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यादगार चुनाव: एक शेरनी, सौ लंगूर, चिकमंगलूर का वह चुनाव जिसमें एक नारे ने बदल दी थी इंदिरा गांधी की किस्मत
Indira Gandhi 1978 Election: 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी एक बार फिर चुनावी अखाड़े में उतरी थीं। वीरेंद्र पाटिल को हराकर बड़ी जीत हासिल की थी।
Indira Gandhi 1978 Election: देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और चुनावी बाजी जीतने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबर्दस्त जोर आजमाइश हो रही है। ऐसे में देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सियासी जीवन से जुड़े एक चुनावी किस्से को भी याद करना जरूरी है। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को फौलादी इरादों और निर्भीक फैसलों के लिए जाना जाता है। देश और दुनिया की राजनीति में उन्हें प्रभावशाली नेता माना जाता रहा है। इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार और कुल चार बार देश की बागडोर संभाली।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि एक साल बाद 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी एक बार फिर चुनावी अखाड़े में उतरी थीं। इस उपचुनाव में एक नारा काफी बुलंद हुआ था- एक शेरनी सौ लंगूर,चिकमंगलूर चिकमंगलूर। इस नारे ने ऐसा जबर्दस्त असर दिखाया कि जोरदार घेरेबंदी के बावजूद इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को चुनाव हराकर बड़ी जीत हासिल की थी।
आपातकाल के बाद कांग्रेस के प्रति भारी असंतोष
यह रोचक और यादगार किस्सा 1978 का है। इंदिरा गांधी 1977 का लोकसभा चुनाव हार चुकी थीं। उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट पर राज नारायण ने इंदिरा गांधी को करीब 52,000 वोटों के अंतर से हराया था। इससे पहले भी चुनाव में अनियमितता के कारण इंदिरा गांधी का चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट रद्द कर चुका था।
आपातकाल के बाद देश में कांग्रेस पार्टी को लेकर भारी असंतोष था। आपातकाल के बाद देश में कांग्रेस के खिलाफ हवा बनी और दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ। ऐसे माहौल में कहा जाने लगा था कि अब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी काफी मुश्किल है।
हाथी पर सवार होकर बेलछी पहुंचीं इंदिरा
उन्हीं दिनों बिहार के नालंदा जिले के बेलछी में आठ दलितों समेत 11 लोगों की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने वहां का दौरा करने का फैसला किया। वे पीड़ितों के परिवारों से मिलने वहां पहुंचीं थीं। इंदिरा गांधी के इस दौरे ने दलितों के बीच मरहम का काम किया। कहा जाता है कि उस दौरे के समय नदी पार करने के लिए इंदिरा गांधी ने हाथी की सवारी की थी जिस दौरान उनकी साड़ी भी भीग गई थी। बेलछी की दलित महिलाओं ने उन्हें साड़ी दी थी जिसे उन्होंने झोपड़ी में पहना था।
इंदिरा गांधी का यह कदम कांग्रेस को नई संजीवनी देने वाला साबित हुआ। इंदिरा गांधी के दौरे के बाद दलितों में नया जोश दिखा। तब वहां नारा लगने लगा था- आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे। जानकारों का कहना है कि इंदिरा गांधी के इस दौरे ने कांग्रेस को नई ताकत दे दी।
एक शेरनी,सौ लंगूर का चर्चित नारा
इसके बाद इंदिरा गांधी के कमबैक की स्क्रिप्ट तैयार की गई। कांग्रेस में इंदिरा को वापस सत्ता की दहलीज तक लाने के लिए जोरशोर से रणनीति बनने लगी।
कांग्रेस की ओर से तैयार की गई विशेष रणनीति के तहत 1978 में उपचुनाव के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश की गई। यह सीट थी कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट। कांग्रेस के डीबी गौड़ा ने इस सीट पर जीत हासिल की थी मगर उनसे इस्तीफा दिलवाकर यह सीट खाली कराई गई।
यहां इंदिरा के सामने चुनौती सीएम वीरेंद्र पाटिल से भिड़ने की थी। ऐसे में इंदिरा गांधी के लिए एक नारे की भी खोज हुई। कांग्रेस नेता देवराज उर्स ने एक ऐसा नारा दिया जो चुनाव में चर्चा का विषय बन गया। उन्होंने नारा दिया था-एक शेरनी सौ लंगूर,चिकमंगलूर,चिकमंगलूर। हालांकि यह नारा भाषा की मर्यादा पर खरा नहीं उतरता था मगर उस उपचुनाव में यह नारा सबके बीच काफी लोकप्रिय हो गया।
जबर्दस्त घेरेबंदी के बावजूद इंदिरा ने जीता चुनाव
इंदिरा गांधी के लिए यह लड़ाई आसान नहीं मानी जा रही थी क्योंकि उन्हें हराने के लिए जनता पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इंदिरा गांधी के लिए यह लड़ाई अपना सियासी वजूद बचाने की थी। इसलिए उन्होंने भी प्रचार में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। चुनाव प्रचार के दौरान वे हर दिन 16-17 घंटे प्रचार किया करती थीं। इस चुनाव में जनता पार्टी की ओर से की गई जबर्दस्त घेरेबंदी के बावजूद इंदिरा गांधी ने वीरेंद्र पाटिल को करीब 77,000 मतों से हरा दिया था।
इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े 26 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
इंदिरा गांधी की इस जीत से कांग्रेस को काफी ताकत मिली। इसी साल कर्नाटक विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भी कांग्रेस को जबर्दस्त सफलता हासिल हुई और पार्टी ने 149 सीटों पर जीत हासिल की। जनता पार्टी को सिर्फ 59 सीटें ही मिल सकी थीं।
दो साल बाद सत्ता में इंदिरा की वापसी
चिकमंगलूर में मिली इस जीत के बाद यह लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ बन गया था और कांग्रेस ने करीब 18 साल तक की सीट पर लगातार अपना कब्जा बनाए रखा। 1978 के उपचुनाव के बाद 1996 के चुनावों में कांग्रेस का यह किला दरका और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। उस समय यह सीट जनता दल ने जीत ली थी। उसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004 और 2009 में यह सीट भाजपा के खाते में गई। हालांकि 2012 के उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन 2014 के चुनाव में भाजपा ने फिर सीट पर अपना कब्जा जमा लिया।
वैसे 1978 में इंदिरा इंदिरा गांधी को चिकमंगलूर के उपचुनाव में मिली जीत का असर बाद के दिनों में दिखाई पड़ा। 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी एक बार फिर सत्ता छीनने में कामयाब रहीं। हालांकि बाद में 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी थी।