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प्रगतिशील त्रयी के महत्वपूर्ण स्तंभ थे त्रिलोचन, दबे-कुचले लोगों की बने आवाज

त्रिलोचन शास्त्री का वास्तविक नाम वासुदेव सिंह था। वे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले थे और उनका जन्म जिले के कटघरा चिरानी पट्टी नामक गांव में हुआ था।

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Published on: 9 Dec 2020 6:49 AM GMT
प्रगतिशील त्रयी के महत्वपूर्ण स्तंभ थे त्रिलोचन, दबे-कुचले लोगों की बने आवाज
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प्रगतिशील त्रयी के महत्वपूर्ण स्तंभ थे त्रिलोचन, दबे-कुचले लोगों की बने आवाज (PC: social media)

लखनऊ: हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में त्रिलोचन शास्त्री का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनकी गिनती प्रगतिशील हिंदी कविता के दूसरे दौर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय कवियों में की जाती है। हिंदी साहित्य की प्रगतिशील त्रयी में तीन महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं और त्रिलोचन शास्त्री इन महत्वपूर्ण स्तंभों में एक थे। 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में जन्म लेने वाले त्रिलोचन शास्त्री का निधन 2007 में आज ही के दिन हुआ था।

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कई पत्रिकाओं का किया संपादन

त्रिलोचन शास्त्री का वास्तविक नाम वासुदेव सिंह था। वे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले थे और उनका जन्म जिले के कटघरा चिरानी पट्टी नामक गांव में हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया था और बाद में लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की डिग्री हासिल की थी।

बाजारवाद के प्रखर विरोधी त्रिलोचन ने दर्जनों पुस्तकें लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में बड़ा योगदान दिया। हिंदी के अलावा उन्हें अरबी और फारसी भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी। हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के साथ ही उन्होंने जनसेवा के भी काम किए और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। उन्होंने हंस, समाज, प्रभाकर, वानर और आज आदि पत्र-पत्रिकाओं का भी संपादन किया।

व्यापकता और विविधता के पक्षधर

अपनी कविताओं के जरिए त्रिलोचन ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कविता संकीर्ण और एकपक्षीय नहीं है बल्कि व्यापक और विविधता से भरी होनी चाहिए। धरती उनका पहला कविता संग्रह था जो 1945 में प्रकाशित हुआ था।

हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में सिर्फ उनकी कविताओं का ही योगदान नहीं रहा बल्कि कहानी, गीत, गजल और आलोचना के जरिए भी उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। वे 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में भी काम किया था। वे भाषा में प्रयोग के हिमायती थे और उनका मानना था कि ऐसा करने पर भाषा में और समृद्धि आएगी।

trilochan shastri trilochan shastri (PC: social media)

कविताओं में गांवों की झलक

त्रिलोचन शास्त्री की कविताओं की यह खासियत है कि उनकी कविताओं में देश की गांवों और ग्रामीण समाज की झलक दिखाई देती है। उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए मेहनतकश और दबे कुचले समाज की आवाज को बुलंद करने की कोशिश की।

त्रिलोचन को मिले थे कई बड़े सम्मान

हिंदी साहित्य की सेवा के लिए उन्हें शास्त्री और साहित्य रत्न जैसी उपाधियों के अलावा हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान भी मिला था 1982 में उनके संग्रह ताप के ताए हुए दिन पर साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। इन पुरस्कारों के अलावा उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार, हिंदी संस्थान सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार और भारतीय भाषा परिषद सम्मान हासिल करने का गौरव हासिल था।

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त्रिलोचन की चर्चित कृतियां

त्रिलोचन शास्त्री के कविता संग्रह धरती, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, ताप के ताए हुए दिन, अरधान, उस जनपद का कवि हूं, फूल नाम है एक, तुम्हें सौंपता हूं,सबका अपना आकाश और अमोला आदि काफी प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा उनका कहानी संग्रह देश-काल और डायरी दैनंदिनी काफी चर्चाओं में रही है। उन्होंने मुक्तिबोध की कविताएं नामक किताब का संपादन भी किया था।

प्रसिद्ध कविताएं

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद जो कहीं आई

नींद आने को थी नहीं आई।

मैंने देखा विपत्ति का अनुराग

मैं जहां था चली वहीं आई।

भूमि ने क्या कभी बुलाया था

मृत्यु क्यों स्वर्ग से यहीं आई।

व्रत लिया कष्ट सहे वे भी थे,

सिद्धि उनके यहां नहीं आई।

साधना के बिना त्रिलोचन कब

सिद्धि ही रीझ कर कहीं आई।

बिस्तरा है न चारपाई है

बिस्तरा है न चारपाई है,

जिंदगी खूब हमने पाई है।

कल अंधेरे में जिसने सर काटा,

नाम मत लो हमारा भाई है।

गुल की खातिर करे भी क्या कोई,

उसकी तकदीर में बुराई है।

जो बुराई है अपने माथे है,

उनके हाथों महज भलाई है।

भटकता हूं दर-दर

भटकता हूं दर-दर कहां अपना घर है,

इधर भी सुना है कि उनकी नजर है।

उन्होंने मुझे देखके सुख जो पूछा,

तो मैंने कहा कौन जाने किधर है।

तुम्हारी कुशल कल जो पूछी उन्होंने,

तो मैं रो दिया कहके आत्मा अमर है।

क्यों बेकार ही खाक दुनिया की छानी,

जहां शांति भी चाहिए तो समर है।

त्रिलोचन यह माना बचाकर चलोगे,

मगर दुनिया है यह हमें इसका डर है।

यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है

यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है,

मगर दर्द कितना समाया हुआ है।

मेरा दुख सुना चुप रहे फिर वो बोले

कि यह राग पहले का गाया हुआ है।

झलक भर दिखा जाएं बस उनसे कह दो,

कोई एक दर्शन को आया हुआ है।

ना पूछो यहां ताप की क्या कमी है,

सभी का हृदय उसमें ताया हुआ है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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