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EVM-VVPAT का पूरा किस्सा, जानिए इससे जुड़े हर सवालों के जवाब
EVM-VVPAT History: ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन। आसान भाषा में कहें तो बिजली से चलने वाला मतदान यंत्र।
EVM-VVPAT in India: देश में 18वीं लोकसभा का चुनाव जारी है। सात चरणों के इस चुनाव में छह चरणों का मतदान हो चुका है। सभी उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। वही ईवीएम जिसपर लगातार विवाद होता रहा है। देश की तमाम पार्टियों ने कभी न कभी ईवीएम से वोटिंग कराने का विरोध किया है। बीते शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने ईवीएम और वीवीपैट से जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जिसके बाद चुनावी जनसभाओं में ईवीएम का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। मगर इस चर्चा को समझने के लिए जरूरी है भारत में ईवीएम के इतिहास और उसकी कार्यप्रणाली को समझना। आज बात करेंगे ईवीएम से जुड़े उन्हीं तमाम सवालों पर जो हर मतदाता के ज़ेहन में है।
क्या है ईवीएम ?
देश में 2004 चार से पहले मतपत्र से मतदान हुआ करता था। इस प्रक्रिया में मतदान अधिकारी मतदाता को एक पत्र देता था। उस पत्र में चुनाव चिन्ह बने होते थे। मतदाता अपने अनुसार चिन्ह के आगे मुहर लागाता था। मुहर लगाने के बाद पत्र को मतदान पेटी में ड़ाल दिया जाता था। मगर ईवीएम से मतदान करने में कागज का कोई प्रयोग नहीं होता। ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन। आसान भाषा में कहें तो बिजली से चलने वाला मतदान यंत्र। ईवीएम बैटरी से चलने वाली एक साधारण मशीन है। इसका उपयोग मतदान करने और वोटों को गिनने में किया जाता है। इसके कुल तीन हिस्से होते हैं।
- कंट्रोल यूनिट (सीयू)
- दूसरी बैलेटिंग यूनिट (बीयू)
- वोटर वेरिफ़ायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट)
कैसे काम करती है ईवीएम ?
बिजली से चलने वाली वीएम के अंदर इसका पहला हिस्सा यानी सीयू रखा जाता है। दूसरा हिस्सा बीयू मतदान अधिकारी के पास होता है। दोनों मशीनें सीयू और बीयू लंबे तार से जुड़ी होती हैं। मतदाता के पहुंचने पर मतदान अधिकारी बैलेट यूनिट पर मौजूद बैलेट बटन दबाते हैं। जिसके बाद ही मतदाता वोट डाल सकता है। वोट डालने के लिए मतदाता को बैटलिंग यूनिट पर मौजूद अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह के आगे बने नीले बटन को दबाना होता है। बटन दबाते ही मतदान की प्रक्रिया संपन्न हो जाती है।
कहां दर्ज होता है वोट ?
वोटर के बटन दबाने पर वोट ईवीएम के कंट्रोल यूनिट में दर्ज हो जाता है। सीयू में 2000 वोटों को दर्ज करने की क्षमता होती है। इसी के जरिए मतगणना भी की जाती है।उम्मीदवारों का नाम बैटलिंग यूनिट में दर्ज किया जाता है। एक बीयू में 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं। उम्मदीवारों की संख्या अधिक होने पर अन्य बीयू को जोड़ा जा सकता है। एस साथ 24 बैलेटिंग यूनिट को जोड़ा जा सकता है। इससे नोटा समेत 384 उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं। इसी तरह 2000 से अधिक वोट दर्ज करने के लिए अतिरिक्त सीयू भी जोड़ा जा सकता है।
वीवीपैट की आवश्यकता क्यों ?
मतदाता और तमाम राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर आपत्ति जताई। उन्हें इस बात पर शक था कि बटना दबाने के बाद वोट उनके दिए उम्मीदवार को ही गया या किसी और को। मतदातओं के विश्वास को बनाए रखने के लिए जून 2017 में वीवीपैट की व्यवस्था शुरु की गई। ईवीएम के बगल में रखी जाने वाली वीवीपैट में उम्मीदवार के नाम, क्रम और चुनाव चिह्न वाली एक पर्ची छपती है। ये पर्ची सात सेकेंड के लिए स्क्रीन पर दिखाई देती है। इसके बाद पर्ची एक सील बंद डिब्बे में गिर जाती है। इससे मतदाता यह जान सकता है कि उसका वोट सही उम्मीदवार को पड़ा या नहीं। यह पर्ची छपने के बाद पांच वर्षों तक सुरक्षित रहती है।
- 14 अगस्त 2013 को चुनाव संचालन के नियमों में संसोधिन करके वीवीपैट के उपयोग को जोड़ा गया।
- 4 सितंबर 2013 को नागालैंड के उपचुनावों में पहली बार वीवीपैट का इस्तेमाल हुआ।
- 8 अक्टूबर 2013 को उच्चतम न्यायलय ने चुनाव आयोग को वीवीपैट का उपयोग करने का निर्देश दिया।
- मई 2017 से वीवीपैट को सभी चुनावों में अनिवार्य किया गया।
वीवीपैट की पर्ची पर गलत नाम दिखने पर क्या करें ?
वोट देने के बाद वीवीपैट में गलत नाम भी आ सकते हैं। वोट और पर्ची के एक न होने पर नियम 49MA के तहत मतदाता तुरंत पोलिंग अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं। जिसपर 17A नियम के अनुसार पोलिंग ऐजेंट्स की मौजूदगी में एक टेस्ट वोट कराया जाएगा। टेस्ट वोटिंग में मतदाता द्वारा किए गए शिकायत की पुष्टि की जाएगी। अगर इसमें भी मतदान और वीवीपैट का मिलान नहीं हुआ तो वोटिंग रोक दी जाएगी। हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है। चुनाव आयोग के अनुसार अब तक केवल एक बार ऐसी शिकायत की गई है। ये शिकायत भी बाद में गलत साबित हुई। चुनाव आयोग के अनुसार 2017 के बाद से अब तक वीवीपैट 100 प्रतिशत सही रहा है।
भारत में ईवीएम का प्रयोग
विश्व के तमाम देशों में ईवीएम का प्रयोग होता है। मगर भारत में प्रयोग की जाने वाली ईवीएम इनसे अलग है। देश में प्रोयग होने वाले ईवीएम को डायरेक्ट रिकॉर्डिंग ईवीएम कहते हैं। देश में सबसे पहले ईवीएम की बात 1977 में तत्तकालीन चुनाव आयुक्त एस.एल. शकधर ने की।
- एस.एल. शकधर ने पहली बार 1977 में ईवीएम के प्रयोग की बात रखी।
- 1979 में इसे डिज़ाइन और विकसित करने का प्रयास शुरु हुआ।
- इसे बनाने की ज़िम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद को दी गई।
- 1979 में ईवीएम का शुरुआती मॉडल विकसित किया गया।
- 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने ईवीएम को प्रदर्शित किया गया।
1982 में पहली बार हुआ ईवीएम से मतदान
केरल विधानसभा की पारूर सीट के 50 पोलिंग स्टेशन पर पहली बार ईवीएम से मतदान कराया गया।
- 1982-83 के दौरान ईवीएम से 8 प्रदेश और 1 केद्र शासित राज्य की 11 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान कराया गया।
- 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम न पारित होने तक ईवीएम के उपयोग पर रोक लगा दी।
- 1988 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया। जिसके बाद मतदान के लिए ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान बनाया गया।
- 1990 जनवरी में चुनाव सुधार समिति का गठन किया गया।
- 1990 अप्रैल में तकनीकी समिति के विशेषज्ञों ने ईवीएम के उपयोग पर सहमति जताई।
- 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर ईवीएम से वोटिंग हुई।
- 1999 में 45 सीटों पर हुए चुनाव में ईवीएम से मतदान किया गया।
- 2000 फरवरी में हरियाणा विधानसभा चुनाव की 45 सीटों पर ईवीएम इस्तेमाल हुआ।
- 2001 मई में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुद्दुचेरी में विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर ईवीएम से वोटिंग हुई।
- 2004 के बाद सभी चुनावों में ईवीएम से ही मतदान किया जा रहा है।
ईवीएम से मतदान करने के फायदे
देश में ईवीएम का प्रयोग शुरु होने से पहले भी चुनाव होते थे। फिर भी पुरानी प्रक्रिया को बदल कर ईवीएम से मतदान की व्यव्सथा की गई। मतदान प्रक्रिया में बदलाव के पीछे चुनाव आयोग ने कुछ महत्तवपूर्ण तर्क दिए हैं। ईवीएम के प्रयोग के बाद बाहुबल से बूथ कैपचरिंग के मामलों में काबू पाया गया। इसके अलावा भी कई तरीकों से ईवीएम बेहतर मानी गई।
- ईवीएम से मतदान करना मतपत्र से आसान है क्योंकि मत डालने के लिए केवल बटन दबाना है। इसमें किसी तकनीकि ज्ञान की आवश्यकता भी नहीं है।
- ईवीएम प्रणाली के तहत कोई मत अमान्य नहीं होता है, जबकि मतपत्र पेपर प्रणाली में गलत जगह या दो जगह मुहर लगने से मत अमान्य हो जाते हैं।
- ईवीएम कुछ घंटों में मतगणना कर परिणाम देता है, जिसमें में पहले कई दिन और सप्ताह लगते थे।
- ईवीएम मतदान प्रणाली से समय, ऊर्जा और धन की बचत होती है।
- पहले करोड़ों की संख्या में मतपत्रों को छापना पड़ता था जिसमें सैकड़ों टन पेपर लगते थे। ईवीएम के प्रयोग से पेड़ों की बचत होती है।
- ईवीएम का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में देश की छवि और प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम करता है।