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Kanwar Yatra 2022: जानिए कांवड़ यात्रा का महत्व और इतिहास, कौन-कौन से नियमों का करना होता है पालन
Kanwar Yatra Ka Itihas : शिव के भक्त सावन माह के दौरान गंगा के पवित्र जल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर हिंदू धर्म में कई तरह की मान्यताएं हैं।
Kanwar Yatra 2022: कांवड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों द्वारा मनाया जाने वाला एक पवित्र तीर्थ है। सावन माह का शुरुआत होते ही पूरे देश में कावड़ियों की भी उमड़ने लगती है। हर साल भगवान शिव के भक्त बड़े ही उत्साह के साथ इस वार्षिक उत्सव को मनाते हैं। सावन में कावड़ के पवित्र जल को लेकर शिव के भक्त अपने गृह नगरों में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं उठाने वाले भक्तों की मनोकामना भगवान शीघ्र ही पूरा कर देते हैं। आइए जानते हैं कावड़ यात्रा का इतिहास क्या है, कौन-कौन से कावड़ यात्रा होते हैं और इनके नियम क्या है-
कांवड़ यात्रा का इतिहास (History of Kanwar Yatra)
कांवड़ यात्रा का इतिहास (Kanwar Yatra Ka Itihas) काफी प्राचीन है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के महान भक्त भगवान परशुराम ने पहली बार इस कांवर यात्रा को श्रावण महीने के दौरान किया था। तभी से यह कांवड़ यात्रा संतों द्वारा की जा रही है और 1960 में प्रकाश में आई। कांवर यात्रा मुख्य रूप से श्रावण मास के दौरान मनाई जाती है। इस कांवड़ यात्रा में पुरुष भी नहीं बल्कि महिला भक्त भी भाग लेते हैं।
कांवड़ यात्रा को लेकर एक और मान्यता यह है कि इस यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में श्रवण कुमार द्वारा की गई थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूर्ति के लिए श्रवण कुमार ने कांवड़ लाया था और इसी कांवड़ में श्रवण ने अपने माता-पिता को बैठा कर उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया। श्रवण लौटते वक्त गंगाजल को वह अपने साथ भी ले आए थे और इसी जल से उन्होंने भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था।
गौरतलब है कि COVID महामारी के कारण 2020 और 2021 के दौरान पिछले दो वर्षों से कांवड़ यात्रा नहीं हुई। हालांकि अब महामारी के बाद अलग-अलग जगहों पर करोड़ों श्रद्धालु उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। इस वर्ष, कांवड़ यात्रा 14 जुलाई, 2022 को शुरू हुई है और यह शिवरात्रि के दिन तक जारी रहेगी, जो मंगलवार 26 जुलाई, 2022 को मनाई जाएगी।
कांवड़ यात्रा का महत्व
कांवड़ यात्रा एक पवित्र और कठिन यात्रा है जो पूरे भारत के भक्त विशेष रूप से उत्तर भारत में विभिन्न पवित्र स्थानों से गंगा जल लाने के लिए करते हैं, जो गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार हैं। वे पवित्र गंगा में एक पवित्र डुबकी लगाते हैं और वे कांवड़ को अपने कंधों पर ले जाते हैं। कंवर बांस से बना एक छोटा सा खंभा होता है जिसके विपरीत छोर पर घड़े बंधे होते हैं। भक्त उन घड़े को गंगाजल से भर देते हैं और फिर पैदल चलकर अपनी कांवर यात्रा शुरू करते हैं और कुछ भक्त नंगे पांव भी देखे जाते हैं।
हालांकि कुछ भक्त इस यात्रा को पूरा करने के लिए साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, जीप या मिनी ट्रक का भी उपयोग करते हैं। कांवड़ यात्रा में एक बहुत ही ध्यान देने वाली बात है कि इस यात्रा के दौरान ज्यादातर भक्त भगवा रंग की पोशाक पहनते हैं। पूजा के इस रूप का अभ्यास करके, कांवरिया आध्यात्मिक विराम लेते हैं और अपनी यात्रा के दौरान शिव मंत्र और भजनों का जाप करते हैं। कई एनजीओ और समूह कांवड़ियों को पानी, भोजन, मिठाई, फल, चाय, कॉफी प्रदान करने वाले शिविरों का आयोजन करते हैं और भक्तों के आराम करने की उचित व्यवस्था करते हैं। साथ ही भक्तों के लिए भी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करते हैं।
कांवड़ यात्रा का नियम
कांवड़ यात्रा एक बहुत ही कठिन यात्रा है जिसको लेकर कई सारे नियम भी हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों के मांस, मदिरा तथा किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन को ग्रहण करना पूर्णता वर्जित माना जाता है। कावड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते हैं, साथ ही बिना नहाए हुए कावड़ को स्पर्श करना पूर्णता वर्जित है। इसके अलावा कावड़ यात्रा के दौरान आपका वर्ड को अपने सिर के ऊपर भी नहीं रख सकते हैं साथ ही इसे किसी वृक्ष के नीचे रखना भी वर्जित माना गया है।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
कांवड़ यात्रा का इतिहास बहुत ही पुराना है हिंदू धर्म में इस पूरी यात्रा की बहुत अधिक महत्वता है कई कड़े नियमों का पालन करते हुए पूरा किए जाने वाले इस यात्रा को चार प्रकार में बांटा भी गया है जो इस प्रकार है।
सामान्य कांवड़ यात्रा : सामान्य कांवड़ यात्रा शिव के भक्तों के लिए है जो उम्र दराज हो गए हैं या पहली बार इस यात्रा को करने जा रहे हैं इस यात्रा के दौरान भक्तों किसी पांडाल में रुक कर विश्राम करते हुए यात्रा को रुक-रुककर पूरा कर सकते हैं।
खड़ी कांवड़ यात्रा : खड़ी कांवड़ यात्रा बेहद कठिन होती है इस यात्रा के दौरान शिव के भक्तों को लगातार चलना रहता है हालांकि यदि किसी कारणवश भक्तों को रुकना पड़े तो इस दौरान उसका सहयोगी साथी अपने कंधे पर कांवड़ को रखकर हिलाता रहता है जिससे यह प्रतीत होता रहे थे कांवड़ यात्रा जारी है।
दांडी कांवड़ यात्रा : डांडी यात्रा कांवड़ यात्रा के कुछ सबसे कठिन प्रकारों में से एक है। इस यात्रा को करने के लिए भक्त शिव धाम तक दंड देते हुए अपनी यात्रा को पूरी करते हैं कई बार इस यात्रा को पूरा करने में 30 दिनों तक का वक्त लग जाता है।
डाक कांवड़ यात्रा : यात्रा के इस प्रकार में एक ऐसा इंतजाम किया जाता है जिससे शिव के जलाभिषेक की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है।