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Kargil Vijay Diwas: आसान नहीं थी कारगिल की विजय, 527 भारतीय रणबांकुरों ने शहादत देकर दिलाई थी जीत

Kargil Vijay Diwas 2022: कारगिल लड़ाई में भारत के तेरह सौ से अधिक जवान घायल भी हुए थे। इस युद्ध में भारत के रणबांकुरों ने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 26 July 2022 9:00 AM IST
Kargil Vijay Diwas
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कारगिल विजय दिवस (फोटो: सोशल मीडिया )

Kargil Vijay Diwas 2022: पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल के युद्ध (Kargil War) में भारत ने जीत तो जरूर हासिल की मगर देश का मस्तक ऊंचा रखने के लिए 527 भारतीय रणबांकुरों को अपनी शहादत भी देनी पड़ी थी। कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के मौके पर आज भारतीय जांबाजों की शहादत को याद करने का भी मौका है। इस लड़ाई में भारत के तेरह सौ से अधिक जवान घायल भी हुए थे। वैसे इस युद्ध में भारत के रणबांकुरों ने दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

भारतीय सेना के ताबड़तोड़ हमले में पाकिस्तान के करीब तीन हजार सैनिक मारे गए थे। हालांकि पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से इस लड़ाई में अपने 357 सैनिकों के मारे जाने की बात ही स्वीकार की थी। बाद में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि कारगिल का युद्ध पाकिस्तान की सेना के लिए आपदा साबित हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह पहले ऐसी लड़ाई थी जिसमें किसी देश ने दुश्मन सेना के खिलाफ इतनी ज्यादा बमबारी की थी।

इस तरह मिली थी सेना को जानकारी

यह भी एक अजीब विडंबना है कि भारतीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को 1999 में कारगिल में पाकिस्तान की ओर से की गई घुसपैठ की जानकारी नहीं मिल सकी थी। कारगिल के बटालिक सेक्टर के गारकॉन गांव के रहने वाले ताशि नामग्याल अपने गुम हो गए याक को खोजने निकला तो उसकी नजर उन छह बंदूकधारियों पर पड़ी जो पत्थर को हटाकर रहने के लिए जगह बना रहे थे। उसने तत्काल दुश्मनों की इस गतिविधि की जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचाई। जानकारी मिलने के बाद भारतीय सेना की ओर से की गई जांच में बड़ी घुसपैठ उजागर हुई थी। उसके बाद ही भारतीय सेना दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सक्रिय हुई थी।

भारतीय सेना ने एकबारगी इस मामले की गंभीरता को नहीं समझा था। भारतीय सेना की ओर से बयान दिया गया था कि कट्टरपंथियों को जल्दी से इलाके से बेदखल कर दिया जाएगा मगर बाद में भारतीय सेना इस सच्चाई से वाकिफ हुई कि इस घुसपैठ के पीछे असली हाथ पाकिस्तानी सेना का था। इसीलिए बड़ा ऑपरेशन चलाकर पाकिस्तानी सेना को जवाब दिया गया और भारत इस लड़ाई में जीत हासिल करने में कामयाब हुआ।

भारत के लिए बहुत कठिन था ऑपरेशन

पाकिस्तान के खिलाफ छेड़े गए ऑपरेशन विजय को अंजाम तक पहुंचाना आसान काम नहीं था। दरअसल इस लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंची पहाड़ियों पर डेरा जमा रखा था और वे वहीं से भारतीय सैनिकों पर हमला कर रहे थे। भारतीय सैनिक नीचे गहरी खाई में रह कर दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए मजबूर थे। पाकिस्तानियों के लिए भारतीय सैनिकों को निशाना बनाना काफी आसान था जबकि भारतीय सैनिकों के लिए ऊपर बैठे पाकिस्तानियों को मार गिराना काफी मुश्किल काम था। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय सेना के जांबाज जवानों ने अदम्य साहस दिखाते हुए दुश्मन सेना के मंसूबे ध्वस्त कर दिए।

दरअसल भारतीय सैनिक रात के अंधेरे में चढ़ाई चढ़ने के बाद ऊपर की पहाड़ियों पर पहुंचते थे। इस दौरान हमेशा पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियों और बमों का निशाना बनने का जोखिम था मगर भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन को बखूबी से अंजाम दिया जिस कारण दुश्मन सेना घुटने टेकने पर मजबूर हो गई।

शहादत देकर दिलाई देश को जीत

वैसे इस जंग के दौरान भारत को जीत तो जरूर हासिल हुई मगर 527 भारतीय रणबाकुंरों की शहादत का गम भी भारतीयों को सालता रहा। देश के लिए शहादत देने वाले अधिकांश योद्धाओं ने अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देखे थे मगर देश की आन-बान और शान के लिए वे मर मिटे। देश के लिए शहादत देकर इन रणबांकुरों ने भारतीय सेना की शौर्य और बलिदान की सर्वोच्च परंपरा निभाई।

कई युवा अफसरों को भी इस सैन्य ऑपरेशन के दौरान अपनी जान ग॔वानी पड़ी। हालांकि देश के लिए जान गंवाने वाले सभी शहीदों के परिजनों का कहना था कि उन्हें अपने लाल की शहादत पर गर्व है। इसलिए कारगिल विजय दिवस के दिन उन रणबांकुरों को भी याद करने का बड़ा मौका है जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

सबसे पहले तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा

पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन विजय के दौरान भारतीय सेना ने सबसे पहले 13 जून 1999 को तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने के बाद तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल की थी। हालांकि इस अभियान के दौरान भारत के 17 सैनिक शहीद हो गए थे जबकि 40 जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे। तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने के बाद भारतीय सेना का हौसला बढ़ गया और भारतीय जवान दुश्मन सेना को पूरी तरह ध्वस्त करने की कोशिश में जुट गए। बाद में भारतीय जवानों ने 4 जुलाई को टाइगर हिल पर भी फतह हासिल करने में कामयाबी पाई।

सेना के तीनों अंगों में दिखा समन्वय

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के तीनों अंगों ने गजब का समन्वय दिखाते हुए पाकिस्तान को धूल चटाने में कामयाबी हासिल की। इस युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के जांबाज पायलटों ने जान जोखिम में डालकर काफी ऊंचाई पर उड़ान भरी थी। वायुसेना के हेलीकॉप्टरों ने करीब ढाई हजार उड़ाने भरकर युद्ध क्षेत्र से घायल सैनिकों को अस्पताल पहुंचाने के काम को बखूबी अंजाम दिया था।

नौसेना ने भी अपने युद्धपोत को अरब सागर में तैनात करके पाकिस्तान पर जबर्दस्त सामरिक दबाव बना दिया था। आखिरकार भारतीय सेना के तीनों अंगों के समन्वित प्रयास से भारत इस जंग में दुश्मन सेना को हराने में कामयाब हो सका।

पाकिस्तान भरोसे लायक देश नहीं

वैसे कारगिल में पाकिस्तान की ओर से की गई हरकत से एक बात और साफ हो गई कि पाकिस्तान ऐसा देश है जिस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान की इस हरकत से पहले तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से रिश्तों को मधुर बनाने के लिए लाहौर तक बस यात्रा की थी। 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक की बस सेवा शुरू की गई थी।

इस सेवा का उद्घाटन करते हुए वाजपेयी प्रथम यात्री के रूप में लाहौर भी गए थे। उनका एकमात्र मकसद भारत और पाकिस्तान के तनावपूर्ण रिश्ते को खत्म करके दोनों देशों के बीच नजदीकी लाना था। भारत की ओर से की गई इतनी बड़ी पहल के बावजूद पाकिस्तान ने पीठ में खंजर भोंकने का काम किया था।

अटल ने पाकिस्तान को जमकर लताड़ा

यही कारण था कि कारगिल में पाकिस्तान की हरकत से तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी काफी आहत हुए थे और उन्होंने बाद में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जमकर लताड़ा भी था। उनका कहना था कि एक और तो उन्हें पाकिस्तान बुलाकर स्वागत किया गया तो दूसरी ओर पाकिस्तान ने धोखा देते हुए भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा। वैसे पाकिस्तान की ओर से किए गए दुस्साहस का अटल सरकार ने मुंहतोड़ जवाब दिया था और पाकिस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। वेसे कारगिल की लड़ाई के बाद वाजपेयी को लोगों की आलोचनाएं भी सुननी पड़ी थीं। लोगों का कहना था कि उन्हें पाकिस्तान पर इतना ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए था।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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