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क्या भारतीय निक्कमी कौम है? अरबपतियों का 90 घंटे काम करने का सुझाव: आधुनिक गुलामी की ओर एक कदम?

हाल ही में L&T चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन ने भारतीयों को 90 घंटे काम करने की सलाह दी है, जो कई तरह के सवालों को जन्म देता है। क्या यह सही है कि जो लोग पहले ही अपनी पूरी जान लगाकर काम करते हैं, उन्हें और ज्यादा मेहनत करने का दबाव डाला जाए?

Shivam Srivastava
Published on: 12 Jan 2025 5:19 PM IST (Updated on: 12 Jan 2025 5:33 PM IST)
L&T chairman
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L&T chairman's 90-hour workweek for Indians sparks controversy (Photo: Newstrack)

हाल ही में L&T चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन ने भारतीयों को 90 घंटे काम करने की सलाह दी है, जो कई तरह के सवालों को जन्म देता है। क्या यह सही है कि जो लोग पहले ही अपनी पूरी जान लगाकर काम करते हैं, उन्हें और ज्यादा मेहनत करने का दबाव डाला जाए? क्या मेहनत का कोई मूल्य नहीं रह गया है?

हम भारतीयों को कम मेहनती साबित करने की कोशिश करना, हकीकत से दूर एक खोखली सोच है। देशभर के दिहाड़ी मजदूरों, किसानों, छोटे दुकानदारों और श्रमिकों को देख लीजिए, जो बिना थके, बिना रुके दिन-रात काम करते हैं। यह लोग जो मेहनत करते हैं, वह केवल उनके जीवित रहने के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज को चलाने के लिए है। क्या यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि इन लोगों की मेहनत का कोई मूल्य नहीं है?

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि इन मेहनत कश लोगों को और ज्यादा काम करने का दबाव क्यों डाला जा रहा है? एएम नायर का बयान भारतीय श्रमिकों के संघर्ष और वास्तविकता से पूरी तरह अनजान था। उन्होंने यह भूल कर दिया कि लाखों भारतीय पहले ही अपनी जिंदगी को मुश्किलों और संघर्षों के बीच जी रहे हैं। उनका यह बयान केवल और अधिक शोषण का कारण बनेगा।

इस पर गौर करें, जब इन अरबपतियों की मेहनत केवल कुछ घंटों तक सीमित होती है और वे अपनी कंपनियों के मुनाफे के लिए काम करते हैं, तो क्या यही वजह नहीं है कि वे दूसरों से भी उम्मीद करते हैं कि वे भी अपना जीवन काम में ही समर्पित कर दें? यह उन लोगों के लिए एक घिनौनी सोच को दर्शाता है, जो अपनी सुख-सुविधाओं को बनाए रखने के लिए अन्य लोगों की मेहनत का शोषण करते हैं।

क्या हम इसे आधुनिक गुलामी नहीं कह सकते? ये अरबपति हमें 90 घंटे काम करने की सलाह दे रहे हैं, जब कि हमें पहले ही हमारे जीवन का सबसे अच्छा समय काम में लगाना पड़ता है। क्या हम मानवता के किसी भी पहलू का सम्मान करते हुए इस सच को नहीं समझ सकते कि कठिन मेहनत के बावजूद, हमारे पास अपने परिवार, अपने रिश्तों, और अपनी खुशियों के लिए भी समय होना चाहिए?

यह सवाल अब केवल इस बारे में नहीं है कि हम मेहनत कर रहे हैं या नहीं। यह सवाल हमारे अधिकारों, हमारे सम्मान, और हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमें सिर्फ उत्पादन के उपकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हम एक ऐसी ज़िंदगी जीने का हक रखते हैं, जिसमें हमारी मेहनत का सही मूल्य मिले, और हमें अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा अपनी इच्छाओं और जरूरतों के लिए समर्पित करने का अवसर मिले।

L&T के चेयरमैन ने इस विवाद में खुद को गलत साबित किया है। उनका बयान केवल शोषण की मानसिकता को बढ़ावा देता है। यह समय है कि हम सभी इस सोच को चुनौती दें, और अपने श्रमिक वर्ग की कठिन मेहनत को सही मायनों में सम्मानित करें। काम और जीवन का संतुलन हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि किसी अरबपति के निराधार सुझावों के तहत हमें अधिक मेहनत करने के लिए मजबूर किया जाए।



Shivam Srivastava

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