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सर्वोच्च न्यायालय और सीबीआई अदालत में दायर 2जी मामले अलग : जी. एस. सिंघवी
नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी ने शुक्रवार को कहा कि जो मामला शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया गया था वह बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम आवंटन का था, जबकि जो मामला सीबीआई अदालत देख रही थी वह आवंटन में साजिश रचने को लेकर था।
उल्लेखनीय है कि सिंघवी ने ही 2012 में 2जी स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंस रद्द करने का फैसला सुनाया था। सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने एक निजी न्यूज़ चैनेल से कहा, सरकार ने आवंटन के बाद सबसे पहले कहा था कि उसे 65 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। अब वह कह रहे हैं कि राजस्व का कोई घाटा नहीं हुआ। यह किसने किया? अब यह लोगों को तय करना है।"
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उन्होंने कहा कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल किया गया मुद्दा, सीबीआई द्वारा राजा और दूसरों को बरी किए गए मुद्दे से अलग है। अदालत ने राजा द्वारा कंपनियों को जारी किए लाइसेंसों को 2012 में रद्द कर दिया था।
उन्होंने कहा, "सीबीआई अदालत और सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल मुद्दे पूरी तरह से अलग हैं।"
उन्होंने कहा, "जो मामला शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया गया था वह बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम आवंटन का था। मामला नीलामी के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के वितरण के मौलिक सिद्धांत में उल्लंघन का था।"
न्यायाधीश ने कहा, "हमारे समक्ष स्पेक्ट्रम आवंटन में साजिश या भ्रष्टाचार का मामला नहीं था, यह सीबीआई अदालत को तय करना था।"
कथित तौर पर हुआ यह घोटला उस वक्त सुर्खियों में आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने 2010 में अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि दूरसंचार मंत्रालय ने राजस्व को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान पहुंचाया है। मंत्रालय ने कुछ कंपनियों को कौड़ियों के भाव में 2जी स्पेक्ट्रम और लाइसेंस जारी किए थे।
टाइम पत्रिका ने इसे अमेरिका के चर्चित वॉटरगेट घोटाले के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला करार दिया था।