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Navratri Puja in Kashmir: 75 साल बाद, कश्मीर के मंदिर में नवरात्रि पूजा !!

Navratri Puja in Kashmir: इस बुरी तरह से खंडहर हो चुके मंदिर में नियमित रूप से या कहें कभी भी , किसी तरह की पूजा अर्चना नही होती थी।

Nirala Tripathi
Written By Nirala Tripathi
Published on: 23 Oct 2023 9:57 AM GMT
Kashmir Navratri puja
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Kashmir Navratri puja  (photo: social media )

Navratri Puja in Kashmir: कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के टिट वाल स्थित मां शारदा मंदिर में पिछले 75 सालों में पहली बार, नवरात्रि का पर्व, मां शारदा की पूजा अर्चना वा आरती के साथ बेहद धूम धाम से मनाया जा रहा है। यह मंदिर लाइन ऑफ कंट्रोल से कुछ ही दूरी पर टिटवल नामक जगह के पास, किशनगंगा नदी जिसे नीलम नाम से भी जाना जाता है के तट पर स्थित है। यह कुपवाड़ा से 30 किमी की दूरी पर हैं।

यह मंदिर सदियों से प्राकृतिक आपदाओं व मानव उपेक्षा के साथ ही साथ 1947 में भारत पे हुएं कबाइली व पाकिस्तानी आक्रमण में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था, कबाइलियों ने इस पूरी घाटी को लूटने के बाद, आग के हवाले कर दिया था।

कश्मीरी पंडित बीते काफ़ी समय से लगभग 2300 वर्ष पुराने इस शारदा पीठ के जीणोद्धार की मांग कर रहे थे। इसी साल मार्च के महीने में, घाटी में चल रही मंदिर पुनर्निर्माण योजना के तहत् इसका उद्घाटन ग्रह मंत्री अमित शाह ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए किया था। श्रृंगेरी मठ ने ही मां शारदा की भव्य मूर्ति मंदिर में स्थापित की है, जो की इस मंदिर का रखरखाव भी करता है।


कुषाण कालीन खंडहर

इस बुरी तरह से खंडहर हो चुके मंदिर में नियमित रूप से या कहें कभी भी , किसी तरह की पूजा अर्चना नही होती थी। इतिहास के जानकर कहते है कि इस मंदिर को 237 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने बनवाया था , माना जाता है कि यह पीठ तीन शक्तियों का संगम भी है। शारदा पीठ कभी भारतीय उप महाद्वीप में ज्ञान का एक बड़ा केंद्र हुआ करती थी , कहते है कि सनातन मत के प्रमुख शैव व वैष्णव सम्प्रदाय के जनक आदि गुरु शंकराचार्य व आचार्य रामानुज़ाचार्य भी यहां रहें हैं।

शारदा पीठ के अवशेष आज भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की नीलम नदी घाटी में बिखरे पड़े है। इतिहासकारों द्वारा माना जाता है कि इस पीठ विश्विद्यालय की शुरुआत लगभग पहली शताब्दी में कुषाण साम्राज्य के दौरान हुई थी। बौद्ध धर्म व दर्शन के प्रचार प्रसार के प्रमाण भी यहां पाएं गए है। कहते है शारदा लिपि की खोज यहीं से हुई।


1947 के पहले कश्मीरी पंडित व अन्य हिंदू दर्शनार्थी, नीलम घाटी तक जाने वाली मां शारदा यात्रा इसी मार्ग से करते थे। मां शारदा मंदिर का ये पुनर्निर्माण, शारदा सभ्यता व लिपि की और बेहतर खोज के लिए एक अच्छी शुरुआत हो सकती है जो की मानव के क्रमिक विकास वा हमारी पुरातन संस्कृति की एक अमूल्य विरासत है।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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