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Life of Transgender: क्या भारत में किन्नरों के लिए अलग कानून? कैसे होती है इनकी शादी, जानिए हर एक डिटेल
Laws for Transgender: आप सभी ने चमकीले कपडे पहने, मेकअप करे कुछ लोगो को देखा होगा जिनकी चाल में लचक दिखती है. जिनका अंदाज़ कभी मर्दो की तरह होता है तो कभी औरतो की तरह. पूरी दुनिया में यह लोग किन्नर के नाम से जाने जाते है. जानिए इनकी ज़िन्दगी आम लोगो से कितनी अलग होती है और क्या है इनके नियम?
Laws and Life of Transgenders: किन्नरों में मुख्यता दो वर्ग पाए जाते है- एक स्त्री और दूसरा पुरुष. स्त्री किन्नरों में पुरुषो के लक्षण और पुरुष किन्नरों में स्त्रियों के लक्षण पाए जाते है. किन्नर समुदाय की देवी “बेसरा माता” है और इनकी सवारी मुर्गा है. किन्नर समुदाय के सभी लोग इनकी पूजा- अर्चना करते है.
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किन्नर समाज के कायदे- कानून
किन्नर समाज में हर गुरु के अपने नियम होते है जिनका उनके साथियों को भली भाति पालन करना पढता है. नियमो का पालन न करने पर उनको समूह का हिस्सा नहीं माना जाता है. किन्नरों का रहन सहन समाज के सभी लोगोसे बहुत अलग होता है. इनकी मृत्यु के उपरांत इनका अंतिम संस्कार भी गुप्त तरीके से किया जाता है. भारत देश में किन्नरों को समाज का हिस्सा न मानकर उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है. समाज के लैंगिक विभाजन के आधार पर किन्नर न ही स्त्री लिंग का हिस्सा है न ही पुरुष लिंग का हिस्सा है. उनके पास भीख मांगने के लावा और कोई भी उपाय नहीं होता है. कुछ वर्षो से इनकी स्तिथि और समाज में सम्मान बढ़ा दिया गया है.
भारत में किन्नरों से जुड़े कानून
कानून का शाशन सर्वोच्च है और भारत में कानून की नज़र में सभी समान है. किन्नर समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान पाने के लिए सदैव लड़ाई करते पाए जाते है. भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा के तहत रिट याचिका 400 2012 के तहत न्यायमूर्ती के.एस राडकृष्णन और ए के सीकरी ने पुरुष और महिला के साथ ही तीसरे लिंग को मान्यता प्रदान करी थी. के एस राधाकृष्णन ने अपने बयान में कहा “तीसरे जेंडर के रूप में ट्रांसजेंडर की मान्यता एक सामाजिक या चिकित्सा मुद्दा नहीं है बल्कि एक मानवाधिकार है.” संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत कानून के समक्ष समानता के अधिकार और कानून के सामान संरक्षण की गारंटी दी गयी है. लिंग पहचान को चुनने का अधिकार गरिमा के साथ जीवन जीने का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो अनुच्छेद 21 के दायरे में आता है. अनुच्छेद 19 (1) (a) सभी लिंग की रक्षा करता है और 19 (2) के तहत किसी भी व्यक्ति को अपने कपडे स्वयं चुनने का अधिकार है. सर्वोच्च न्यायलय ने अपने अंतिम फैसले में कहा भारत के सविधान भाग 3 के अनुसार किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में माना जाना चाहिए.
क्या होती है किन्नरों की शादी?
किन्नरों की शादी का समारोह बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है. किन्नरों की शादी किसी भी इंसान से नहीं बल्कि उनके भगवान से ही होती है. इनकी शादी का जश्न तमिलनाडु के कूवगाम में होता है. तमिल नववर्ष की पहली पूर्णिमा के दिन इनकी शादी का उत्सव शुरू होता है. यह जश्न 18 दिन तक मनाया जाता है. 17 दिनों तक किन्नर की शादी चलती है और वह सज सवरकर धूम धाम से जश्न मनाते है. विवाह के दूसरे दिन इरवन देवता की मूर्ती को पूरे देश में घुमाया जाता है. फिर इस मूर्ती को तोड़ दिया जाता है ताकि किसी का भी किन्नर के रूप में जन्म ना हो. इसके पश्चात किन्नर अपना पूरा श्रृंगार उतारकर विधवा का रूप धारण कर लेते है. इस तरह किन्नर विवाह के दूसरे दिन ही विधवा होकर अपना विवाह ख़त्म कर लेते है. बीते कुछ वर्षो में भारत देश में किन्नरों का दर्जा बढ़ा है और उन्हें सरकार द्वारा विभिन्न नौकरियों का लाभ दिया जा रहा है.