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लालू ‘कुनबे’ के ‘तारणहार’ तो नहीं तेजस्वी

raghvendra
Published on: 28 Jun 2019 8:13 AM GMT
लालू ‘कुनबे’ के ‘तारणहार’ तो नहीं तेजस्वी
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: तेजस्वी यादव। हां, लालू प्रसाद ने बड़े बेटे तेज प्रताप की जगह जिन्हें हर जगह प्रोमोट किया। लालू की छत्रछाया पटना से रांची होते ही तेजस्वी यादव की चमक फीकी पड़ गई है। इतनी फीकी कि अब राष्ट्रीय जनता दल उनकी घरेलू पार्टी के प्रारूप से अचानक विस्फोट की तरह बदल जाए तो संभालना संभव नहीं हो। लालू प्रसाद के ऐश्वर्य से क्रिकेट की पिच पर उतरने के बावजूद बल्ले से कुछ नहीं कर सके तेजस्वी को राजनीति में भी पिता लालू प्रसाद से दूरी आगे नहीं खींच पा रही।

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद मुजफ्फरपुर के ‘चमकी कांड’ से तेजस्वी चमक सकते थे, लेकिन वह बच्चों को संभालने के लिए आगे ही नहीं आए। गायब रहे। मजाक का विषय बने। राजद के फॉरवर्ड चेहरे रघुवंश सिंह तक मजाक कर रहे तेजस्वी को लेकर। कहने को राजद कह रहा है कि तेजस्वी लाश की राजनीति नहीं चाहते, लेकिन वहीं राजद का एक बड़ा हिस्सा यह भी कह रहा है कि मुजफ्फरपुर में बच्चों को बचाने के लिए खुद उतर जाते तो तेजस्वी आज कुछ और बन गए होते।

रघुवंश की बातों के संकेत को समझना होगा

लोकसभा चुनाव के दौरान राजद ही नहीं, पूरे महागठबंधन को आर्थिक आधार पर अगड़ी जातियों को आरक्षण के विरोध का खामियाजा भुगतना पड़ा था। कांग्रेस में फॉरवर्ड कई नेता हैं, जिन्हें खुलेआम विरोध झेलना पड़ा। राजद के पास ऐसा नाम कम है और उसमें सबसे बड़े हैं रघुवंश प्रसाद सिंह। रघुवंश सिंह खुद भी सांसद नहीं बन सके। मोदी सरकार की ओर से आर्थिक आधार पर अगड़ी जातियों को आरक्षण के खिलाफ तेजस्वी के बोल के कारण रघुवंश पहले ही भडक़े थे, रही-सही कसर चुनाव परिणाम में शून्य पर आउट होकर पूरी हो गई।

राजद के सारे प्रत्याशियों की हार की समीक्षा शुरू हुई तो फॉरवर्ड वोटरों के अलावा मुसलमानों का साथ नहीं मिलना भी बड़ा कारण बताया गया। कहा गया कि मुसलमानों की अगड़ी जातियों ने भी तेजस्वी का साथ नहीं दिया। यानी, तेजस्वी की रणनीति बुरी तरह पिट गई। अब ताजा वाकये पर आएं तो पिछले दिनों रघुवंश सिंह से मीडिया ने जब सवाल पूछा कि आखिर तेजस्वी यादव गायब कहां हैं तो उन्होंने मजाक भी उड़ा दिया कि क्रिकेट के शौकीन हैं, गए होंगे वल्र्ड कप देखने। तेजस्वी यादव कहां हैं, यह कोई जाने या नहीं मगर रघुवंश सिंह जरूर जानते हैं।

इसके बावजूद तेजस्वी को लेकर रघुवंश का यह मजाक आना छोटी बात नहीं। एक समय कहा जाता था कि रघुवंश सिंह लालू के सबसे करीबी हैं। आज भी इसमें शक नहीं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि लालू के डूबते कुनबे को बचाने में शायद ही रघुवंश भी मदद करें। रामकृपाल यादव ने जिस तरह से लालू की छत्रछाया से निकल उनके ही क्षेत्र में मीसा भारती को लगातार दो लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी है, उससे लालू के अन्य करीबियों की भी तमन्ना जागी-जागी हुई है। अंदरखाने ऐसा कहने वाले कम नहीं हैं कि राजद को परिवार की पार्टी से बाहर निकालना ही होगा। शायद सभी खास समय का इंतजार कर रहे हैं। संभव है कि वह समय आए तो तेजस्वी यादव पर एक साथ प्रहार हो।

बगावती समीकरण पर लालू भी ‘बेचारे’

पिछले दिनों तेजस्वी यादव और उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव के बीच मतभेद की जितनी खबरें आईं, उनमें शायद ही कोई झूठी निकली। मतभेद नहीं होने की बात दिखाने को दोनों ने साथ की तस्वीरें भी शेयर कीं, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान तेज प्रताप यादव ने राजद प्रत्याशी अपने ससुर से लेकर महागठबंधन के कई घोषित प्रत्याशियों के खिलाफ घोषित लड़ाई दिखाई। कहने वाले यह कह रहे कि तेज प्रताप कोई फैक्टर नहीं, लेकिन ऐसा है नहीं। राजनीति में तेज प्रताप भले बड़े फैक्टर नहीं साबित हुए हों, लेकिन घरेलू सिस्टम से चलने वाली पार्टी में घर का बड़ा लडक़ा फैक्टर तो है ही। तेजस्वी अपने बड़े भाई से गुस्से में हैं। तेज प्रताप लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के समय ही गुस्सा दिखा चुके हैं।

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद लालू प्रसाद का एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ था, जिसमें तेजस्वी और तेज प्रताप को लेकर वह अपने एक पुराने करीबी से कभी तल्ख तो कभी सहज अंदाज में बतियाते सुने जा रहे थे। उनकी अपने साले सुभाष यादव से नाराजगी साफ दिख रही थी। सबकुछ था, लेकिन कुछ मैनेज नहीं हो सका। न सुभाष यादव सामने आए लालू कुनबे को बचाने में और न तेज प्रताप को ही परिवार वालों ने आगे किया। तेजस्वी को आगे करते रहने के बावजूद मीसा भारती पाटलिपुत्रा लोकसभा सीट पर फिर हारकर बैठ गईं। मीसा ने लालू प्रसाद की तस्वीर के साथ नामांकन भरते हुए सांत्वना बटोरने की कोशिश की, लेकिन यहां भी तेजस्वी तारणहार नहीं बन सके। एक जगह तो उन्होंने जनाधार वाले अपने विधायक को ही नहीं पहचानने की बात कह मीसा का वोट कटवा दिया।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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