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अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद: दशकों से मामला जस का तस, SC ने कहा- जल्द ही सुलझाएंगे

सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले पर 21 जुलाई को दिए आदेश के बाद राम मंदिर निर्माण के समर्थकों को राम मंदिर के जल्द निर्माण होने की उम्मीद बंध गई है । सालों से ये मसलस अटका पड़ा है ।

tiwarishalini
Published on: 21 July 2017 1:12 PM IST
अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद: दशकों से मामला जस का तस, SC ने कहा- जल्द ही सुलझाएंगे
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लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले पर 21 जुलाई को दिए आदेश के बाद राम मंदिर निर्माण के समर्थकों को राम मंदिर के जल्द निर्माण होने की उम्मीद बंध गई है । सालों से ये मसलस अटका पड़ा है ।

अयोध्या विवाद को दशकों बीत गए हैं । मसला आज भी जस का तस है। विवाद इस बात पर है कि देश के हिंदूओं की मान्यता के अनुसार अयोध्या की विवादित जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है जबकि देश के मुसलमानों की बाबरी मस्जिद भी विवादित स्थल पर 6 दिसम्बर 1992 तक स्थित है।

कार सेवकों ने 6 दिसम्बर 1992 को विवादित स्थल को गिरा दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने बाबरा मस्जिद स्थल को कभी भी राम मंदिर या बाबरी मस्जिद नहीं बल्कि विचवादित स्थल कहा था ।

मुस्लिम सम्राट बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को वर्ष 1527 में हराने के बाद इस स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया था। बाबर ने अपने जनरल मीर बाकी को क्षेत्र का वायसराय नियुक्त किया। मीर बाकी ने अयोध्या में वर्ष 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।

इस बारे में कई तह के मत प्रचलित हैं कि जब मस्जिद का निर्माण हुआ तो मंदिर को नष्ट कर दिया गया या बड़े पैमाने पर उसमे बदलाव किये गए। कई वर्षों बाद आधुनिक भारत में हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावे करने शुरू किये जबकि देश के मुसलमानों ने विवादित स्थल पर स्थित बाबरी मस्जिद का बचाव करना शुरू किया।

प्रमाणिक किताबों के अनुसार पुन: इस विवाद की शुरुआत सालों बाद वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं।

वर्ष 1947 में भारत सरकार ने मुसलमानों के विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।

वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने हिंदुओं का एक अभियान शुरू किया कि हमें दोबारा इस जगह पर मंदिर बनाने के लिए जमान वापस चाहिए। साल 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। सांप्रदायिकता की आग तक भड़की जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नये मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने साम्प्रदायिक हिंसा का रूप लेना शरु किया।

साल 1992 में 6 दिसंबर को विवादित ढांचा गिराए जाने के साथ ही यह मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में संक्रामक रोग की तरह फैलने लगा। इन दंगों में 2000 से ऊपर लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।

साल 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरात्तव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। वर्ष 2003 में इलाहाबाद उच्च हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गयी।

भारतीय पुरात्तव विभाग के अनुसार खुदाई में मिले भग्वशेषों के मुताबिक विवादित स्थल पर एक प्रचीन उत्तर भारतीय मंदिर के प्रचुर प्रमाण मिले हैं। विवादित स्थल पर 50X30 के ढांचे का मंदिर के प्रमाण मिले हैं।

साल 2005 में पांच जुलाई को 5 आतंकियों ने अयोध्या के रामलला मंदिर पर हमला किया। इस हमले का मौके पर मौजूद सीआरपीएफ जवानों ने वीरतापूर्वक जवाब दिया और पांचों आतंकियों को मार गिराया।

साल 2010 में 24 सितंबर 2010 को दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने फैसले की तारीख मुकर्रर की थी। फैसले के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को टालने के लिए की गयी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे 28 सितंबर तक के लिए टाल दिया।

बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया और तब से अभी तक लंबित है क्योंकि दोनों पक्ष इससे सहमत नहीं थे । तीन जज की बेंच ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन बराबर बराबर हिस्से में बांट दी । राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को ,राम चबूतरा ओर सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वकफ् बोर्ड को देने का आदेश दिया था।

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