्लंघन कर‘लाभ का पद’ लेने का आरोप है। मौजूदा हालात को देखते हुए भविष्य में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।

zafar
Published on: 27 April 2017 5:09 PM IST
आप को झटके पर झटके, अभी और बढ़ सकती हैं महत्वाकांक्षी केजरीवाल की मुश्किलें
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Vinod Kapoor

लखनऊ: दो साल पहले दिल्ली के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से आई आम आदमी पार्टी ..आप..देखते देखते इस हाल में पहुंच जाएगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था। ईमानदारी का चेहरा लेकर जनता के सामने गई आप को मतदाताओं ने 70 में 67 सीटें दे दी थीं।

आप की आंधी में किरण बेदी तक धाराशायी हो गई थीं। लेकिन जनता की उम्मीदें देखते देखते धूमिल होने लगीं और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल में उन्हें आम नेता जैसा चेहरा ही दिखने लगा। या यों कहें कि उससे भी ज्यादा गंदा और अवसरवादी।

अन्ना आंदोलन से उपजी महत्वाकांक्षा

लोकपाल की नियुक्ति को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर चले अन्ना हजारे के आंदोलन और पूरे देश में मिले इसे समर्थन को लेकर ये लगने लगा कि देश में अब सब कुछ बदलने वाला है। आप के नेता उसी आंदोलन की उपज थे। चाहे वो बड़ी सरकारी नौकरी छोड़ कर आए अरविंद केजरीवाल हों या दिल्ली के अब उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, संगठन से जुड़े संजय सिंह या दिलीप पांडे। देश की जनता ने इन्हें अन्ना के आंदोलन के कारण ही पहचाना।

बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण केजरीवाल ने अपनी दिल्ली पर ध्यान देना कम कर दिया। लोकसभा के 2014 के चुनाव में आप को पंजाब से पांच सीटें मिली थीं लिहाजा पार्टी को लगने लगा कि विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार बन सकती है। पिछले फरवरी मार्च में पांच राज्यों के चुनाव में आप पंजाब और गोवा में पूरे दमखम के साथ उतरी। पंजाब में तो पार्टी सरकार बनाने की तैयारी में थी। मतदाताओं के बीच ये संदेश दिया गया कि यदि पार्टी जीती तो केजरीवाल सीएम होंगे और दिल्ली का भार मनीष सिसोदिया पर छोड़ दिया जाएगा लेकिन पंजाब के मतदाताओं ने मात्र बीस सीटें देकर आप को नकार दिया। गोवा में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला।

आप को झटके

आप को एमसीडी चुनाव के पहले दिल्ली में एक उपचुनाव से भी दो चार होना पडा। रजौरी गार्डन के उपचुनाव में बीजेपी ने पार्टी से ये सीट छीन ली। रही सही कसर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव ने पूरी कर दी। केजरीवाल अपनी हार से चेते नहीं बल्कि ये कहा कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी कर बीजेपी ने चुनाव जीता।

इस शिकस्त के बाद जैसे लगता है सीएम अरविंद केजरीवाल की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हार के बाद पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रेसिडेंट दिलीप पांडे ने इस्तीफा दे दिया तो दूसरे दिन 27 अप्रैल को कई अन्य नेताओं के इस्तीफे आ गए। इसके अलावा एक नई समस्या दूर खड़े उन्हें मुंह चिढ़ा रही है। यह मामला है आप के 21 विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की याचिका का।

लाभ के दोहरे पद को लेकर आप के 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका दाखिल की गई है। विधायकों पर कानून का उल्लंघन कर‘लाभ का पद’ लेने का आरोप है। अब तक आयोग इस मामले में राष्ट्रपति को अपने रुख से अवगत करा चुका होता, लेकिन ईवीएम विवाद के कारण इस प्रक्रिया में देर हो गई।

अब मौजूदा हालात को देखते हुए भविष्य में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।

अयोग्य घोषित करने पर क्या होगी स्थिति

जानकार मानते हैं कि यदि चुनाव आयोग आप के इन 21 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश कर देता है, तो ऐसी स्थिति में केजरीवाल को एक और चुनाव से गुजरना पड़ेगा। हालांकि, इस चुनाव से अलावा भी अरविंद केजरीवाल के पास बहुमत होगा। लेकिन उपचुनाव मे अगर आप हारती है तो उस पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफे का दबाब बढ़ जाएगा। हालांकि राजनीति में अब नीति होती नैतिकता बिल्कुल भी नहीं लेकिन केजरीवाल नैतिकता की राजनीति का दावा करते हैं इसलिए उन पर अपनी सरकार को बचाने या खो देने का दबाब होगा।

अब ताजा खबर ये कि आप के कई विधायक अपना भविष्य देखते हुए बीजेपी के सम्पर्क में हैं जबकि आप ये आरोप लगा रही है कि बीजेपी उनके विधायकों को तोड़ना चाहती है। इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि पार्टी का ऐसा कोई मकसद या इरादा नहीं हैं। आप तो केजरीवाल की हरकतों के कारण टूट जायेगी। उसे तोड़ने की जहमत बीजेपी क्यों उठाए। जबकि सच्चाई ये है कि आप के कम से कम बीस विधायक बीजेपी में जाने की लाइन में हैं। लेकिन केंद्र में सत्ता संभाल रही पार्टी देश की जनता को अभी ऐसा कोई संदेश देना नहीं चाहती।

पीएम नरेंद्र मोदी की हर बात पर आलोचना करने वाले अरविंद केजरीवाल ने देश के सामने अपनी विश्वसनीयता खुद कम की जब उन्होंने सीमा पार सेना के सर्जिकज स्ट्राईक पर ही सवाल उठा दिए। संभवत: देश के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका था कि किसी राज्य के सीएम ने सेना के काम पर उंगली उठाई। केजरीवाल की इस बात को लेकर पूरे देश में आलोचना हुई।

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