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आज का इतिहास: रो देंगे केदारनाथ आपदा का दर्द सुनकर, आज भी इंतजार में खुले हैं दरवाजे

Kedarnath Tragedy 16 June: नौ साल पहले उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के रौद्र रूप से हर तरफ तबाही ही तबाही मच गई थी।

Vidushi Mishra
Published on: 16 Jun 2022 8:00 AM IST (Updated on: 16 Jun 2022 8:01 AM IST)
Kedarnath Tragedy 16 June
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Kedarnath Tragedy 16 June (फोटो-सोशल मीडिया)

Kedarnath Tragedy 16 June: इतिहास की सबसे खौफनाक घटनाओं में से एक केदारनाथ आपदा के नौ साल गुजर चुके हैं, लेकिन उस पल को याद भर कर लेने से रूह कांप जाती है। 16 जून 2013 को केदारनाथ समेत कई पर्वतीय जिलों में आई जलप्रलय जोकि चार हजार से ज्यादा लोगों को बहा ले गई थी। आज तक उस आपदा में गुम हुए हजारों लोगों का पता न चल पाया है। कभी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस कदर कुदरत कहर ढाएगा, जिसके आगे किसी का बस नहीं चलेगा।

नौ साल पहले मंदाकिनी नदी के रौद्र रूप से हर तरफ तबाही ही तबाही मच गई थी। पहाड़ के पहाड़, नदियां, झरने सभी उल्ट पुल्ट हो गए थे। जलप्रलय, बादल फटना हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी था। आज भी उस समय की कुछ तस्वीरें देख आत्मा कांप उठती है। मात्र कुछ घंटों ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। केदारनाथ में इस जलप्रलय से भीषण आपदा आई थी। करीबन चार हजार से ज्यादा यात्रियों का आज तक कोई पता नहीं चला है। अभी भी कई लाशें दबी पड़ी मिलती है।

जलप्रलय से कांप उठा था उत्तराखंड

साल 2013 का जिक्र उत्तराखंड में करते ही लोगों की आंखें भर आती है। अपनी आंखों से सामने से पानी में बहते बच्चे, परिवारजनों की चीखें आज भी लोगों के जिहन से नहीं निकल सकी हैं। बूढ़ी-बूढ़ी आंखें अपने बेटे बहू पोते के इंतजार में दिन गिन रही हैं। काश किसी दिन सामने से उनका पोता दादी-दादी चिल्लाता आ जाए। लेकिन सच से हर कोई वाकिफ है।

इस जलप्रलय से साल 2013 में सबसे ज्यादा नुकसान केदारनाथ धाम को हुआ था। उस समय भी यात्रा जारी थी। यात्रियों का तांता लगा हुआ था। लेकिन कुछ पल में धाम में सिवाए मंदिर परिसर के कुछ नहीं बचा। बाढ़ की वजह से सब कुछ तहस-नहस हो गया। चौराबाड़ी में झील लगातार 24 घंटें बारिश होने की वजह से टूट गई।

जलप्रलय (फोटो-सोशल मीडिया)

झील टूटने की वजह से पानी पहाड़ के नीचे आ गया, फिर भीषण जलप्रलय आ गई। इस जलप्रलय में करीबन 4400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। कई महीनों तक रेस्क्यू कार्य होने के बाद भी 55 लोगों के नरकंकाल मिले थे। पुलिस के पास 3,886 गुमशुदगी दर्ज हुई जिसमें से विभिन्न सर्च अभियानों में 703 कंकाल बरामद किए गए थे।

बीते कई सालों तक जगह-जगह दबे हुए शव मिले। तबाही इतनी ज्यादा भयावह थी, कि रेस्क्यू कार्य करने में महीनों बीत गए। अपने की तलाश में दर-बदर लोग भटकते रहे, काश कोई मिल जाए, लेकिन प्रकृति के तांडव से कुछ नहीं बचा था।

विशाल पत्थर भीम शिला

भीम शिला (फोटो-सोशल मीडिया)

2013 के जलप्रलय के बारे में कहा जाता है जिस समय केदारनाथ धाम में भयंकर बाढ़ आई, उस समय मंदिर के ठीक पीछे ऊपर से बहकर एक बड़ा विशाल पत्थर आकर मंदिर के तुरंत पहले रूक गया। जिससे बाढ़ की रफ्तार को थाम लिया। इस विशाल पत्थर ने बाबा के मंदिर को सुरक्षित कर दिया था।

जिसके बाद से केदारनाथ धाम में उस पत्थर को भीम शिला के नाम से जाना जाता है। इस जलप्रलय से केदारनाथ धाम से लेकर नीचे उत्तराखंड तक करीब 2241 होटल, धर्मशाला एवं अन्य भवन पूरी तरह तबाह हो गए थे। मुसीबत में फंसे लोगों को, यात्रियों को, वहां रहने वालों को बचाने के लिए पुलिसकर्मियों और एनडीआरएफ की टीम ने अपनी जान पर खेलकर लगभग 30 हजार लोगों को बचाया था। साथ ही यात्रा मार्ग एवं केदारघाटी में फंसे करीबन 90 हजार से अधिक लोगों को वायुसेना द्वारा प्रलय के दौरान सुरक्षित बचाया गया था।

लगातार 9 सालों के प्रयासों के बाद से केदारनाथ धाम की यात्रा फिर से सुचारू रूप से शुरू हो गई है। यात्रियों की सुविधा के लिए बाबा के मंदिर तक मोबाइल के टॉवर लग गए हैं। मौसम का हर पल ध्यान रखा जाता है। जैसा मौसम होता है उस हिसाब से यात्रा के शुरू रहने की मंजूरी दी जाती है।



Vidushi Mishra

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