×

पुण्यतिथि विशेष: ऐसे PM जिनके पास कार के लिए भी नहीं थे पैसे, लेना पड़ा था लोन

लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 को जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उनके पास कोई कार नहीं थी। परिवार के सदस्यों ने शास्त्री से कहा कि अब आप देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं

Roshni Khan
Published on: 11 Jan 2021 11:19 AM IST
पुण्यतिथि विशेष: ऐसे PM जिनके पास कार के लिए भी नहीं थे पैसे, लेना पड़ा था लोन
X
पुण्यतिथि विशेष: ऐसे PM जिनके पास कार के लिए भी नहीं थे पैसे, लेना पड़ा था लोन (PC: social media)

अंशुमान तिवारी

लखनऊ: देश को जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बेहद सादगी पसंद और ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाते हैं। शास्त्री देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके पास इतने बड़े पद पर रहते हुए भी कार खरीदने तक का पैसा नहीं था। उन्हें उस समय की चर्चित फिएट कार खरीदने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 5000 रुपए का लोन लेना पड़ा था।

ये भी पढ़ें:School Reopen: इन राज्यों में खूल रहे स्कूल-काॅलेज, जान लें जरूरी नियम

ताशकंद में 1966 में आज ही के दिन शास्त्री का निधन हुआ था और उस समय तक वे पंजाब नेशनल बैंक का लोन नहीं चुका पाए थे। बाद में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी पेंशन से पैसे कटवाकर कार का लोन चुकाया था।

परिजनों के कहने पर सोच में पड़ गए शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 को जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उनके पास कोई कार नहीं थी। परिवार के सदस्यों ने शास्त्री से कहा कि अब आप देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं और ऐसे में आपके पास अपनी निजी कार तो जरूर होनी चाहिए। परिजनों के दबाव बनाने पर शास्त्री सोच में पड़ गए हैं क्योंकि उनके पास कार खरीदने के लिए पैसे भी नहीं थे। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने अपने सचिव को उस समय की चर्चित फिएट कार की कीमत पता लगाने को कहा।

Lal Bahadur Shastri Lal Bahadur Shastri (PC: social media)

पीएनबी से लेना पड़ा 5000 का लोन

सचिव ने पता करने के बाद शास्त्री जी को बताया कि फिएट कार करीब 12000 रुपए में पड़ेगी। देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद शास्त्री जी के पास 12000 रुपए भी नहीं थे। शास्त्री के पास कुल 7000 की जमा पूंजी थी और बाकी 5000 रुपए जुटाने के लिए उन्होंने पीएनबी से लोन लेने का फैसला किया।

पीएनबी से उनका लोन बहुत जल्दी ही पास हो गया और लोन पास होते ही उन्होंने कहा कि देश के अन्य लोगों का भी लोन इतनी जल्दी ही पास होना चाहिए।

पत्नी ने पेंशन से कटवा कर चुकाया लोन

बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध की समाप्ति के बाद शास्त्री ताशकंद में पाकिस्तान से समझौता करने के लिए पहुंचे। समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया।

अपने निधन के समय तक शास्त्री पंजाब नेशनल बैंक का 5000 का वह लोन नहीं चुका पाए थे। उनके निधन के बाद बैंक ने उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को लोन चुकाने के लिए चिट्ठी लिखी। बाद में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपनी पेंशन से पैसे कटवा कर कार लोन चुकाया था।

अभावों में बीता शास्त्री जी का बचपन

मौजूदा दौर में एक से एक महंगी कारों के मालिक राजनेताओं के लिए शास्त्री की यह कहानी नसीहत देने वाली है। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। दो वर्ष की उम्र में ही उनके पिता शारदा प्रसाद का निधन हो गया और अम्मा रामदुलारी देवी ने अभावों के बीच उनका लालन-पालन किया।

उन्होंने मुगलसराय में कक्षा छह तक पढ़ाई की और इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने बनारस में पूरी की। वाराणसी में दारानगर स्थित मौसा-मौसी के घर आकर उन्होंने हरिश्चंद्र कॉलेज में पढ़ाई की। यहां भी उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और दोस्तों से किताबें मांग कर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।

अभावों के बावजूद उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूदना ज्यादा बेहतर समझा। हालांकि बाद में उन्होंने काशी विद्यापीठ से स्नातक की डिग्री हासिल की।

Lal Bahadur Shastri Lal Bahadur Shastri (PC: social media)

मरणोपरांत मिला भारत रत्न सम्मान

पंडित गोविंद बल्लभ पंत के निधन के बाद शास्त्री ने 1961 में देश के गृहमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 19614 को उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला।

ये भी पढ़ें:किसान आंदोलन: दिल्ली में आज शरद पवार से मिलेंगे सीताराम येचुरी और डी. राजा

1965 के भारत-पाक युद्ध में देश को जीत दिलाकर उन्होंने पूरे देश का सम्मान बढ़ाया था। देश के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र के नवनिर्माण में शास्त्री की अहम भूमिका मानी जाती है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उन्होंने कई बार जेल की यात्राएं कीं और उन्हें करीब 9 वर्ष तक कारावास की यातनाएं सहनी पड़ीं। शास्त्री को मरणोपरांत 1966 में भारत के सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

शास्त्री राजनीति में नैतिकता के हिमायती थे। 1956 में एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी ईमानदारी, सादगी, राष्ट्रप्रेम और निस्वार्थ देश सेवा को आज भी याद किया जाता है।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story