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Justice DY Chandrachud New CJI: नए चीफ जस्टिस के साथ बन रहा अद्भुत संयोग

Justice DY Chandrachud New CJI: जब न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ अगले महीने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे तब एक इतिहास बनेगा।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 12 Oct 2022 4:41 PM IST
Justice DY Chandrachud
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Justice DY Chandrachud। (Social Media)

Justice DY Chandrachud New CJI: जब न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud New CJI) अगले महीने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) का पद संभालेंगे तब एक इतिहास बनेगा क्योंकि वह भारत के ऐसे पहले पहले चीफ जस्टिस होंगे जिनके पिता भी इसी पद पर रहे थे। यह सीजेआई के पद तक पहुंचने वाले पिता-पुत्र की एकमात्र जोड़ी होगी।

न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) को 1978 में सीजेआई के पद पर नियुक्त किया गया था और वह 1985 में सेवानिवृत्त हुए, जो अब तक इस पद पर सात साल का सबसे लंबे कार्यकाल रहा है। उनके बेटे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल से थोड़ा अधिक का होगा - हाल के दिनों में सबसे लंबा। अपने कार्यकाल के दौरान, वाईवी चंद्रचूड़ ने संजय गांधी को फिल्म "किस्सा कुर्सी का" के एक मामले में जेल की सजा सुनाई थी।

  • वाईवी चंद्रचूड़ ने अग्रिम जमानत संबंधी कानून की नींव रखी थी। 1980 में गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य के मामले में उन्होंने स्पष्ट रूप से आपराधिक कानून के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई। उन्होंने कहा था कि अग्रिम जमानत उन जजों पर छोड़ी जानी चाहिए जिनके पास समझदारी भरा फैसला लेने का अनुभव है।
  • 1985 में मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम के मामले में उन्होंने फैसला सुनाया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सिविल प्रोसीजर कोड के तहत पतियों से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार हैं। ये एक ऐतिहासिक फैसला था क्योंकि ये मुस्लिम पर्सनल लॉ को दरकिनार करता था।
  • 1985 में ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्यूनिसिपल कार्पोरेशन केस में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का विस्तार झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए किया था, यह फैसला करते हुए कि उनको अपने सिर पर छत का अधिकार है।
  • 1976 का ए.डी.एम. जलबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला 'बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला' के नाम से जाना जाता है। इस केस में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती ने फैसला किया था कि आपातकाल के दौरान जीवन के अधिकार को ही निलंबित किया जा सकता है। इस फैसले के लिए बाद में उन्होंने और जस्टिस भगवती ने भी सार्वजनिक रूप से पछतावा जताया था।


Deepak Kumar

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