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जब शराब के प्याले में डूब गई अमृतसर की लाल कोठी .... एक अनसुनी कहानी

ये लाल कोठी है। मेरठ की नहीं, अमृतसर की। ये दोनों कोठियां देश के दो राज्यों में अलग-अलग जिलों में जरूर हैं, लेकिन इन दोनों में एक ऐतिहासिक समानता है।

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Published on: 11 Aug 2017 5:47 PM IST
जब शराब के प्याले में डूब गई अमृतसर की लाल कोठी .... एक अनसुनी कहानी
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जब शराब के प्याले में डूब गई अमृतसर की लाल कोठी .... एक अनसुनी कहानी

ब्यूरो : ये लाल कोठी है। मेरठ की नहीं, अमृतसर की। ये दोनों कोठियां देश के दो राज्यों में अलग-अलग जिलों में जरूर हैं, लेकिन इन दोनों में एक ऐतिहासिक समानता है। मेरठ की लाल कोठी जहां स्वाधीनता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रही है, वहीं अमृतसर की लाल कोठी सौ साल के इतिहास की गवाह। कहा जाता है कि अमृतसर में होने वाले भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान कुछ समय के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू इसी लाल कोठी में रुके थे।

अमृतसर के सिविल लाइंस यानी क्वींस रोड व कूपर रोड के बीच स्थित लाल कोठी की दीवारें बेशक बूढ़ी हो चुकी हैं लेकिन इसका अतीत गौरवान्वीत रहा है। अमृतसर की कुछ चुनिंदा पुरानी व प्रसिद्ध इमारतों में से एक इस लाल कोठी का निर्माण अमृतसर के प्रसिद्ध कपड़ा कारोबारी रामचंद्र ने लगभग 1876 ई. में करीब 50 हजार रुपये की लागत से करवाई थी।

लाल रंग की तीन मंजिली यह इमारत तत्कालीन अमृतसर की कोठियों में सबसे उंची कोठी के रूप में शुमार थी। इसके छत से श्री हरिमंदिर साहिब में बने बुंगो का दीदार किया जा सकता था। उस दौर में इस कोठी में फौव्वारे से लेकर स्वीमिंग पुल तक यानि कि विलासिता के वे सभी साधन मौजूद थे जो होने चाहिए। एक विस्तृत भूभाग के बीच बनी लाल कोठी की फुलवारी को सींचने के लिए छह माली तैनात थे।

वास्तुकला का उम्दा नमूना

इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ की मानें तो उस समय शहर के हाल गेट के सामने टैंप्रस हाल हुआ करता था, जिसे वर्तमान में पिंक प्लाजा मार्केट के नाम से जाना जाता है। वहां पर कभी टैंप्रस सोसायटी के लोग नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया करते थे। इनमें प्रमुख थे मास्टर संतराम व मास्टर कुंदल लाल।

कोछड़ के मुताबिक लाल कोठी वर्तानवी, मुगल व राजपूत कालीन वास्तु शैली का उम्दा प्रदर्शन है। जबकि केंद्रीय यूनिवर्सिटी बठिंडा के मध्यकालीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सुभाष परिहार के मुताबिक इसका निर्माण यूरोपियन वास्तुशैली के मुताबिक किया गया है। वहीं गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के आर्किटेक्टचर विभाग के प्रो. संदीप कुमार का कहना है कि यह इमारत लगभग सौ साल से अधिक पुरानी है।

किसी भी इमारत के निर्माण में तत्कालीन भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखा जाता है। लाल कोठी के निर्माण में इन्हीं चीजों को ध्यान में रखा गया है। पहला यह कि इसकी दोनों मंजिलों की दीवारें काफी उंची और मोटी हैं। जबकि इनमें लगाए गए झरोखे जालिदार हैं जो मुगलकालीन वास्तु शैली को दर्शाती है, वहीं इसकी छत बनाने में प्रयोग किया गया तरीका ब्रिटिश आर्किटेक्चर को दर्शाता है।

प्रो. संदीप के मुताबिक ब्रिटिश काल में जिन इमारतों का निर्माण किया जाता था वह काफी ऊंची होती थी और दीवारों पर मिट्टी का लेप लगाकर प्लास्टर किया जाता था ताकि बाहर के तापमान से कमरों के अंदर के तापमान को कम रखा जाय और ये दोनों चीजों का लाल कोठी के निर्माण में ध्यान रखा गया है। चारों तरफ से मेहराबदार बरामदों के मध्य बनी इस भव्य कोठी के फर्श व दीवारों पर लगाई गई इटैनियल टाइल्स यानि कि अपने निर्माण के सौ साल से भी अधिक समय के बावजूद अपनी आभा विखेर रही हैं।

कोठी के फर्श पर काले और सफेद रंग के संगमरमर के टुकड़े इस तरह से लगाए गए हैं जैसे सतरंज की बिसात बिछाई गई हो। इसके साथ कमरों के दिवारों पर की गई आयल पेंटिंग भितिचित्र का उम्दा प्रदर्शन है। लाल कोठी में बने कमरों की खासियत यह है कि किसी एक कमरे में प्रवेश करने के बाद ग्राउंडफ्लोर पर बने सभी कमरों में जाया जा सकता है। जबकि छत पर बनाई गई दो बुर्जियां इसके वैभव की गाथा सुना रही हैं। इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ की माने तों लाल कोठी के मालिक रामचंद्र कपड़ेवाला को शराब व शवाब का बहुत शौक था। शाम ढलते ही हाल कोठी में महफिल सजती थी, जो घुंघरुओं की झंकार व तबले की थाप पर देर रात गुजलजार रहती थी। इस महफिल में उस समय के शहर के बड़े-बड़े रायजादे व रायबहादुर शामिल होते थे।

और शराब के प्याले में डूब गई कोठी

कहा जाता है कि अपने इसी शौक के चलते रामचंद्र ने एक ऐसी पेंटिंग बनवाई थी, जिसमें लाल कोठी को शराब के प्याले में डूबते हुए दिखया गया था। भले ही रामचंद्र ने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए यह चित्र बनवाया हो पर सच में उसके सपनों का महल लालकोठी शराब के पैग में हमेशा के लिए डूब गई। यानि साहुकार अब पूरी तरह कर्जदार हो चुका था। अपने कर्ज को उतारने के लिए रामचंद्र ने अमृतसर के सब्जी व्यापारी लाली साह के हाथों यह कोठी बेच दी।

फिर बिकी लाल कोठी

इतिहास के जानकारों का कहना है कि कुछ दिन तक लाली शाह की मल्कियत रही लाल कोठी उसके हाथ से भी निकल गई। अबकी बार इस कोठी को लाली शाह नहीं बल्कि उसकी बहू राजकुमारी मेहरा पत्नी दुर्गादास मेहना ने गांधी आरम के प्रबंधकों के हाथ बेच दिया। गांधी आश्रम से रिटायर्ड आडिटर टीपी आचार्य कहते हैं इस कोठी को संस्था के सेक्रेटरी मेहशचंद्र तिवारी व निदेशक रामसुमेर भाई ने 1984-85 में 7 लाख 20 हजार रुपये उस समय खरीदा जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था। आतंकवाद के काले दिनों में विनोवा भावे व आयार्च जेवी कृपलानी के सानिध्य में नो लास नो प्राफिट के सिद्धांत पर काम करने वाली खादी की संस्था श्री गांधी आश्रम ने अमृतसर जिले के सैकड़ों लोगों को रोजगार दिया। अब यहां घुंघरुओं की झंकार की जगह चरखे की आवाज सुनाई देने लगी। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में खादी ग्रामोद्यग मंत्री रहे संघप्रिय गौतम से कई खादी प्रेमी हस्तियां भी यहां आ चुकी हैं।

हेरिटेज घोषित कर दिया जाय तो हो सकती है निगम की आय भी

लाल कोठी में ऋषि कपूर व रेखा अभिनित फिल्म सदियां, पंजाबी फिल्म चार साहिबजादे सहित कई सुपरहिट हिंदी, पंजाबी व टेली फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इस कोठी की महत्ता को देखते हुए हिंदू सभा कॉलेज के प्रो. अभिषेक, जीएनडीयू के ऑक्योलाजिकल विभाग के प्रो. वलविंदर सिंह, प्रो. संदीप, नगर निगम अमृतसर के पूर्व संयुक्त कमिश्नर रिटायर्ड डीपी गुप्ता, इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ आदि का कहना है कि यदि इस कोठी को हैरिटेज होटल का दर्जा दे दिया जाय तो इस कोठी की मियाद बढऩे के साथ-साथ निगम की आय भी बढ़ सकती है। क्योंकि, अमृतसर में हर साल लाखों टूरिस्ट आते हैं और जिस क्षेत्र में यह कोठी है उस एरिया में सबसे अधिक होटल हैं। इसलिए नगर निगम व पंजाब टूरिज्म विभाग को चाहिए कि इस कोठी को किराये पर लेकर होटल के रूप में विकसित करे।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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