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Kargil Vijay Diwas 2022 : कैप्टेन सौरभ कालिया जिसने मात्र 22 वर्ष की उम्र में दी सबसे बड़ी शहादत
Kargil Vijay Diwas: कारगिल विजय दिवस के मौके पर देश कैप्टन सौरभ कालिया को याद कर रहा है। दुश्मनों ने उन्हें लोहे की गर्म सलाखों और सिगरेट से दागा था।उनकी आंखें तक निकाली दी गईं थी।
Kargil Vijay Diwas 2022 : कैप्टन सौरभ कालिया (Captain Saurabh Kalia) की शहादत को ये देश कभी नहीं भूल सकता। भारत के इस सपूत की वीरता को कौन भूल सकता है।कैप्टेन सौरभ कालिया ने महज 22 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए। उनके पराक्रम की कहानी अच्छे-अच्छे रणबांकुरों में जोश भरने और अपनी मिट्टी के लिए मर मिटने का जज्बा भरने के लिए काफी है। देश 26 जुलाई को 'कारगिल विजय दिवस' (Kargil Vijay Diwas 2022) के रूप में मनाता है। इस मौके पर आज देशवासी कैप्टेन सौरभ कालिया को नमन कर रहे हैं।
कैप्टन सौरभ कालिया (Saurabh Kalia) का जन्म 29 जून 1976 को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पालमपुर (Palampur) में हुआ था। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेते 9 जून 1999 को ये बलिदान हो गए थे। सौरभ कालिया के बलिदान को हर वर्ष 15 अगस्त, 26 जनवरी और कारगिल दिवस के मौके पर याद किया जाता है। देश आज एक बार फिर हिमाचल के कांगड़ा जिले के इस बेटे को नमन कर रहा है।
'मां ऐसा काम करके आऊंगा...'
जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो सैनिकों की तैनाती बढ़ाई जाने लगी। ऐसे में सैनिकों को कारगिल के मोर्चे पर भेजा रहा था। दुश्मनों से लोहा लेने के लिए कैप्टन सौरभ कालिया को भी भेजा गया। कारगिल युद्ध (Kargil War) में जाने से पहले अमृतसर रेलवे स्टेशन (Amritsar railway station) पर शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का परिवार उन्हें छोड़ने आया था। कहते हैं, तब सौरभ ने अपनी मां विजया कालिया से कहा था, 'मां ऐसा काम करके आऊंगा कि सारी दुनिया याद करेगी।'
किसे पता था, यही होगी अंतिम मुलाकात
जी हां, यही शब्द कहे थे सौरभ ने। तब जवाब में हंसते हुए मां ने बेटे से कहा था, कि 'बेटा कहीं रेलगाड़ी में ही मत सो जाना।' अमृतसर रेलवे स्टेशन पर कैप्टन सौरभ कालिया को छोड़ने गए परिजनों को क्या पता था कि बेटे से उनकी यह अंतिम मुलाकात है। उनका बेटा सौरभ युद्ध लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुआ। सौरभ के छोटे भाई वैभव कालिया बताते हैं, वो (सौरभ) अकसर कहा करते थे, कि 'इंसान को कुछ ऐसा करना चाहिए कि दुनिया उसे याद करे।' हुआ भी ऐसा ही।
पहली पोस्टिंग ही कारगिल सेक्टर में
कैप्टन सौरभ कालिया ने 12वीं की पढ़ाई पहाड़ों की गोद में बसे केंद्रीय विद्यालय, होल्टा (Kendriya Vidyalaya, Palampur) में की थी। उसके बाद उन्होंने कृषि विवि पालमपुर (Agricultural University Palampur) में बीएससी की पढ़ाई शुरू की। बीएससी और एम.एड करने के बाद सौरभ ने सेना में जाने का फैसला लिया। 12 दिसंबर 1998 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से ग्रेजुएट होने के बाद उन्हें '4 जाट रेजीमेंट' (4th Jat Regiment) में तैनाती मिली। सौरभ की पहली पोस्टिंग ही कारगिल सेक्टर में हुई थी।
अमानवीय यातनाएं दी गई
सौरभ के बारे में उनके पिता डॉ. एन.के. कालिया बताते हैं कि वो बेहद शांत स्वभाव के थे। कम बोलते थे। जितनी जरूरत हो बस उतनी ही। वो बताते हैं उनका बेटा अपनी पहली पोस्टिंग को लेकर बहुत एक्साइटेड (Excited) था। कारगिल में पोस्टिंग के दौरान कैप्टन कालिया (Captain Kalia) 05 मई 1999 को अपने पांच साथियों के साथ बजरंग पोस्ट (Bajrang Post) पर पेट्रोलिंग कर रहे थे। इसी दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों (Pakistani infiltrators) ने उन्हें बंदी बना लिया। कैप्टन कालिया सहित उनके साथियों को 22 दिनों तक दिल दहला देने वाली यातनाएं दी गई। कहते हैं कैप्टन कालिया और उनके सहयोगियों को लोहे की गर्म सलाखों और सिगरेट से दागा गया। उनकी आंखें निकाली दी गई। उनके कान को भी सलाखों से दागा गया।
टूट गई मां, अधूरे रह गए सपने
कैप्टन सौरभ कालिया का शव जब उनके पैतृक आवास पहुंचा तो उसे देखकर उनकी मां बेहोश हो गई थीं। पिता बताते हैं बेटे की इस हालत में मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया। दुश्मनों ने उनके बच्चे के साथ ऐसा बर्ताव किया, एक पल तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। भारतीय सेना में शामिल हुए कैप्टन के अभी 4 महीने ही बीते थे। परिवार वालों का उन्हें यूनिफॉर्म में देखने का सपना अधूरा ही रह गया। बेटे का शव तिरंगे में लिपटा जरूर गर्व का पल दे गया। कैप्टन कालिया यूनिफॉर्म में अपने परिवार से न तो मिल सके और न ही अपनी पहली सैलरी देख पाए।
पिता कैप्टन के पिता को 22 सालों से न्याय की उम्मीद
कैप्टन कालिया का शव बर्फ में दबा हुआ मिला था। कैप्टन कालिया सहित पांच जवानों के साथ जो कुछ भी हुआ वह जेनेवा संधि का उल्लंघन था, मगर तब भारत सरकार की ओर से इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ने से इनकार कर दिया गया। कैप्टन सौरभ कालिया को अमानवीय यातनाएं देने का मामला उनके पिता डॉ. एनके कालिया ने 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उठाया था। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। उनकी मानें तो उन्हें इसका मलाल है कि 22 सालों में उन्हें केंद्र सरकारें इंसाफ नहीं दिला पाईं। उन्हें पीएम मोदी से इंसाफ मिलने की आस है।