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Karnataka Assembly Election 2023: कर्नाटक में कहां मुश्किल में पड़ी भाजपा, इन असली वजहों ने किया सत्ता से दूर
Karnataka Assembly Election 2023: बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा भी रहा। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर ही एस.ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा।
Karnataka Assembly Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजे लगभग आ गए हैं। 36 मतगणना केंद्रों पर 224 विधानसभा क्षेत्रों के हुई वोटों की गिनती में अधिकांश लोगों ने इस बार राज्य की सत्ता की बागडोर कांग्रेस के हाथ में देना ज्यादा उचित समझा है। मतगणना में जो रुझान सामने आए हैं, उसमें भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से पिछड़ती नजर आ रही है। केंद्र में भाजपा नीत नरेंद्र मोदी की सरकार है। पीएम मोदी को वोटों का जादूगर कहा जाता है, फिर कर्नाटक में भाजपा के लिए अनुकूल माहौल क्यों नहीं बन पाया? कर्नाटक में भाजपा के हार के कारणों को ढूंढती यह रिपोर्ट।
कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है। येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया। वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे। बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा।
बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा भी रहा। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर ही एस.ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा। स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत कर डाली थी। बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी।
कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी बीजेपी साधकर नहीं रख सकी। बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी। वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है।
फेल हुई ध्रुवीकरण की सियासत
कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे। ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं। कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया। बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका।
कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए। येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया।
रही सत्ता विरोधी लहर
कर्नाटक में बीजेपी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है। बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में बीजेपी पूरी तरह से असफल रही।
(लेखक: राजीव रंजन तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार)