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किसान विरोधः फसलें जला देंगे ‘आंदोलनजीवी’, तो फिर देश खाएगा क्या
जरूरत पड़ी तो किसान फसलें फूंक कर आंदोलन चलाएंगे। टिकैत की ये बात गंभीर है। अगर ऐसा हुआ तो केंद्र सरकार बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जाएगी और राष्ट्रीय स्तर पर उसकी बहुत अधिक फजीहत होगी।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: किसान आंदोलन कर रही देश की 40 किसान यूनियनों के संयुक्त मोर्चे के प्रवक्ता राकेश टिकैत का ये कहना कि सरकार इस गलतफहमी में न रहे कि फसल काटने के समय आंदोलन स्थल से लौट जाएंगे। उन्होंने कहा कि हम फसलें भी देखेंगे और आंदोलन भी चलाएंगे। और जरूरत पड़ी तो किसान फसलें फूंक कर आंदोलन चलाएंगे। टिकैत की ये बात गंभीर है। अगर ऐसा हुआ तो केंद्र सरकार बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ जाएगी और राष्ट्रीय स्तर पर उसकी बहुत अधिक फजीहत होगी।
ताकि चुनावों में भाजपा को न झेलना पड़े विरोध
पिछले दिनों भाजपा से जुड़े किसान नेताओं और पदाधिकारियों की बैठक में किसान आंदोलन के जवाब में कृषि विधेयकों के फायदे गिनाने का अभियान छेड़ने का फैसला हुआ है। ताकि पंजाब में निकाय चुनाव में जो हुआ वह आने वाले चुनावों में भाजपा को न झेलना पड़े।
पिछले चार साल में देश में हुए गेहूं उत्पादन बार यह सबसे अधिक
समझने की बात ये है कि देश के कुल उत्पादन का करीब 90 फीसद गेहूं छह राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार से होता है। बेमौसमी बारिश के बावजूद हमारे किसानों ने अपने श्रम से गेहूं उत्पादन के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इन किसानों ने 2019-20 में 107.17 मिलियन टन गेहूं पैदा किया। पिछले चार साल में देश में हुए गेहूं उत्पादन की तुलना की जाए तो इस बार यह सबसे अधिक रहा है।
अगर आंकड़ों में देखा जाए तो उत्तर प्रदेश 32089.2, मध्य प्रदेश 18583.1, पंजाब 18206.5, हरियाणा 12072, राजस्थान 10573, बिहार 6545, गुजरात 3261, महाराष्ट्र 2076.1, उत्तराखंड 1002.4, पश्चिम बंगाल 582.8, हिमाचल प्रदेश 564.6, झारखंड 430.6, कर्नाटक 207.9, छत्तीसगढ़ 143.7, असम 23.4, उड़ीसा 0.2 मिलियन टन गेहूं उत्पादन करता है।
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गेहूं उत्पादन में हरियाणा चौथे नंबर पर
देश में कुल 16 राज्यों में गेहूं उत्पादन होता है। कुल उत्पादन की बात की जाए तो हरियाणा चौथे नंबर पर आता है। जबकि प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन में पंजाब के बाद दूसरा स्थान है।
इसी तरह से अगर धान को देखें तो 5 दिसबंर 2020 तक पूरे देश में जो 336.67 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई है उसमें 60.23 फीसदी पंजाब (202.77 लाख मीट्रिक टन), हरियाणा से 17 फीसदी, उत्तर प्रदेश से 8 फीसदी, तेलंगाना से 7 फीसदी, उत्तराखंड से 3 फीसदी, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु से 1-1 फीसदी है जबकि अन्य राज्यों का प्रतिशत 2 फीसदी है।
इन आंकड़ों से आंदोलन कर रहे किसानों की स्थिति स्पष्ट होती है चूंकि पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश सबसे उपज के उत्पादन के मुकाबले में सबसे आगे हैं इसलिए इनको नये कृषि कानूनों से फर्क अधिक पड़ता है। एमएसपी को लेकर इनकी चिंता भी इसीलिए जायज है। क्योंकि इन्हें भय है कि कारपोरेट सेक्टर के खरीद शुरू करने पर एमएसपी धीरे धीरे खत्म कर दी जाएगी।
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किसान आंदोलन में पंजाब-हरियाणा के किसान सबसे आगे
यही वजह है कि किसान आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के ही किसान सबसे आगे दिखायी दे रहे हैं? इन किसानों को जाट गूजर और जातियों के खांचे में रखकर देखने का तरीका गलत है। क्या कृषि कानूनों से किसानों को ही परेशानी होगी? इसका जवाब तलाशने के लिए आपको अपने खाने की थाली को देखना होगा। आम आदमी सबसे ज्यादा क्या खाता हैं? रोटी, चावल, दालें और सब्जियां, पंजाब और हरियाणा में लोग चावल कम खाते हैं लेकिन वे धान बहुत उगाते हैं।
यहां का धान देश के बाकी हिस्सों के लोग खाते हैं। अन्न का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब और हरियाणा देश की खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज का प्रमुख स्रोत हैं। दोनों ही राज्यों में खेती लोगों की कमाई का प्रमुख जरिया है। नए कानूनों से दोनों राज्यों के किसानों को एक बने बनाए सिस्टम पर संकट दिख रहा है इसलिए वे विरोध कर रहे हैं और आंदोलनरत हैं। किसानों की बात अगर अनसुनी की गई तो भारतीय जनता पार्टी को राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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