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Journalist Murder Cases in India: सच दिखाने की सजा सीधे मौत, आखिर भारत का चौथा स्तम्भ इतने खतरे में क्यों है
Journalist Murder Cases in India: 2014 से पत्रकारिता के सिलसिले में मारे गए 15 अन्य पत्रकारों को भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, चुनाव और माओवादी विद्रोह से जुड़ी खबरों पर काम करने के लिए निशाना बनाया गया।
Journalist Murder Cases in India: भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ (fourth piller)माना जाता है, लेकिन पिछले दशक में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और हत्याओं की घटनाओं ने इस पेशे की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस लेख में भारत में हुई प्रमुख पत्रकारों की हत्याओं, उनके कारणों, राजनीतिक संदर्भ और पत्रकारिता की स्थिति पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
- जगेंद्र सिंह(Jagendra Singh (2015) - फ्रीलांस पत्रकार जगेंद्र सिंह की जून 2015 में पुलिस की छापेमारी के दौरान गंभीर रूप से जलने से मृत्यु हो गई।वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से जुड़े अवैध रेत खनन के एक मामले पर काम कर रहे थे। उनकी रिपोर्टिंग ने कई प्रभावशाली लोगों को नाराज कर दिया था।उनकी हत्या में पुलिस और सत्ता से जुड़े लोगों की भूमिका संदिग्ध मानी गई।
- करुण मिश्रा और रंजन राजदेव (karun mishra aur ranajan rajdev) (2016)- उत्तर प्रदेश में 'जनसंदेश टाइम्स' के रिपोर्टर करुण मिश्रा और बिहार में 'हिंदुस्तान' के रिपोर्टर रंजन राजदेव की हत्या कर दी गई।दोनों पत्रकार अवैध खनन गतिविधियों पर काम कर रहे थे। उन्हें मोटरसाइकिल सवारों ने गोली मार दी।स्थानीय माफिया और उनके राजनीतिक संरक्षण ने इन हत्याओं को संभव बनाया।
- गौरी लंकेश (Gauri lankesh) (2017) - वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु स्थित उनके आवास के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई।गौरी लंकेश अपने प्रखर लेखन और दक्षिणपंथी विचारधारा की आलोचना के लिए जानी जाती थीं। उनकी हत्या विचारधारात्मक असहिष्णुता का परिणाम मानी जाती है।इस हत्या का संबंध कथित रूप से एक दक्षिणपंथी संगठन से जोड़ा गया। एसआईटी ने जांच में कुछ व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जो चरमपंथी संगठनों से जुड़े थे।सुप्रीम कोर्ट से पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के आरोपी को अक्टूबर में राहत मिली है। दरअसल, शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ कविता लंकेश की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उनकी बड़ी बहन गौरी लंकेश की हत्या के मामले में आरोपी को जमानत दी गई थी।
- शुजात बुखारी (Shujat Bukhari)(2018):कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और 'राइजिंग कश्मीर' के संपादक शुजात बुखारी की 14 जून, 2018 को श्रीनगर में उनके कार्यालय के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई।उनकी हत्या आतंकवादियों द्वारा की गई, क्योंकि बुखारी कश्मीर में शांति प्रक्रिया और मानवाधिकारों पर लेख लिखते थे।उनकी हत्या कश्मीर में जारी आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता का हिस्सा मानी जाती है।
- संदीप शर्मा (Sandeep Mishra)(2018)--मध्य प्रदेश के भिंड जिले में 26 मार्च,2018 को पत्रकार संदीप शर्मा की ट्रक से कुचलकर हत्या कर दी गई।उन्होंने रेत माफिया और पुलिस के बीच संबंधों को उजागर किया था। उनकी रिपोर्ट्स से कई प्रभावशाली लोग नाराज थे।इस मामले में स्थानीय प्रशासन और माफिया के बीच सांठगांठ की बात सामने आई।
- शुभम मणि त्रिपाठी (Shubham Mani Tripathi)(2020) - जून 2020 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 'कंपू मेल' समाचार पत्र के रिपोर्टर शुभम मणि त्रिपाठी की गोली मारकर हत्या कर दी गई।उन्होंने अवैध रेत खनन के मामलों को उजागर किया था और अपनी जान को खतरे की आशंका जताई थी।यह हत्या माफिया और प्रशासन के बीच गठजोड़ का परिणाम थी।
- रमन कश्यप(Raman Kashyap) (2021)- उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान 3 अक्टूबर, 2021 को पत्रकार रमन कश्यप की वाहन से कुचलकर हत्या कर दी गई।वह घटना की रिपोर्टिंग कर रहे थे, जब भाजपा नेता के काफिले की गाड़ी ने प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों को कुचल दिया।इस घटना में भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री के बेटे का नाम आया, जिससे राजनीतिक विवाद गहराया।
- सुलभ श्रीवास्तव (Sulabh Shrivastav)(2021)- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में 13 जून, 2021 को पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए।उन्होंने शराब माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग की थी और अपनी जान को खतरे की आशंका जताई थी।इस घटना ने राज्य सरकार की माफिया विरोधी नीति पर सवाल खड़े किए।
- सुभाष कुमार महतो (Subhash kumar mehto)(2022) - मई 2022 में बिहार में स्वतंत्र पत्रकार सुभाष कुमार महतो को उनके घर के बाहर चार अज्ञात हत्यारों ने सिर में गोली मार दी।वह रेत माफिया की अवैध गतिविधियों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे।इस हत्या में स्थानीय माफिया और प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत का संकेत मिला।
- शशिकांत वारिशे (Shashikant Warishe)(2023) -महाराष्ट्र में खोजी पत्रकार शशिकांत वारिशे की 6 फरवरी, 2023 को चोटों के कारण मृत्यु हो गई, जब उन्हें एक रियल एस्टेट लॉबिस्ट द्वारा चलाई जा रही एसयूवी ने कुचल दिया।वह अवैध भूमि जब्ती से जुड़े मामलों की जांच कर रहे थे।उनकी हत्या रियल एस्टेट और स्थानीय प्रशासन के बीच भ्रष्टाचार का परिणाम थी।
- मुकेश चंद्राकर (Mukesh Chandrakar)(2023) –हाल ही में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव एक ठेकेदार के सेप्टिक टैंक में मिला।उन्होंने स्थानीय प्रशासन और ठेकेदारों के बीच भ्रष्टाचार को उजागर किया था।उनकी हत्या में ठेकेदार और स्थानीय अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी गई।
लगातार जारी दुर्व्यवहार और खतरे (Patrakar Par Khatre aur Durvyavahar)
2014 से पत्रकारिता के सिलसिले में मारे गए 15 अन्य पत्रकारों को भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, चुनाव और माओवादी विद्रोह से जुड़ी खबरों पर काम करने के लिए निशाना बनाया गया।
इनमें से एक महिला पत्रकार गौरी लंकेश थीं, जिन्हें सितंबर 2017 में बैंगलोर में उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी। वह हिंदू दक्षिणपंथी नेटवर्क द्वारा हिंसक ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना कर रही थीं।
पत्रकारों की हत्याओं के पीछे के सामान्य कारण (Patrkaron Ki Maut Ke Karan)
- भ्रष्टाचार का पर्दाफाश: रेत माफिया, शराब माफिया और अन्य अवैध गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है।
- विचारधारात्मक टकराव: दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं के बीच टकराव के चलते कई पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
- स्थानीय विवाद: कई बार स्थानीय प्रशासन, माफिया या प्रभावशाली लोगों से टकराव के कारण पत्रकारों को नुकसान पहुंचाया गया।
- आतंकवाद और उग्रवाद: विशेष रूप से कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत में, आतंकवादी समूह स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने की कोशिश करते हैं।
भारत में पत्रकारिता की स्थिति (Bharat Me Patrakarita Ki Stithi)
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' के अनुसार 2021 में भारत 180 देशों में 142वें स्थान पर था।2023 में यह स्थिति और भी खराब हुई, और भारत को "पत्रकारों के लिए खतरनाक" देशों की श्रेणी में रखा गया।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े
- NCRB के आँकड़े बताते हैं कि 2013 से 2023 के बीच लगभग 40 पत्रकारों की हत्या की गई। इनमें से अधिकांश हत्याएं छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में हुईं।50% से अधिक मामलों में जांच के बावजूद न्याय नहीं मिल सका।
- पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं है।'एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' और अन्य संगठनों ने कई बार सरकार से अपील की है कि पत्रकारों को सुरक्षा दी जाए।
- पिछले 10 वर्षों में पत्रकारों की हत्याओं ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन घटनाओं के पीछे भ्रष्टाचार, विचारधारा, और राजनीतिक दबाव जैसे कारण रहे हैं। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाएं।