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जानिये क्या है धारा 35A, क्यों मचा है इसे लेकर बवाल

Gagan D Mishra
Published on: 12 Aug 2017 2:57 PM IST
जानिये क्या है धारा 35A, क्यों मचा है इसे लेकर बवाल
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Vinod Kapoor

लखनउ: जम्‍मू-कश्‍मीर में धारा 35A हटाने की बात भर पर बवाल मचा हुआ है। कट्टरप‍ंथियों के साथ-साथ नेशनल कांफ्रेंस और और बीजेपी के साथ सत्ता में साझेदार पीडीपी को भी ये बात हजम नहीं हो पा रही है ।

नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष और लोकसभा सांसद फारूक अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह दिया है कि संविधान की धारा 35A को रद्द किए जाने पर 'जनविद्रोह' की स्थिति पैदा होगीं जम्मू कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती भी कही चुकी हैं कि यदि धारा 35 ए को हटाया गया तो घाटी में हालात को संभालना मुश्किल होगा । वो इस मामले में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने भी शुक्रवार को अपनी बात रख चुकी हैं । उनके दावे के अनुसार, पीएम ने भरोसा दिलाया है कि इससे कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी ।

संविधान में जिक्र नहीं

शुरूआती दौर में संविधान में जगह नहीं पाने वाला अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके। दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 35A को 14 मई 1954 को राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जगह मिली थी। संविधान सभा से लेकर संसद की किसी भी कार्यवाही में, कभी अनुच्छेद 35A को संविधान का हिस्सा बनाने के संदर्भ में किसी संविधान संशोधन या बिल लाने का जिक्र नहीं मिलता है। अनुच्छेद 35A को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के तहत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था।

क्या है पूरी धारा

अनुच्छेद 35A से जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में सहूलियतें दे अथवा नहीं दे।

नहीं खरीद सकते जमीन

दरअसल अनुच्छेद 35A, धारा 370 का ही हिस्सा है। इस धारा की वजह से कोई भी दूसरे राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है ।

जम्‍मू-कश्‍मीर का संविधान

1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बनाया गया था। इसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है। इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो। साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।

लड़कियों के अधिकार

अनुच्छेद 35A के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।

क्‍यों उठी हटाने की मांग

इस अनुच्छेद को हटाने के लिए एक दलील ये दी जा रही है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया था। दूसरी दलील ये है कि देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आए। इनमें लाखों की तादाद में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर राज्य में भी रह रहे हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुच्छेद 35A के जरिए इन सभी भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी प्रमाणपत्र से वंचित कर दिया। इन वंचितों में 80 प्रतिशत लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय से हैं। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ भी जम्मू-कश्मीर सरकार अनुच्छेद 35A की आड़ लेकर भेदभाव करती है । जो लोग इस अनुच्छेद के तहत नहीं आते वो लोकसभा चुनाव में तो वोट दे सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर की विधानसभा या ग्राम पंचायत के चुनाव में उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं होता । पढ लिख जाने पर भी कही सरकारी नौकरी पाने के अधिकारी नहीं होते । जम्मू कश्मीर में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है जो भारत के तो नागरिक हैं लेकिन जम्मू कश्मीर के नहीं ।

लोग पहुंचे थे सुप्रीम कोर्ट

इस अनुच्छेद के कारण सुविधाओं से वंचित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है । उनका कहना है कि अनुच्छेद 35A के कारण संविधान प्रदत्त उनके मूल अधिकार जम्मू-कश्मीर राज्य में छीन लिए गए हैं, लिहाजा राष्ट्रपति के आदेश से लागू इस धारा को केंद्र सरकार फौरन रद्द किया जाए । संविधान का कोई भी संशोधन संसद में होता है लेकिन इसे सीधे राष्ट्रपति के आदेश से पारित किया गया ।

जून 1975 में लगे आपातकाल को भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर माना जाता है लेकिन आपातकाल से लगभग बीस साल पहले भी संविधान के साथ ऐसा ही एक खिलवाड़ हुआ था। 'जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र' की मानें तो 1954 में एक ऐसा 'संवैधानिक धोखा' किया गया था जिसकी कीमत आज तक लाखों लोगों को चुकानी पड़ रही है।

1947 में हुए बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे। ये लोग देश के कई हिस्सों में बसे और आज उन्हीं का एक हिस्सा बन चुके हैं। दिल्ली, मुंबई, सूरत या जहां कहीं भी ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है। यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है।

एक आंकड़े के अनुसार, 1947 में 5764 परिवार पश्चिमी पकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे। इन हिंदू परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित थे। ऐसे लोगों को न तो चुनावों में वोट डालने का अधिकार है, न सरकारी नौकरी पाने का और न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिले का।'

यह स्थिति सिर्फ पश्चिमी पकिस्तान से आए इन हजारों परिवारों की ही नहीं बल्कि लाखों अन्य लोगों की भी है। इनमें गोरखा समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह तो रहे हैं। इनसे भी बुरी स्थिति वाल्मीकि समुदाय के उन लोगों की है जो 1957 में यहां आकर बस गए थे। उस समय इस समुदाय के करीब 200 परिवारों को पंजाब से जम्मू कश्मीर बुलाया गया था। इन्हें विशेष तौर से सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए यहां लाया गया था । बीते 60 सालों से ये लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता।

'ये लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते। इनकी यह स्थिति एक संवैधानिक धोखे के कारण हुई है । जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र हो रहा है वो संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता । हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है। भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया । यह इसलिए किया गया ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो। संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के तहत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।

भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है ।

अनुच्छेद 35A की संवैधानिक स्थिति क्या है?

यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं? क्या राष्ट्रपति के एक आदेश से इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ देना अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग करना है? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र जल्द ही अनुच्छेद 35A को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहा है।

वैसे अनुच्छेद 35A से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं। यदि अनुच्छेद 35A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे समाप्त क्यों नहीं किया? इसके जवाब में इस मामले को उठाने वाले लोग मानते हैं कि ज्यादातर सरकारों को इसके बारे में पता ही नहीं था शायद इसलिए ऐसा नहीं किया गया होगा।



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Gagan D Mishra

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