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विकसित-विकासशील की जंग जस्टिस भंडारी के लिए चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में बतौर जज नियुक्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारी बहुमत हासिल करने के बावजूद भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी की दावेदारी सुरक्षा परिषद में अटक गई है।

tiwarishalini
Published on: 17 Nov 2017 2:01 PM IST
विकसित-विकासशील की जंग जस्टिस भंडारी के लिए चुनौती
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राहुल लाल

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में बतौर जज नियुक्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारी बहुमत हासिल करने के बावजूद भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी की दावेदारी सुरक्षा परिषद में अटक गई है।

अंतर्राष्ट्रीय अदालत (ICJ) की एक सीट पर चुनाव के लिए भारत के दलवीर भंडारी और ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच मुकाबला फिर से बेनतीजा रहा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत भारतीय जज जस्टिस दलवीर भंडारी के साथ है, लेकिन ब्रिटेन के सुरक्षा परिषद में होने के नाते पी-5 समूह (वीटो प्राप्त सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों का समूह) राह में रोड़ा अटका रहा है।

इस गतिरोध से 2 बातें स्पष्ट हो गई है- पहला,भारत जैसे देशों के लिए बड़ा पावर शिफ्ट हुआ,जिसे रोका नहीं जा सकता और दूसरा,बदलाव को स्वीकार करने के लिए वीटो की शक्ति प्राप्त सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य तैयार नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्षों के इतिहास में एलीट पी-5 ग्रुप का कोई भी उम्मीदवार अंतर्राष्ट्रीय अदालत से गैर हाजिर नहीं रहा।अर्थात सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों का प्रतिनिधित्व अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सदैव रहा।अब आखिरी दो उम्मीदवार के लिए सीधा मुकाबला रह गया है।

हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(ICJ) की 15 सदस्यीय पीठ के लिए एक तिहाई सदस्य हर तीन साल में 9 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में अलग-अलग लेकिन एक ही समय चुनाव कराये जाते हैं।

आईसीजे में चुनाव के लिए मैदान में उतरे कुल 6 में से 4 उम्मीदवारों को संयुक्त राष्ट्र कानूनों के अनुसार चुना गया और उन्हें महासभा एवं सुरक्षा परिषद दोनों में पूर्ण बहुमत मिला।फ्रांस के रोनी अब्राहम, सोमालिया के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ,ब्राजील के एंतोनियो अगस्ते कानकाडो त्रिनदादे और लेबनान के नवाब सलाम को पिछले गुरुवार 9 नवंबर को 4 दौर के चुनाव के बाद चुना गया।आईसीजे के शेष एक उम्मीदवार के चयन के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद ने सोमवार 13 नवंबर को अलग-अलग बैठक की।

सुरक्षा परिषद की हठधर्मिता

सुरक्षा परिषद में चुनाव के पांचों दौर में ग्रीनवुड को 9 मत मिले,जबकि भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी को 6 मत मिले।सुरक्षा परिषद में बहुमत के लिए 8 मतों की आवश्यकता होती है।ब्रिटेन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है,इस कारण ग्रीनवुड की स्थिति जस्टिस भंडारी की तुलना में अनावश्यक लाभ में है।

जस्टिस भंडारी को महासभा के सभी 5 दौरों के चुनाव में 115 मत मिले थे और यह संख्या सोमवार 13 नवंबर को बढ़कर 121 हो गई।महासभा में पूर्ण बहुमत के लिए 97 मत मिलने आवश्यक है।

ग्रीनवुड के मतों की संख्या अप्रत्याशित तौर पर पिछले गुरुवार 9 नवंबर के 76 से कम होकर 68 रह गई।इस तरह सुरक्षा परिषद ,संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत के इच्छा को कुचल रही है।सुरक्षा परिषद के इस हठधर्मिता से स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्वव्यापी संस्था के लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की सख्त आवश्यकता है।

वीटो एवं स्थायित्व के विशेषाधिकार से युक्त पी-5 समूह सुरक्षा परिषद के द्वारा महासभा की लोकतांत्रिक आवाज को लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है।भारतीय उम्मीदवार जस्टिस दलवीर भंडारी एवं ब्रिटिश उम्मीदवार ग्रीनवुड के चयन में एक तरह से सुरक्षा परिषद और महासभा आमने-सामने है,जिससे संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रभावशीलता दांव पर है। वैश्विक अदालत के न्यायधीशों को संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के बहुमत का प्रतिनिधित्व करना चाहिए।सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों का क्लब इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता।

ताजा चुनाव से साफ है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना समर्थन नहीं खोया है,बल्कि समर्थन में वृद्धि ही की है।वहीं पी-5 देश अपने में से एक भी उम्मीदवार को छोड़ना नहीं चाहते।

सामान्य परिस्थितियों में जस्टिस भंडारी के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 2या 3 वोट और आसानी से मिल सकते थे,लेकिन पी-5 समूह के देश अपनी पॉजिशन में बदलाव के लिए तैयार नहीं दिखते।लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत जो कि पी-5 का सदस्य नहीं है,ने ब्रिटेन के दावेदारी को तत्काल रोक रखा है।भारत ने दिखा दिया है कि लंबे समय तक पी-5 का वर्चस्व नहीं रह सकता।

सुरक्षा परिषद और महासभा के टकराव के बाद आगे क्या होगा?

आईसीजे की इस सीट के चुनाव परिणाम के बेनतीजा रहने के बाद महासभा और सुरक्षा परिषद ने बैठक को बाद की किसी और तारीख के लिए स्थगित कर दिया।अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायधीश के निर्वाचन में सुरक्षा परिषद और महासभा दोनों में प्रत्याशी को पृथक-पृथक बहुमत का समर्थन मिलना आवश्यक है।

यदि एक बार मतदान से सब स्थानों के लिए आवश्यक बहुमत प्राप्त न हो तो,पुन: मतदान होगा।इस प्रकार कुल मिलाकर तीन बार मतदान होगा।जस्टिस दलवीर भंडारी के मामले में दो बार चुनाव हो चुका है।

प्रथम चुनाव पिछले गुरुवार 9 नवंबर को तथा द्वितीय सोमवार 13 नवंबर को।अब पुन: तीसरी बार चुनाव होगा।प्रश्न उठता है कि यदि पुन: तीसरे बार भी महासभा और सुरक्षा परिषद अलग-अलग निर्णय देती है,तो क्या होगा?

-ऐसी स्थिति में एक संयुक्त सम्मेलन द्वारा विचार होगा,जिसमें महासभा और सुरक्षा परिषद के 3-3 प्रतिनिधि होंगे,जिनके पक्ष में सम्मेलन के आधे से अधिक सदस्य हो,वह निर्वाचित माना जाएगा।यदि सम्मेलन कोई निर्णय नहीं कर पाए तो न्यायालय के निर्वाचित न्यायाधीश रिक्त स्थानों को भरने के लिए सुरक्षा परिषद और महासभा में मत प्राप्त व्यक्तियों में से चुनाव करेंगे।

इस संपूर्ण मामले की संवेदनशीलता को इससे समझा जा सकता है कि न्यायधीश चयन के संदर्भ में सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी सदस्यों में विभेद नहीं रखा गया है।अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायधीश के चयन में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को कोई 'वीटो'नहीं प्राप्त होता है।लेकिन जस्टिस दलवीर भंडारी के निर्वाचन के मामले में सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मूल भावनाओं के विरुद्ध जाकर समूहीकरण के द्वारा लोकतान्त्रिक संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत को कुचल रही है।इस तरह जहाँ पी-5 समूह सामान्य नियम के द्वारा तो भारतीय प्रत्याशी के विरुद्ध वीटो का प्रयोग नहीं कर सकता,वहाँ उसने लॉबिंग का प्रयोग किया।

अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र में नियमों में परिवर्तन कर सुरक्षा परिषद को दी गई अलोकतांत्रिक शक्तियों में कटौती की जाए तथा सुरक्षा परिषद में विस्तार किया जाए।संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में सुधार 1993 से ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में है।संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व ही सुरक्षा परिषद पर आधारित है।उसके सारे कार्यक्रम, बजट इत्यादि सुरक्षा परिषद के अधीन है।उसकी स्वीकृति के बिना बजट के लिए न तो धन की आपूर्ति हो सकती है,और न ही तमाम बिखरे कार्य ही पूरे किए जा सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र को अगर न्यायसंगत, पारदर्शी, कुशल और जवाबदेह बनाना है,तो इसके लिए सुरक्षा परिषद के अधिकारों में कटौती तथा महासभा के अधिकारों में वृद्धि करना ही होगा।संयुक्त राष्ट्र का गठन जब हुआ,तब इसके 51 सदस्य थे,परंतु अब संख्या 193 हो चुकी है।ऐसे में सुरक्षा परिषद के विस्तार के अपरिहार्यता को समझा जा सकता है।

इस बीच केवल 1965 में सुरक्षा परिषद का विस्तार किया गया।मूल रुप में इसमें 11 सीटें थी-5 स्थायी और 6 अस्थायी सीटें।वर्ष 1965 के विस्तार के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 सीटें हो गई, जिसमें 4 अस्थायी सीटों को जोड़ा गया।

1965 के बाद सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं हुआ,जबकि सदस्य देशों की संख्या 118 से बढ़कर 193 हो गई।सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के मामले में जहाँ तक स्थायी सदस्यो(चीन,फ्रांस,ब्रिटेन,यूएसए,रूस ) का सवाल है,आनुपातिक नहीं है,न तो भौगोलिक दृष्टि से और न ही क्षेत्रफल तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य संख्या या आबादी के दृष्टि से।

इस तथ्य के बावजूद की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 75% कार्य अफ्रीका पर केन्द्रित है,फिर भी इसमें अफ्रीका का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।इसलिए अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष की स्थितियों में सुरक्षा परिषद अपनी भूमिका का समुचित निर्वहन नहीं कर पाता।महत्वपूर्ण मामलों पर महाशक्तियों में मतभेद की स्थिति में वीटो पावर भी अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है।

उदाहरण के लिए आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर मामले में चीन ने बार-बार वीटो का दुरुपयोग किया।

जस्टिस दलवीर भंडारी मामले में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य का उम्मीदवार महासभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने में नाकाम रहा।महासभा का वोट बीते 70 से अधिक वर्षों से विशेषाधिकारों को अनुचित बढ़ावा दिए जाने का विरोध है।

यही कारण है कि गुरुवार 9 नवंबर के चुनाव के तुलना में सोमवार 13 नवंबर को ब्रिटिश उम्मीदवार को महासभा में और ज्यादा शिकस्त मिली।इसीलिए 21 वीं शताब्दी में विनाशकारी एवं विघटनकारी परिवर्तनों पर काबू पाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के क्षमता निर्माण में वृद्धि हेतु महासभा के शक्तियों में वृद्धि तथा सुरक्षा परिषद का विस्तार अपरिहार्य हो गया है।

संयुक्त राष्ट्र के लोकतंत्रीकरण के फलस्वरूप ही वैश्विक स्तर पर अमन,चैन,शांति,समृद्धि एवं मानवीय सरोकारों के प्रति संयुक्त राष्ट्र कहीं अधिक प्रभावी एवं अधिकारपूर्ण ढंग से काम कर सकेगा।

( लेखक कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं )

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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