×

Kashmir Ki Chudail Rani Story: कश्मीर की ‘चुड़ैल रानी’, जिसे जीते जी सही ढंग से पहचान नहीं मिली

Kashmir Story:।इस देश में सिर्फ रानी झांसी ही अकेली मर्दाना नहीं थी जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए बल्कि इसी देश में एक ऐसी रानी भी थी जिसे परिवार वालों ने त्याग दिया।

Akshita Pidiha
Published on: 18 May 2023 8:38 AM GMT

Kashmir Story: आज जब हमारे भारत में महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जब महिलाएं घर के बाहर तो क्या अंदर भी सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे देश में महिलाओं की वीरगाथा का इतिहास रहा है। इस देश में सिर्फ रानी झांसी ही अकेली मर्दाना नहीं थी जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए बल्कि इसी देश में एक ऐसी रानी भी थी जिसे परिवार वालों ने त्याग दिया। लेकिन उसकी चतुरबुद्धि के आगे अच्छे-अच्छों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है।

कहानी दिद्दा की वो जीवन यात्रा है जो एक अनचाही अपंग कन्या से शुरू होकर , कश्मीर के राजा की बीवी बनने और फिर विधवा होने के बाद राज्य संभालने ,कई युद्ध करने और युद्ध जीतने के लिए गुरिल्ला तकनीक ईजाद के प्रसंग से होती हुई उस दिलचस्प मोड़ से गुज़रती है, जहां संभवतः विश्व कि प्रथम कमांडो सेना , एकांगी सेना के बनने का घटनाक्रम वर्णित है।तो वहीं जिस बेटे के लिए जीवित रही उसके ही द्वारा महल से निकाले जाना , जनता से जुड़ाव जारी रखना , मंदिरों का निर्माण , सारे एशिया के साथ व्यापार और ईरान तक फैले अखंड भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए रणनीति निर्माण जैसे सन्दर्भ आपको इतिहास के उस दौर में ले जाते हैं जिसकी बात अक्सर होती ही नहीं है। रानी दिद्दा की कहानी आज के जमाने में और समसामयिक तब और हो जाती है ,जब बहुत-सी महिलाएं अपने संघर्षों भरी यात्रा के बाद सत्ता और ऊंचे पदों पर न सिर्फ बैठ रही हैं, बल्कि अपनी काबलियत से दुनियां को चौंका रही हैं।बिलकुल वैसे ही, जैसे 1200 साल पहले रानी दिद्दा ने किया था।

कौन थी दिद्दा

लोहार राजवंश (आज का हरियाणा, पंजाब ,पुंज राजोरी जिसका भाग था) में जन्मी एक खूबसूरत नन्ही बच्ची को उसके माँ बाप सिर्फ इसलिए त्याग देते हैं कि वो अपंग पैदा हुई । नौकरानी का दूध पीकर पली बढ़ी वो लड़की अपने अपंग होने को बाधा न मानते हुए युद्ध कला में पारंगत हुई और तरह तरह के खेलों में निपुणता हासिल की ।एक दिन आखेट के दौरान कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त ने जब उस खूबसूरत राजकुमारी दिद्दा को देखा तो पहली ही नज़र में दिल दे बैठा। यह जान लेने के बाद भी कि दिद्दा अपंग है , राजा क्षेमगुप्त ने उस से ब्याह रचाया और दिद्दा की किस्मत एक तरह से पलटी खा गयी।26 की उम्र में दिद्दा का व्याह हुआ ।उसे पति का प्यार , मान सम्मान , पुत्र रत्न तो मिला ही , साथ ही उसने क्षेमगुप्त के राज काज में भी भागीदारी निभानी शुरू कर दी। इस भागीदारी के सम्मान में अपनी पत्नी के नाम पर सिक्का जारी किया । वो ऐसा पहला राजा बना जो अपनी पत्नी के नाम से जाना गया।972 ईस्वीं में महराजा अभिमन्यु भी चल बसे । लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा। उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया और राजकाज चलाती रहीं।

सती होने से किया मना

एक दिन आखेट के दौरान सेनगुप्त की मृत्यु होते ही दिद्दा की ज़िन्दगी उस दौराहे पर खड़ी थी जहाँ एक तरफ पति कि मृत्यु का दुःख और सती हो जाने की परंपरा थी और दूसरी तरफ एक नन्हे राजकुमार के राज पाठ संभालने लायक होने तक उसके पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा की ज़िम्मेदारी निभाने वाली माँ का दायित्व ।मरते राजा को राज्य सुरक्षित हाथों में देने का प्रण उसे यकायक वो शक्ति दे जाता है कि जिसके चलते वो सती होने से मना कर देती है।दिलचस्प है पढ़ना कि कैसे समय समय पर दिद्दा ने पुरुष सत्तात्मक समाज के बने बनाए नियम तोड़े और अपने खुद के नियम बनाए।

दिलचस्प है दिद्दा का अपने वारिस को चुनने का तरीका

एक के बाद एक कई युद्धों के प्रसंगों के बाद दिलचस्प है दिद्दा का अपने वारिस को चुनने का तरीका। एक सशक्त राज्य एक काबिल शासक के हाथों में जाए यह सुनिश्चित करने के लिए भी दिद्दा का अपना ही तरीका था। अपने भांजों के बीच उसने एक अनूठी प्रतियोगिता रखी कि जो सबसे ज़्यादा सेब एक बार में अपने हाथों में समेटकर ले आएगा वो उसे ही सत्ता की बागडोर सौंप देगी।साफ़ है कि दिद्दा का वो अपना तरीका था पराक्रम और बुद्धि के सही संतुलन को आंकने का।

बदचलनी का लगा इल्जाम

दमार तब कश्मीर के ताकतवर ज़मींदार हुआ करता थे।उन्होंने एक और बार विद्रोह की कोशिश की । लेकिन दिद्दा ने उनकी भी कमर तोड़ दी।यहां तक कि अपने खिलाफ साजिश के आरोप में उन्होंने राज्य के सबसे ताकतवर मंत्री नंदिगुप्त को भी नहीं छोड़ा और उसे भी मरवा डाला।दिद्दा हालांकि इससे एक कदम और आगे गई। कल्हड़ के अनुसार जब उनके पोतों ने उन्हें राजगद्दी से हटाकर खुद बैठना चाहा तो उन्होंने अपने तीन पोतों की भी हत्या करवा दी। यानी दिद्दा ने अपनी गद्दी बचाने के लिए वो सभी पैतरें चले जो उस वक्त का कोई भी पुरुष शासक चलता था। लेकिन उन्हें दिद्दा महान नहीं कहा गया।बल्कि उनके नाम के साथ चुड़ैल, बदचलन जैसे विशेषण लगाए गए। वो भी तब जब दिद्दा के राज में कश्मीर ने खूब तरक्की की।और चार साल तक उनके राज्य को कोई खतरा नहीं हुआ।उन्होंने अपने बेटे और पति की याद में 64 मंदिरों का निर्माण कराया। मसलन श्रीनगर में उन्होंने एक शिव मंदिर बनाया जिसका नाम दिद्दा मठ था।आज भी इस जगह को दिद्दामर के नाम से जाना जाता है।

नारी शिक्षा एवं उत्थान

दिद्दा ने काफी परेशानियों का सामना किया। लेकिन समाज के लिए काम भी बखूबी किया। दिद्दा ने नारी शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम किया और अनेक प्रकल्प भी शुरू करवाए। साथ ही दिद्दा ने कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए लगभग 64 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया। इसमें से आज एक शिव मंदिर दिदारा मठ के नाम से जाना जाता था।

दिद्दा ने 1003 ईस्वीं तक कश्मीर पर राज किया।अंत में उन्होंने अपनी गद्दी अपने भाई के बेटे संग्रामराज को सौंप दी और 1003 ईस्वीं में ही उनकी मृत्यु भी हो गई। चुड़ैल लंगड़ी रानी के इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि इसने 35000 सेना की टुकड़ी के सामने 500 की छोटी सी सेना के साथ पहुंची और 45 मिनट में युद्ध जीत लिया।यह वही महान नायिका है जिसके पति ने अपने नाम के आगे पत्नी दिद्दा का नाम लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाना गया।

यह वही दिद्दा हैं जिनकी कहानियां भले ही इतिहास के पन्नों में धुंधली हैं। लेकिन इस देश ने रानी दिद्दा के रूप में वो महानायिका दी है कि जिसने अपनी शर्तों पर अपने बनाये नियमों के अनुरूप पुरुषवादी पितृसत्तात्मक इस समाज को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि कई मौकों पर ठेंगा भी दिखाया ।

Akshita Pidiha

Akshita Pidiha

Next Story