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 कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार की द्विस्तरीय रणनीति

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने द्विस्तरीय रणनीति अपनाई है | जहाँ एक ओर तो सेना लगातार आतंकवादियों के सफाये में लगी हुई है, वहीं दूसरी ओर घा

tiwarishalini
Published on: 10 Nov 2017 12:31 PM IST
 कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार की द्विस्तरीय रणनीति
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नई दिल्ली: कश्मीर समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने द्विस्तरीय रणनीति अपनाई है | जहाँ एक ओर तो सेना लगातार आतंकवादियों के सफाये में लगी हुई है, वहीं दूसरी ओर घाटी में शांति स्थापित करने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बातचीत का रास्ता अपनाने का भी ऐलान किया है। बातचीत के लिए केंद्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूर्व आईबी चीफ दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त किया गया।

राजनाथ की इस घोषणा के तुरंत बाद जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शांति बहाली के लिए बातचीत की पहल का स्वागत करते हुए कहा कि घाटी की अवाम हथियारों में फंस गई है और वो इससे बाहर निकलना चाहती हैं। ये बहुत ही अच्छी पहल है और ये कामयाब होनी चाहिए।

किंतु दूसरी ओर नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने सरकार की इस पहल को पाकिस्तान एंगल दे दिया। अब्दुल्ला ने कहा कि घाटी की समस्या में पाकिस्तान भी एक पार्टी है, अतः केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों से बातचीत पर्याप्त नहीं है, बल्कि पाकिस्तान से भी बात करनी पड़ेगी।

बैसे अब्दुल्ला का यह रुख कोई अचरज की बात नहीं है। आजादी के पूर्व से ही यह खानदान संदिग्ध आचरण वाला रहा है। इसके बाद भी वे सदा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नजदीकी बने रहे।

कांग्रेस सरकारों ने एक तथ्य देश की जनता से सदा छुपाया है कि, कश्मीर के महाराज हरिसिंह एकमात्र ऐसे राजा थे जिन्होंने 1931 की गोलमेज कान्फ्रेंस में भारत को स्वतंत्र किए जाने की पेशकश की थी। उनकी इस हरकत से नाराज ब्रिटिश सरकार ने महाराज के खिलाफ वहां के मुसलमानों को भड़काया व अपने करीबी शेख अब्दुल्ला को काफी अंहमियत दी। आरोप तो यहाँ तक है कि शेख अब्दुल्ला ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसी के लिए काम करते थे। ब्रिटिश सरकार ने ही उनकी मदद से गुलाम अब्बास व मीर वाइज युसुफ के जरिए मुस्लिम कांन्फ्रेंस का गठन करवाया था जिसने 1930 में सोपोर के अपने अधिवेशन में किसी मुसलमान को राज्य का शासक बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था।

शेख अब्दुल्ला के दबाव में ही कश्मीर के लिए संविधान में अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया गया था जो कि आज भी हमारे गले की हड्डी बनी हुई है। तत्कालीन विधि मंत्री डा. भीमराव अंबेडकर इसके सख्त खिलाफ थे व उन्होंने संविधान सभा में इसे पारित करवाने से भी इंकार कर दिया था। मगर नेहरु के एक अन्य मंत्री गोपाल स्वामी आयंगर ने यह प्रस्ताव पेश किया। गुप्तचर ब्यूरो के पहले निदेशक बीएन मलिक ने अपनी किताब ‘माई डेज विद नेहरु’ में लिखा है शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान व अमेरिका की मदद से कश्मीर को आजाद देश घोषित करने की तैयारी कर रहे थे मगर नेहरु यह बात मानने को ही तैयार नहीं थे।

पूरी योजना के तहत 15 अगस्त को अब्दुल्ला श्रीनगर में आजाद रियासत की घोषणा करते व उसके तुरंत बाद पांच योरोपीय देश और पाकिस्तान उसे मान्यता दे देते। इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना वहां दाखिल हो जाती। इस साजिश के दस्तावेज तक नेहरु को दिए गए। अंततः रफी अहमद किदवई के हस्तक्षेप करने पर जवाहर लाल नेहरु को शेख अब्दुल्ला के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी व सेना ने उसे गिरफ्तार कर लिया व सदरे रियासत ने उसे प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। यह अलग बात है कि बाद में नेहरु ने शेख अब्दुल्ला के खिलाफ इस साजिश का मुकदमा वापस ले लिया।

कश्मीर आपरेशन के प्रमुख जनरल हरबख्श सिंह थे उन्होंने नेहरु से कहा था कि अगर उन्हें 24 घंटे दे दिए जाते तो वे समूचे कश्मीर को पाक हमलावरों से खाली करवा लेंगे मगर नेहरु ने उनकी बात नहीं मानी। अतः कोई अचम्भे की बात नहीं है, कि आज के अब्दुल्ला कल के अब्दुल्ला की तरह ही व्यवहार करते नजर आ रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि देश का मीडिया उसे महत्वहीन बनाने की रणनीति बनाए, किन्तु क्या ऐसा हो पायगा ?

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tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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