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केरल में असम-बंगाल के मजदूरों की आफत

raghvendra
Published on: 24 Aug 2018 8:03 AM GMT
केरल में असम-बंगाल के मजदूरों की आफत
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कोच्चि: केरल में आयी बाढ़ से यहां के कॉफी बागानों में काम करने वाले असम व बंगाल के मजदूरों पर दोहरी मार पड़ी है। केरल के कोडागू स्थित कॉफी, काली मिर्च और सुपारी के बागानों में असम और बंगाल के ढेरों मजदूर बरसों से काम करते आए हैं। इस बार की बाढ़ में कोडागू के बागान बुरी तरफ बर्बाद हो गए हैं जिस कारण बागान के मजदूर राहत शिविर में रहने को मजबूर हैं। ये मजदूर बागानों में रहते थे जहां उनके आशियाने बाढ़ में बह चुके हैं।

अब प्रशासन ने तय किया है कि अगर कोडागू के बागान मालिक अपने मजदूरों की देखरेख करने को आगे नहीं आए तो सभी मजदूरों को उनके गृह राज्यों में वापस भेज दिया जाएगा। मजदूर भी समझ नहीं पा रहे हैं कि वो क्या करें क्योंकि अधिकांश बागान मालिक बाढ़ से बचने के लिए बंगलुरु या मैसूर शिफ्ट हो चुके हैं और किसी ने अपने कर्मचारियों की कोई खबर नहीं ली है।

३३ वर्षीय नूर हसन महीना भर पहले नेशनल रजिस्टर फार सिटिजन्स में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए सोनितपुर (असम) स्थित अपने घर गया था। कुछ दिन पहले वो कोडागू लौटा तो पाया कि मदापुरा स्थित दुर्गादेवी एस्टेट में अब उसके लिए कोई काम नहीं है क्योंकि बाढ़ और भूस्खलन से सब खत्म हो चुका है। इस बागान में काम करने वाले नूर हसन के ६४ अन्य असमिया मजदूर अब राहत शिविर में पड़े हैं। इसी तरह गुवाहाटी के एनुद्दीन अली को अपने मालिक का इंतजार है क्योंकि उसके पास वापस घर लौटने के लिए पैसे नहीं हैं। बंगाल में हुगली का सुनील बेसरा यहां ११ साल से काम कर रहा है और अब वापस नहीं जाना चाहता, लेकिन मजबूर है क्योंकि जिस बागान में वो काम करता था अब वह नष्टï हो चुका है।

कोडागू के बागानों में काम के ढेरों अवसर होने के कारण असम व बंगाल के मजदूरों की यहां भरमार है। हर मजदूर को रहने की जगह और २७८ रुपए रोजाना मजदूरी मिलती है। इनका काम माली का काम करना, कीटनाशक का छिडक़ाव करना, सफाई करना आदि होता है। पुरुषों के साथ उनके घर की महिलाएं भी बागानों में वही काम करती हैं।

बाहरी लोगों के खिलाफ गुस्सा

यहां बाहरी मजदूरों के लिए लोकल लोगों में अच्छा खासा गुस्सा भी है। बाहरी लोगों की संख्या बढऩे के साथ ये गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि लोकल लोग महसूस करने लगे हैं कि उनके हाथों से काम छिनता चला जा रहा है। एक राहत शिविर में काम कर रहे स्वयंसेवक ने कहा, वे लोग यहां आते हैं और हमारा काम छीन लेते हैं। अगर वो यहां बने रहे तो हमें बाहर जाना पड़ जाएगा। इस राहत शिविर में १३३ असमिया और २५ बंगाली रह रहे हैं। थ्रिसूर, एरनाकुलम, कोट्टïायम, अलपुझा और पथानमथित्ता के राहत शिविरों में प्रवासी मजदूरों की भरमार है। मजदूरों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि बहुत से मजदूरों को जबरन भगाया गया है और कई तो राहत शिविरों में हो रहे भेदभाव के कारण चले गए हैं। बताया जाता है कि कई राहत शिविरों में स्थानीय लोगों ने प्रवासियों के संग रहने से इनकार कर दिया था।

प्रवासियों की भरमार

केरल में करीब २५ लाख प्रवासी मजदूर हैं और हर साल करीब ढाई लाख नए प्रवासी आ जाते हैं। कोच्चि से ४५ किमी दूर पेरुम्बूर को केरल में प्रवासी मजदूरों का गढ़ कहा जाता है। यहां दो लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते हैं और अधिकांश यहां की प्लाईवुड फैक्ट्रियों में काम करते हैं। यहां से प्रवासी मजदूरों को वापस पहुंचाने के लिए रेलवे द्वारा स्पेशल ट्रेनें चलायी गयी हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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