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Indo-China Border Dispute: कब और कैसे शुरू हुआ तवांग पर चीन से विवाद, जानें सब कुछ

Indo-China Border Dispute: चीन की मंशा अरूणाचल प्रदेश स्थित तवांग सेक्टर में गलवान 2.0 दोहराने की थी। लेकिन सरहद पर मौजूद भारतीय सेना के जाबांजों ने इसबार ड्रैगन की दाल नहीं गलने दी।

Krishna Chaudhary
Published on: 13 Dec 2022 6:19 PM IST
Indo-China Border Dispute
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Indo-China Border Dispute (Social Media)

Indo-China Border Dispute: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एकबार फिर से सुर्खियों में है। लद्दाख स्थित सीमा पर जारी गतिरोध अभी सुलझा भी नहीं था कि चीन ने पूर्वी सीमा पर नया फ्रंट खोल दिया। चीन की मंशा अरूणाचल प्रदेश स्थित तवांग सेक्टर में गलवान 2.0 दोहराने की थी। लेकिन सरहद पर मौजूद भारतीय सेना के जाबांजों ने इसबार ड्रैगन की दाल नहीं गलने दी। भारतीय सेना ने पीएलए को उल्टे पैर वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया।

इस दौरान दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प भी हुई, जिसमें भारत के 6 जवानों को मामूली चोटें आईं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएलए के जवान अधिक संख्या में चोटिल हुए हैं। साल 2020 के जून में गलवान संघर्ष के बाद ये पहला मौका है जब दोनों देशों की सेनाएं टकराई हैं।

अभी तक लद्दाख स्थित भारत-चीन सीमा विवाद चर्चाओं में था। लेकिन ताजा घटना के बाद लोगों की नजर पूर्वी सीमा स्थित अरूणाचल प्रदेश पर शिफ्ट हो गई है। लद्दाख की तरह यहां भी चीन के साथ पुराना सीमा विवाद है, जो समय-समय पर उग्र रूप धारण करते रहता है।

अरूणाचल को लेकर भारत-चीन के बीच विवाद

भारत और चीन 3488 किमी की सीमा एक दूसरे से साझा करते हैं। दोनों देशों की सीमा को तीन सेक्टरों में बांटा गया है – पूर्वी, मध्य और पश्चिमी सेक्टर। पूर्वी सेक्टर में अरूणाचल और सिक्किम आते हैं, मध्य में हिमाचल और उत्तराखंड और, पश्चिम सेक्टर में लद्दाख की सीमा आती है।

पूर्वी सेक्टर में भारत चीन के साथ 1346 किमी लंबी सीमा साझा करता है। लंबे समय से चीन संपूर्ण अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोंकता रहा है। चीन भारत के इस उत्तर पूर्वी राज्य को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है।

इंटरनेशनल मैप में भी अरूणाचल को भारत का हिस्सा बताया गया है। लेकिन चीन अपनी मनमर्जी दिखाते हुए भारत और चीन के बीच खींची मैकमोहन रेखा को इंटरनेशनल बॉर्डर मानने से इनकार करता रहा है।

तवांग को लेकर क्यों है चीन की दिलचस्पी

साल 1962 के युद्ध में चीन तवांग तक घुस चुका था। लेकिन युद्ध विराम की घोषणा के बाद वह यहां से निकल गया लेकिन अक्साई चीन पर कब्जा जमाए रखा। बताया जाता है कि उस दौरान तवांग की स्थिति चीन के मुफीद नहीं थी, इसलिए उसने तत्काल के लिए वहां से निकलने में ही भलाई समझी।

लेकिन ड्रैगन ने इस पर कभी अपना दावा नहीं छोड़ा। दरअसल, चीन की दिलचस्पी तवांग में इसलिए है क्योंकि छठे दलाई लामा का जन्म 1683 में यहीं पर हुआ था। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। चूंकि चीन के कब्जे वाले तिब्बत में बहुसंख्यक आबादी बौद्धों की है, इसलिए चीन चाहता है कि इसपर उसका नियंत्रण रहे।

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक तिब्बत और भारत के बीच 1912 तक कोई सीमा रेखा नहीं थी। क्योंकि इस हिस्से पर न तो कभी मुगलों का शासन हुआ और न ही अंग्रेजों का। साल 1914 में अरूणाचल प्रदेश में प्रसिद्ध तवांग मठ मिलने के बाद इसके सीमा का निर्धारण करने का निर्णय़ लिया गया।

शिमला में चीन, तिब्बत और ब्रिटेन के अधिकारी सीमा निर्धारण को लेकर बैठे। ब्रिटिश अधिकारियों ने तिब्बत की कमजोर स्थिति को देखते हुए तवांग और दक्षिणी तिब्बत को ब्रिटिश इंडिया में मिला लिया।

जिससे चीन नाराज हो गया, उसकी नजर खुद इस इलाके पर थी। साल 1950 में गृह युद्ध से निकलने के बाद चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए और तमांग समेत पूरे अरूणाचल पर दावा ठोंक दिया।

चीन ने बदले थे 15 जगहों के नाम

अरूणाचल प्रदेश को चीन जांगनान के नाम से पुकारता है। चीन का आरोप है कि भारत ने उसके दक्षिण तिब्बत के इलाके पर कब्जा कर उसे अरूणाचल प्रदेश बना दिया है। पिछले साल ड्रैगन ने अरूणाचल की सीमा से सटे क्षेत्र में 15 स्थानों के नाम चीनी और तिब्बती रख दिए थे।

चीन ने कहा था कि यह हमारी प्रभुसत्ता और इतिहास के आधार पर उठाया गया कदम है। यह चीन का अधिकार है। इसके पहले चीन ने साल 2017 में भी अरूणाचल के 6 जगहों के नाम बदले थे।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने तब चीन की इस हरकत पर कहा था, अरूणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। नाम बदलने से सच्चाई नहीं बदलती। अरूणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था और रहेगा।

भारतीय नेताओं के दौरे का करता है विरोध

चीन अक्सर जब भी अरूणाचल प्रदेश में भारत की ओर से कोई वीवीआईपी मुवमेंट होता है तो उसका तीखा विरोध करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे पर वह आपत्ति उठा चुका है।

इसी तरह वह पूर्व की सरकारों में भी इसी तरह भारत के बड़े नेताओं के दौरे का विरोध करता रहा है। ड्रैगन ने तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा के अरूणाचल प्रदेश दौरे का भी पुरजोर विरोध किया था।

चीन पूरा अरूणाचल प्रदेश को विवादित बताते हुए यहां के लोगों को नत्थी वीजा जारी करता रहा है। भारत के सख्त ऐतराज के बावजूद ड्रैगन ने नत्थी वीजा जारी करना बंद नहीं किया है।



Durgesh Sharma

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