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Kolkata Rape Murder Case: किस काम की कैंडल लाइट

Kolkata Doctor Rape Murder Case Update: मुमकिन है कि कोलकाता कांड के अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सख्त से सख्त सजा भी हो जाएगी। लेकिन क्या हालात बदल जाएंगे ?

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 19 Aug 2024 5:44 PM IST (Updated on: 19 Aug 2024 5:50 PM IST)
Kolkata Doctor Rape Murder Case Exclusive Report
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Kolkata Doctor Rape Murder Case Exclusive Report

Kolkata Doctor Rape Murder Case Update: कोलकाता के सरकारी मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर के रेप-मर्डर की जघन्य घटना ने पूरे देश को दहला दिया है। देश भर के डॉक्टर विरोध प्रदर्शन, हड़ताल कर रहे हैं। आम जनता गुस्से में है। सोशल मीडिया में झांक कर देखिए, क्या क्या नहीं लिखा जा रहा। सबसे बड़ी बात ये है कि आक्रोश से कहीं ज्यादा हताशा, निराशा है। कितनी ही रैलियां हम निकाल चुके, कितने धरने और प्रदर्शन हम कर चुके। कितनी ही बार हम खोखले आश्वासन और बदलाव की बातें सुन चुके। सब कुछ किया । लेकिन हालात बदल ही नहीं रहे। अब कोई क्या करे, कैसे बचे।

2012 में दिल्ली में चलती बस में एक जघन्य कांड हुआ था। उसे निर्भया नाम दिया गया। पूरे देश में जबर्दस्त गुस्सा था।


इस कांड के बाद महिला सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए गए। लगा कि अब कड़ी सज़ा के डर से दरिंदों पर लगाम लगेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 12 साल बाद भी हम उसी स्थिति में हैं या और भी गर्त में गए हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। अकेले 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो हर घंटे लगभग 51 एफआईआर के बराबर है। ये डेटा 2021 और 2020 की तुलना में 2022 में एक गंभीर वृद्धि को उजागर करता है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,28,278 मामले दर्ज किए गए। 2016 से इसमें 26.35 फीसदी की वृद्धि ही हुई है। 2021 में ही रेप के 31,878 केस दर्ज किए गए। ये वो आंकड़े हैं जो पुलिस ने दर्ज किए और पुलिस कितने मामले दर्ज नहीं करती है ये सब जानते हैं।

खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर दुख और चिंता जताते हुए 2014 में लाल किले से अपनी पहली स्पीच में कहा था - "जब हम इन बलात्कारों के बारे में सुनते हैं, तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है।"


2021 में पीएम मोदी ने उसी लाल किले से अपने भाषण में लोगों से यह प्रण करने का आह्वान किया था कि महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता बदलेंगे और महिलाओं को अपमानित करने वाली हर चीज से छुटकारा पाएंगे।

1998 में मध्य प्रदेश के झाबुआ में तीन ननों के साथ हुए बलात्कार पर तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में कहा था कि बलात्कारियों से निपटने के लिए मौजूदा कानून नाकाफी हैं।


आडवाणी ने कहा था कानून में बदलाव करके रेप के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ अभी तक हुआ नहीं।

आज देश में आक्रोश है। मुमकिन है कि कोलकाता कांड के अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सख्त से सख्त सजा भी हो जाएगी। लेकिन क्या हालात बदल जाएंगे? कतई नहीं। फांसी की सज़ा देने पर भी क्या ही हो जाएगा।


दरअसल, बात किसी एक कांड, किसी एक अपराधी, किसी सज़ा की तीव्रता की नहीं है। वो तो बहुत बार दोहराया जा चुका है। असल बात है समाज की, सामाजिक व्यवस्था की और हमारे आपके व्यवहार की। रेप के बड़े चर्चित मामलों में निर्भया, अभया या अन्य पीड़ितों के नाम तो सब जानते होंगे। उनके परिवारवालों से टीवी अखबारों में रूबरू भी हुए होंगे। उनके घर या झोपड़ी की फोटो भी देखी होंगी। वहां टीवी वालों का रेला देखा होगा। लेकिन क्या उन दरिंदों के बारे में, उनके बैकग्राउंड, उनके परिवार, उनके घर, उनकी राई रत्ती बातें हम जानते हैं? क्या सरकार, पुलिस, मीडिया या कोर्ट हमें बताता है कि - देखो यही है वो वहशी जिसने ये जघन्य कांड किया है?

हमें पीड़ितों के बारे में बताया जाता है। शायद सहानुभूति के लिए। लेकिन हमारे बीच मौजूद अपराधियों के प्रति वितृष्णा, घृणा का भाव पैदा क्यों नहीं करवाया जाता। कोर्ट ने पीड़ित महिलाओं के नाम सार्वजनिक करने पर बंदिश लगाई है, अपराधियों के नाम बताने पर तो रोक नहीं है। क्यों हमने खुद ही ये रोक लगा दी है? क्यों हम कतराते हैं इस स्याह पहलू से।

ठीक है, महात्मा गांधी ने कहा था कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं।


लेकिन आखिर कब तक? क्यों नहीं हम अपराधी घोषित हो जाने पर बलात्कारियों के नाम, उनकी पहचान का ढिंढोरा पीटें। उनका सामाजिक बहिष्कार करें? क्यों नहीं हम उन्हें इंगित करें। बड़े से बड़ा आदमी, जिसने ऐसा अपराध किया हो उसे हमेशा के लिए जलील होने पर मजबूर करें। पीड़ित महिला और उसका परिवार तो जिंदगी भर गहरे जख्म ढोता है, अपराधी को क्यों गुमनाम रहने दें?

सोचना जरूरी है। राजा राम मोहन रॉय की कोशिशें से लेकर आज के 'बेटी बचाओ' अभियान तक हमने बहुत कुछ देखा है। हम बेटियों को जूडो कराटे सिखाने में ही क्यों विश्वास रखते हैं? पुरुषों को अनुशासन और महिला सम्मान की ट्रेनिंग क्यों नहीं देते?

आडवाणी जी ने रेप के लिए फांसी की वकालत की थी। लेकिन उन्हींने बाद में किसी बात पर ये भी कहा था कि भले ही हर अपराध की सज़ा फांसी कर दी जाए लेकिन उससे क्या होगा? जरूरी है कि अपराधी जल्दी पकड़ा जाए, अपराध जल्दी सिद्ध हो और जल्दी सज़ा हो। अगर किसी को फांसी दे ही न पाये तो ऐसे कानून का मतलब क्या?

सजाएं तो अरब देशों में सर कलम कर देने की हैं। अमेरिका में सौ सौ साल की जेल की हैं। लेकिन क्या वहां ऐसी घटनाएं बन्द हो गईं? सजाएं तो हर अपराध की आदिकाल से मुकम्मल हैं तो क्या कोई भी अपराध खत्म हो गया? नहीं। उपाय सिर्फ कानून बनाना नहीं है। उपाय हम खुद हैं। उपाय हमारी मानसिकता में ही है। हमें ऐसे घृणित काम करने वालों के परिवारों का बहिष्कार करना होगा। अपराधी के पीछे का चेहरा चाहे जितना ताक़त वर हो, उसे बेनक़ाब करना होगा। ऐसा माहौल बनाना होगा कि अपराधी का हर रिश्तेदार या तो उसका सामाजिक बहिष्कार करें या हम सब उसका , उसके दोस्तों का, उसके इर्द गिर्द का। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने लखनऊ में सीएए आंदोलनकर्मियों के फ़ोटो के पूरे शहर में पोस्टर लगवा दिये। यह भी लिखवाया कि इनसे आंदोलन में हुई सरकारी क्षति की वसूली की जायेगी। इस पोस्टर के लगते ही आंदोलन का हवा निकल गयी। कभी सोशल पुलिस बहुत मज़बूत हुआ करती थी। जब तक हम नहीं बदलेंगे, तब तक यूं ही कभी यहां तो कभी वहां कोई निर्भया, कोई अभया होती रहेगी और हम सिर्फ कैंडल लाइट रैली निकालते रहेंगे।

( लेखक पत्रकार हैं। पूर्वोदय से साभार ।)

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