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Karnataka Result 2023: कर्नाटक जनादेश के संदेश, वीडियो में देखें ये खास रिपोर्ट
2023 Karnataka Result Analysis: पराजय के बाद भाजपा की चुनावी रणनीति, मुद्दे व चेहरे समेत कई विंदुओं की गहन पड़ताल ज़रूरी हो जाती है। रणनीति इसलिए क्योंकि भाजपा हिमाचल हारी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान भी गँवाया। गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड को छोड़ दें तो भाजपा विजय को लेकर गुमान नहीं कर सकती है। Analysis
2023 Karnataka Result Analysis: “कर्नाटक जो आज करता है। भारत उसे कल करता है।” यह लोकोक्ति इन दिनों कांग्रेस पार्टी सहित समूचे विपक्ष को बहुत सुहा रही है। इसी लोकोक्ति के चलते समूचा विपक्ष मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल,सिक्किम और उड़ीसा के आगामी विधानसभा चुनाव में अपने अपने लिए उम्मीद देख रहा है। यही लोकोक्ति आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी विरोधियों की उम्मीद की किरण है। वह चाहे विपक्षी एकता के मार्फ़त हो या फिर कांग्रेस की बढ़ती ताक़त को इस्तेमाल करने के मार्फ़त। पार्टी व विचारधारा से जुड़े लोगों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे कर्नाटका में भाजपा सरकार की उम्मीद रही हो। पर कांग्रेस के प्रचंड बहुमत और भाजपा के धराशायी सरीखी पराजय की भी उम्मीद किसी को नहीं थी।
लेकिन पराजय के बाद भाजपा की चुनावी रणनीति, मुद्दे व चेहरे समेत कई विंदुओं की गहन पड़ताल ज़रूरी हो जाती है। रणनीति इसलिए क्योंकि भाजपा हिमाचल हारी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान भी गँवाया। गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड को छोड़ दें तो भाजपा विजय को लेकर गुमान नहीं कर सकती है। भाजपा की रणनीति 2014 से एक सी ही चल रही है। यह मतदाताओं को रिझाने की जगह ऊबा रही है। भाजपा की केंद्र सरकार भले ही भ्रष्टाचार के आरोप से बच निकलने में कामयाब हुई हो। पर राज्य सरकारें भ्रष्टाचार के रिकार्ड तोड़ती नज़र आती हैं। सवाल उठता है कि हाई कमान को क्यों नहीं दिखता है?यही नहीं, बेहद ग़ैर अनुभवी और कई जगह तो पहली बार सदन का सदस्य बने या फिर चुनाव हार चुके नेता को राज्य की कमान थमा दी जाती है।
भाजपा की चुनावी रणनीति
भाजपा ने आठ नौ साल के कार्यकाल में राज्यों में नेताओं की फ़ौज नहीं बनने दी। जातीय नेताओं के लिए भी क्षेत्रीय स्तर पर जाति की राजनीति कर रहे दलों के साथ गठबंधन करना बेहतर समझा। क्षेत्रीय दल परिवारवाद को आगे बढ़ाने, टिकट बेचने, साथ ही साथ यदि उनके हाथ मंत्री पद लग गया है तो लूट का रिकार्ड बनाने में लग जाते हैं। जिससे भाजपा का कोर कार्यकर्ता न केवल निराश होता है। बल्कि भाजपा का चाल, चरित्र व चेहरा भी ख़राब होने लगता है। भाजपा की रण विरोधाभासों के समुच्चय सी दिखने लगी है। एक ओर टीपूँ सुल्तान का विरोध, दूसरी ओर उसके नाम से ट्रेन व पाठ्यक्रम। इसी तरह हिंदुत्व की राजनीति पर साथ ही पसमांदा मुसलमान को पटाने की कोशिशें। एक लीक पकड़नी होनी।
यदि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों को देखा जाए तो भाजपा कर्नाटक में अपनी ताकत बढ़ाने में कामयाब हुई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा के भाजपा से अलग होने पर पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी को सिर्फ 20 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे । मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 43 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। भाजपा को राज्य की 28 में से 17 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी।2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत में 7 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी ।मगर फिर भी भाजपा 104 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को 78 और जद एस को 37 सीटों पर जीत मिली थी।
कर्नाटक में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस और जद एस को बैकफुट पर धकेल दिया था। 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य में 51 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। भाजपा ने राज्य की 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल करते हुए कांग्रेस को बुरी तरह हराया था। भाजपा समर्थित एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी जीत हासिल की थी । जबकि कांग्रेस और जद एस को सिर्फ एक-एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। पर समूचे दक्षिण की बात करें तो-
केरल
केरल विधानसभा में भाजपा के पास वर्तमान में कोई विधायक नहीं है। 2016 में राज्य में इसके एकमात्र विधायक थे ओ. राजगोपाल । जो तिरुवनंतपुरम में नेमोम सीटसे जीते थे। लेकिन 2021 के चुनाव में बीजेपी का कोई भी उम्मीदवार जीतने में कामयाब नहीं हुआ।
तमिलनाडु
तमिलनाडु विधानसभा में भाजपा के चार विधायक अन्नाद्रमुक पार्टी से गठबंधन करके 2021 में विजयी हुए थे। इसके पहले दो दशकों में भाजपा का खाता कभी नहीं खुला था। वैसे, भाजपा ने तमिलनाडु में अपना ध्यान बढ़ाया है।लेकिन चुनावी लाभ का कोई तत्काल संकेत नहीं दिखा रहा है।
तेलंगाना
तेलंगाना में हालांकि भाजपा ने 2014 में 5 सीटों पर जीत हासिल की।लेकिन 2018 के चुनाव में यह संख्या घटकर सिर्फ 1 रह गई। भाजपा विधायक राजा सिंह, जो गोशामहल निर्वाचन क्षेत्र से जीते, भगवा पार्टी के एकमात्र विधायक थे। 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने तेलंगाना में काफी अच्छा प्रदर्शन किया और 17 सीटों में से 4 सीटें हासिल कीं। भगवा पार्टी ने कुल मतों का लगभग 19.45 फीसदी पाया। तेलंगाना में कुछ ही महीनों में चुनाव होने जा रहे हैं।बीजेपी जमीन पर आक्रामक तरीके से काम कर रही है। कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को राज्य का प्रभारी नियुक्त करने के साथ अपने खेल को आगे बढ़ाया है। हालांकि, दुब्बका और हुजुराबाद निर्वाचन क्षेत्रों में हुए दो उपचुनावों में भाजपा की गिनती बढ़ी है। दो उपचुनावों में जीत के बाद भाजपा के विधायकों की संख्या बढ़कर तीन हो गई।
2014 में विभाजित आंध्र प्रदेश में हुए पहले विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी।लेकिन 2019 के चुनावों में भगवा पार्टी अपना खाता नहीं खोल सकी। जगन मोहन रेड्डी को एक 'हिंदू-विरोधी' मुख्यमंत्री के रूप में चित्रित करने के लिए पार्टी कई मुद्दों को उठा रही है। मंदिर की तोड़फोड़ और मूर्ति तोड़े जाने की घटनाओं को "राज्य प्रायोजित" बता रही है। इनमें से कितने प्रयास चुनावी रूप से प्रतिबिंबित होंगे यह देखने वाली बात होगी।
दक्षिण भारत में लोकसभा की 130 सीटें
दक्षिण भारत के कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में मिलाकर लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं। मौजूदा समय में इनमें से भाजपा के पास सिर्फ 29 सीटें हैं। इन सीटों में अकेले 25 सीटें कर्नाटक से ही हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में भाजपा 4 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी।
तेलंगाना और कर्नाटक को छोड़कर भाजपा को दक्षिण भारत के किसी भी राज्य में एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी। ऐसे में कर्नाटक की हार भाजपा के मिशन दक्षिण को बड़ा झटका देने वाली है। इन नतीजों से साफ हो गया है कि 2024 की सियासी जंग में भाजपा के लिए अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में खाता खोलना काफी मुश्किल साबित होगा।
भाजपा अंतरराष्ट्रीय पार्टी हो गई है। पर मुद्दे केवल वक्ती रहते हैं। कर्नाटक को ही लें।लिंगायतों के बूते भाजपा दक्षिण का द्वार खोलने में कामयाब हुई थी। कर्नाटक में भाजपा को जगह दिलाने में जनसंघ के समय राम कृष्ण हेगड़े और भाजपा के समय येदियुरप्पा का योगदान नहीं भूलना चाहिए । येदियुरप्पा के कारण भाजपा के साथ लिंगायत वीर शैव जुड़े। 2008 में पहली बार भाजपा में दक्षिण में अपनी सरकार बनाई। भाजपा को 110 सीटें मिली थी। येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने।
मुख्यमंत्री बनने के लिए कम पड़ रहे विधायकों की कमी आपरेशन कमल के मार्फ़त बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं ने पूरा किया। तीन साल बाद भ्रष्टाचार के आरोप में येदियुरप्पा को हटना पड़ा । क्योंकि लोकायुक्त की रिपोर्ट में अवैध खनन के मामले में येदियुरप्पा का नाम था। इससे पहले 2007 में वह सात दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा ने दो बार सरकार तो बनाई पर कभी उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। बीते तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 30 से 36 फ़ीसदी के बीच रहा। कांग्रेस का 35 से 38 फ़ीसदी के बीच रहा। राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा को कर्नाटक में मिले जन समर्थन सरीखे तमाम इश्यू से आँख मूँदे रखा गया। इन इश्यू से हुए डैमेज को कंट्रोल करने की जगह भाजपा बजरंग दल और बजरंग बली के पिच पर चुनाव लड़ रही थी। वह भूल गयी कि गोवा में मनोहर पर्रिकर ने श्रीराम सेना पर 2014 में प्रतिबंध लगाया था।वह जीतने में कामयाब हुए।
भाजपा के रणनीतिकार यह देखना भूल गये कि जहां कांग्रेस ने बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात कही है, वहीं नीचे आंजनेय ( हनुमान) जी के हज़ारों मंदिरों को पुनर्निर्माण व हर गाँव की कुलदेवी के लिए बीस हज़ार रुपये का एलान दर्ज था। यानी धर्म की पर कांग्रेस भाजपा से आगे निकल चुकी थी।
कांग्रेस ने चुनावी वादे के रूप में महिलाओं और युवाओं को आकर्षित करने के लिए पांच "गारंटियां" बनाईं जो मूल्य वृद्धि और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जुड़ी थीं।
इनमें महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों को 2,000 रुपये प्रति माह देने की ‘गृह लक्ष्मी’ योजना, 200 यूनिट मुफ्त बिजली के अपने दूसरे वादे की घोषणा की। पहले दो वादों की घोषणा के साथ, पार्टी ने चेक के रूप में "गारंटी कार्ड" छापना शुरू किया।यह सुनिश्चित करने के लिए घर-घर अभियान शुरू किया कि कार्ड अधिकतम घरों तक पहुंचे।
तीसरी गारंटी कि- प्रत्येक बीपीएल परिवार के सदस्य को ‘अन्न भाग्य’ योजना के तहत प्रति माह 10 किलो मुफ्त चावल देना और दो साल के लिए स्नातक की डिग्री वाले बेरोजगार युवाओं को हर महीने 3,000 रुपये, की ‘युवा निधि; योजना का वादा।इसी के साथ पांचवां वादा - महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा। हिमाचल की तरह कांग्रेस ने महिलाओं पर कर्नाटक में भी ध्यान रखा। पाँच गारंटी योजनाओं में से दो महिलाओं से ही जुड़ी हैं। मोदी ने इसे रेवड़ी संस्कृति कह कर मज़ाक़ उड़ाया।जबकि भाजपा खुद लाभार्थी क्लास को एक जुट करके कई राज्यों में चुनाव लड़ी और जीती है।
कांग्रेस को लिए यह संदेश है कि राज्य के नेताओं के बीच एका कायम रखे।राज्य के नेतृत्व के पैर राज्य में जमने दें। राजस्थान में गहलोत व सचिन के बीच जो हो रहा है, उससे जल्द निपटे। उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि भारतीय मतदाता विधानसभा व लोकसभा में अलग अलग जनादेश सुनाता है। केवल राहुल गांधी से काम नहीं चलने वाला है। प्रियंका गांधी भी ज़रूरी हैं। हिंदुत्व की पिच पर वॉक ओवर देने की ज़रूरत नहीं है। केवल चुनाव में निकलने से काम नहीं चलेगा। भाजपा व मोदी की तरह चौबीस घंटे पॉलिटिक्स करनी होगी। अगर दक्षिण के दरवाज़े भाजपा के लिए बंद हो गये हैं, तो कांग्रेस के लिए भी इससे अधिक खुलने वाले नहीं हैं। कांग्रेस ने जो गारंटियाँ दी है, उनको पूरा करने के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे। पुरानी पेंशन बहाली की माँग हिमाचल में पूरी करने में कांग्रेस सरकार का दम फूल रहा है।
विपक्ष के लिए यह संदेश है कि कल तक जिस कांग्रेस को वे गठबंधन का मज़बूत व अनिवार्य तत्व नहीं मान रहे थे। वह ग़लत है। मोदी हटाओ कोई भी अभियान बिना कांग्रेस के फली भूत नहीं हो सकता है।बिना आपने सामने की लड़ाई के मोदी को पराजित कर पाना संभव नहीं है। क्योंकि उनके पास बाइस करोड़ वोटों की एक मुश्त थाती है। जबकि कांग्रेस के पास केवल ग्यारह करोड़ का वोट बैंक है। केसीआर और जगन रेड्डी के लिए यह संदेश की वे बिना किसी दबाव के अपने विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। क्योंकि उनके राज्यों में भाजपा के पास ने तो कोई क़द्दावर नेता है। न ही बड़ा मुद्दा। भाजपा के नरेटिव में फँसने की ज़रूरत नहीं है। नीतीश कुमार के लिए संदेश यह कि वे अपनी विपक्षी एकता की मुहिम चला सकते हैं। जो लोग इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। उनके लिए यह ज़रूरी है कि यह बहुत जल्दी है। बिना विपक्षी एकजुट हुए मोदी से निपटाना संभव नहीं होगा। विपक्षी एकता के मेंढक तौलने का काम हो कैसे सकता है?
( लेखक पत्रकार हैं ।)