×

इधर के न उधर के रहे कुशवाहा, नीतीश विरोध में पार्टी हुई अस्तित्वहीन

raghvendra
Published on: 14 Dec 2018 12:53 PM IST
इधर के न उधर के रहे कुशवाहा, नीतीश विरोध में पार्टी हुई अस्तित्वहीन
X
भाजपा ने 'बड़े भाई' पर छोड़ा 'कुश' मैनेजमेंट

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का जाना लगभग तय था, बिहार के राजनीतिक गलियारे में यह पुरानी और पक्की खबर थी। भाजपा को क्षेत्रीय दल इसी आधार पर समझौते के लिए विवश भी कर रहे थे। इसमें जनता दल यूनाईटेड (जदयू) की खूब चली तो राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन, रालोसपा अध्यक्ष और कुछ दिनों पहले तक केंद्रीय राज्यमंत्री रहे उपेंद्र कुशवाहा दूसरे नाव पर सवारी का डर दिखाकर भाजपा को विवश करने के चक्कर में कुछ हासिल नहीं कर सके।

लोकसभा की तीन सीटों के लिए कुशवाहा अड़े थे और भाजपा दो सीट देने को तैयार थी। कुशवाहा ने एक सीट को लेकर लड़ाई को प्रतिष्ठा पर ऐसा लिया कि भाजपा ने नीतीश के हाथों उनकी बलि ले ली। कुशवाहा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाने पर दूसरे तरह का संदेश जाता, लेकिन अब खुद ही वह पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से निकल गए। और, निकल कर जा भी रहे हैं तो पांच सीटों की उम्मीद में। पांच सीट महागठबंधन दे भी देगा तो लोकसभा में उनके अलावा चार और प्रत्याशी का भी कुशवाहा को जुगाड़ ही करना होगा, क्योंकि रालोसपा में उनके अन्य महत्वपूर्ण साथी राजग के साथ ही टिक रहे हैं।

लोकसभा चुनाव को अब लगभग चार महीने बचे हैं। ‘अपना भारत’ पिछले साल फरवरी से उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कई खबरों के जरिए यह बताता आया है कि कुशवाहा राजग से जाएंगे भी तो चुनाव के आसपास। पांच राज्य विधानसभाओं के चुनाव परिणाम के बाद अब लोकसभा चुनाव की आहट साफ सुनी जा रही है तो कुशवाहा ने भी राजग को बाय-बाय कह दिया। लेकिन, जिस तरह से कुशवाहा निकले हैं, उसकी उम्मीद शायद उन्हें भी नहीं थी। पिछले साल जुलाई में नीतीश के महागठबंधन छोड़ राजग में आने के बाद से कुशवाहा लगातार छटपटा रहे थे।

नीतीश की नीति और कामकाज की भत्र्सना कर चुके कुशवाहा के लिए राजग में स्थिति असहज बनी भी तो उनके खुद के कारण। राजग में रहते हुए भी वह बिहार में राजग सरकार पर लगातार वार कर रहे थे। पिछले कुछ महीनों से वह राजद के युवा नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, राजग के बागी शरद यादव सरीखे नेताओं से बातों-मुलाकातों के कारण चर्चा में थे। ऐसे में भाजपा ने नीतीश को कुशवाहा मैनेजमेंट की जिम्मेदारी देते हुए आधी-आधी सीटों के लिए समझौता कर लिया। इस समझौते में जदयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने साफ कर दिया गया था कि कुशवाहा वोटरों के टूटने की स्थिति नहीं बने। यही हुआ भी।

उपेंद्र कुशवाहा भले ही राजग से निकल गए, लेकिन रालोसपा के तमाम बड़े नेता राजग का ही राग अलाप रहे। अरुण कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बाद भगवान सिंह कुशवाहा रालोसपा के मुख्य नेता रहे हैं। अरुण कुमार काफी पहले ही उपेंद्र का साथ छोड़ चुके थे, भगवान सिंह कुशवाहा भी नीतीश कुमार के साथ मंच पर करीब नजर आ चुके हैं। भगवान ने उपेंद्र कुशवाहा के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद साफ भी कर दिया कि उपेंद्र भले चले जाएं, रालोसपा के बाकी नेता राजग का दामन नहीं छोडऩे जा रहे।

महागठबंधन में भी इज्जत का सौदा नहीं मिलने जा रहा

कुशवाहा दोनों हाथों में लड्डू के चक्कर में सब कुछ गंवाए नजर आ रहे हैं। पहली बात तो यह कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में अधिकतर समय गुजार कर नीतीश विरोधी खेमे में जाने की उनकी मंशा काफी पहले से समझ में आ रही थी और यही किया भी उन्होंने। लेकिन, केंद्रीय राज्यमंत्री के पद पर ज्यादा समय काट लेने के चक्कर में महागठबंधन में भी उन्हें इज्जत का सौदा नहीं मिलता दिख रहा है। महागठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस ने कुशवाहा के आने का खुलकर स्वागत किया है, लेकिन अपनी सीट छोडऩे में उसे भी बहुत परेशानी है। हम (से) प्रमुख और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पहले ही कह चुके हैं कि कुशवाहा कुछ पहले आते तो महागठबंधन में इज्जतदार स्थिति पाते। तेजस्वी यादव से मुलाकात के बावजूद उन्होंने जिस तरह से राजग को इसके लिए सफाई दी थी, उसके बाद वहां से भी बहुत उम्मीद नहीं बची थी तो शरद यादव के रास्ते कुशवाहा महागठबंधन के करीब पहुंचे हैं।

शरद खुद महागठबंधन में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं हैं। राजग छोड़ते समय उन्हें यह उम्मीद थी कि महागठबंधन उन्हें हाथोंहाथ लेगा, लेकिन हालत यह है कि खुद एक छोटी-सी पार्टी बनाकर शरद समझौता-दर-समझौता कर रहे हैं। ऐसे में कुशवाहा की स्थिति भी भविष्य में वैसी ही नजर आए तो आश्चर्य नहीं होगा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उपेंद्र ने आगे बढ़ते समय यह नहीं देखा कि उनके पीछे चलने वाले चल भी रहे हैं या नहीं। बहुत आगे बढऩे के बाद उन्हें अब पता चला रहा है कि वह अभिमन्यु की तरह अकेले चक्रव्यूह में फंस गए हैं। उनके साथ उनके अपने ‘भगवान’ तक नहीं आए हैं। और, सबसे खास बात यह कि इस चक्रव्यूह की रचना एक समय उन्हें गढऩे वाले नीतीश कुमार ने रची थी। इस व्यूह-रचना में नीतीश को भाजपा का साथ इसलिए मिला, क्योंकि उपेंद्र राजग के सबसे बड़े दल भाजपा को नीतीश से हाथ मिलाने के कारण बार-बार आंखें दिखा रहे थे।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story