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किसानों का प्रायश्चित उपवास और गांधी का शहीद दिवस

गणतंत्र दिवस के दिन किसान आंदोलन की ट्रैक्टर रैली के दौरान भड़की हिंसा और लालकिले पर हुई शर्मनाक घटनाओं के बाद लगने लगा था कि किसान आंदोलन अब मर गया। हुआ भी कुछ ऐसा ही हमारे शांतिप्रिय गांधी के अनुयायी देश में विरोध प्रदर्शन सबकुछ बर्दाश्त कर लिया जाता है।

Ashiki
Published on: 29 Jan 2021 5:18 AM GMT
किसानों का प्रायश्चित उपवास और गांधी का शहीद दिवस
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किसानों का प्रायश्चित उपवास और गांधी का शहीद दिवस

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: अब किसान आंदोलन की खोई साख वापस लौटाने के लिए किसानों का विश्वास जगाने के लिए किसान आंदोलन के नेता गांधी के प्रायश्चित और शुद्धिकरण उपवास का सहारा ले रहे हैं। वो भी गांधी के शहीद दिवस के दिन। क्या उनका उपवास कारगर होगा या राजनीतिक उपवास बनकर उपहास का पात्र हो जाएगा। ये वक्त बताएगा। लेकिन गांधी आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा हैं यह सत्य है।

प्रदर्शनकारियों से एक बड़ा तबका सहानुभूति रखता है

गणतंत्र दिवस के ऐतिहासिक राष्ट्रीय पर्व के दिन किसान आंदोलन की ट्रैक्टर रैली के दौरान भड़की हिंसा और लालकिले पर हुई शर्मनाक घटनाओं के बाद लगने लगा था कि किसान आंदोलन अब मर गया। हुआ भी कुछ ऐसा ही हमारे शांतिप्रिय गांधी के अनुयायी देश में विरोध प्रदर्शन सबकुछ बर्दाश्त कर लिया जाता है। विरोध और प्रदर्शन कर रहे लोगों से एक बड़ा तबका सहानुभूति भी रखता है कि जिसे दर्द होता है वही चिल्लाता है। या जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई।

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गलती स्वीकारने की जगह सरकार का दोषारोपण

लेकिन हिंसा का छोटा सा कतरा हमारा देश बर्दाश्त नहीं कर पाता। इसी लिए अपनी मांगों को लेकर दिल्ली गए हजारों किसान दिल्ली में हुई हिंसा और लालकिले में हुए उत्पात से शर्मसार होकर अपने घरों को लौट गए। इस हिंसा के बाद वह अपना दर्द और तकलीफ भूल गए। फिलहाल ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा को लेकर किसान संगठन बैकफुट पर हैं। हिंसा के लिए अब भी वह अपनी गलती स्वीकारने की जगह सरकार का दोषारोपण अधिक कर रहे हैं। आंदोलन को पिकनिक स्थल बनाने और ट्रैक्टर रैली को इवेंट बनाने की गलती अब भी उन्हें नहीं दिख रही है।

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इस ऐतिहासिक घटना का जिक्र करना जरुरी

चूंकि बात गांधी के शहीद दिवस से जुड़ रही है ऐसे में महात्मा गांधी के कलकत्ता प्रवास व अनशन की ऐतिहासिक घटना का जिक्र आवश्यक हो जाता है। 1946-47 में जब सांप्रदायिक दंगों की तपिश बंगाल में भी महसूस की जाने लगी थी और 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में बड़े पैमाने पर दंगे व नरसंहार का सिलसिला आरंभ हो गया था। जिसमें लाखों की संख्या में लोगों की मौत व महिलाओं के बलात्कार की घटनाएं हुई। यहां तक कि त्रिपुरा तक इसकी आंच जा पहुंची थी।

बढ़ते तनाव को देखते हुए मई, 1947 में गांधी जी ने एचएस सुहरावर्दी, शरत चंद्र बोस व श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ बैठक की। सुहरावर्दी के आग्रह पर वे कलकत्ता में ही रुके। यह वही हैदरी मंजिल था, जहां गांधी जी ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी का लम्हा महसूस किया था। उस समय बेलियाघाटा के इस इलाके को मुस्लिम बाहुल्य होने की वजह से मियांबागान के नाम से जाना जाता था। हैदरी मंजिल में गांधी जी 13 अगस्त 1947 को पहुंचे थे।

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'गो बैक गांधी' के लगे थे नारे

यहां उन्हें हिंदुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था। लोगों ने गो बैक गांधी के नारे लगाये थे। 14 अगस्त 1947 को गांधी जी ने मारवाड़ी क्लब में कहा था कि 'टूमोरो वी विल वी फ्री फ्राम द स्लेवरी ऑफ ब्रिटिश राज, बट फ्राम मिड नाइट इंडिया विल वी कट इनटू टू पार्ट' और दूसरे ही दिन भारत का विभाजन हो चुका था। उस दिन गांधी जी ने उपवास व प्रार्थना के साथ अपना दिन व्यतीत किया था। 24 तारीख को कलकत्ता में यह खबर आग की तरह फैल गयी थी कि गांधी जी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी है।

उसी दिन गृहमंत्री भी उनसे मिलने हैदरी मंजिल पहुंचे थे। गांधी जी ने उनसे कहा था कि 'हाउ फार्चुनेट वुड आइ कनसीडर माइसेल्फ टू बी इफ समवन वेयर टू शूट मी ('How Fortunate Would I Consider Myself To Be If Someone Where To Shoot Me')।'

उल्लेखनीय है कि बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु भी उन दिनों गांधी जी से लगातार मुलाकात करनेवालों में शामिल थे। हैदरी मंजिल तो मानो जैसे तीर्थस्थल बन गया था। फिर से 31 अगस्त 1947 को दंगा भड़क चुका था, मुस्लिम बहुल समुदाय की एक सभा को संबोधित करने के दौरान लोगों ने गांधी जी पर लाठी डंडे से हमला कर विरोध जाहिर किया था।

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गांधी जी ने आमरण अनशन किया आरंभ

उसके बाद 01 सितंबर की सुबह 8 बजकर 15 मिनट से गांधी जी ने शांति वापस लौटाने की अपील के साथ आमरण अनशन आरंभ किया। तत्कालीन बंगाल के गर्वनर सी राजगोपालाचारी ने उनसे अनशन तोड़ने का आग्रह भी किया था। लेकिन गांधी जी नहीं माने। अंत में 73 घंटे के अनशन के बाद दंगाइयों ने गांधी जी के सामने अपने हथियार डाल दिये और उनसे क्षमा मांगी। उसके बाद 07 सितंबर तक गांधी जी हैदरी मंजिल में रहने के बाद दिल्ली रवाना हो गये। गांधी तो लेश मात्र हिंसा बर्दाश्त नहीं करते थे। किसी के उनको गोली मार देने पर भी वह खुद को भाग्यशाली मानते। विरोध, सत्याग्रह सब ठीक है लेकिन किसी को कष्ट या पीड़ा पहुंचाकर यह नहीं होना चाहिए।

किसान नेता कह रहे हैं कि गणतंत्र दिवस के दिन जो हुआ, वो शर्मनाक हुआ और वो शर्मिंदा हैं। यह सही है कि कोई भी आंदोलन तभी सफल होता है, जब दोनों ओर से सहयोग हो। अड़ियल रुख छोड़कर बातचीत होनी चाहिए। किसानो का प्रायश्चित के लिए 30 जनवरी को एक दिवसीय उपवास कितना कारगर होगा ये तो वक्त बताएगा। लेकिन सफलता के लिए गांधी का रास्ता सही था। सही है और आगे भी सही रहेगा।

Ashiki

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