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मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत करने वाले महान दिग्गज नहीं रहे

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन का 86 साल की उम्र में 10 नवंबर रविवार को निधन हो गया। उन्होंने चेन्नई में अंतिम सांस ली।

Roshni Khan
Published on: 11 Nov 2019 9:17 AM IST
मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत करने वाले महान दिग्गज नहीं रहे
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नई दिल्ली: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन का 87 साल की उम्र में 10 नवंबर रविवार को निधन हो गया। उन्होंने चेन्नई में अंतिम सांस ली। वे भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। वे 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक इस पद पर रहे। उनका पूरा का पूरा नाम तिरुनेल्लाई नारायण अय्यर शेषन था।

केरल के पलक्कड़ जिले में टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को हुआ था। इस दौरान उन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में कई बदलाव किए थे। टीएन शेषन ने ही मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत भी भारत में शुरू कराई गई थी। टीएन शेषन को 1996 में मैग्सेसे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था। उन्होंने इस सम्मान समारोह में एक संक्षिप्त भाषण में कहा था गरीबी और अशिक्षा के बावजूद भारत का मतदाता पोलिंग बूथ तक जाता है और उसी व्यक्ति के नाम पर मोहर लगाता है जिसे वह शासन करने के योग्य मानता है।

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कई सरकारी पदों पर रहे शेषन

1955 बैच के IAS अधिकारी टीएन शेषन कई सरकारी पदों पर कार्यरत रहे जिनमें रक्षा सचिव से लेकर कैबिनेट सचिव पद शामिल हैं। वैसे तो इस दौरान उन्हें उतनी ख्याति नहीं मिली जितनी उन्होंने 1990 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने के बाद अर्जित की। इस पद पर बैठने के बाद शेषन ने कई ऐसे काम और सुधार किए जो चुनाव प्रक्रिया में मील का पत्थर साबित हुए। उन्होंने 1990 से लेकर 1996 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद पर बने रहे। शेषन के कार्यकाल में लोगों ने भलीभांति जाना कि आचार संहिता को कितना प्रभावी बनाया जा सकता है। शेषन के जमाने में ही बोगस वोटिंग पर एक तरह से विराम लगना शुरू हुआ।

वोट की खरीद-फरोख्त पर चोट

पूर्व में वोटों की खरीद फरोख्त आम बात थी। प्रत्याशी कई प्रकार के प्रलोभन-लालच देकर वोट हासिल करने के हथकंडे अपनाते थे लेकिन शेषन ने इस पर लगाम लगाने के लिए सख्त कार्रवाई की और चुनाव सुधार में कई आयाम जोड़े। पोलिंग बूथों को स्थानीय दबंगों के चंगुल से आजाद करने के लिए केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती शेषन के दौर का अहम पड़ाव था। मतपेटियों की चोरी पर लगाम लगाने के लिए भी उन्हें काफी प्रमुखता से याद किया जाता है। यही नहीं, प्रत्याशियों को अपने चुनाव प्रचार में कितना खर्च करना है, प्रचार के शोर से लोगों को राहत और पोस्टर-बैनर से निजात दिलाने में भी उनका रोल काफी अहम था।

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धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार पर रोक

टीएन शेषन ने चुनाव खर्च की सीमा और प्रत्याशियों को जांच के लिए अपने खर्चों का पूरा लेखा-जोखा देने का प्रावधान लागू किया। उन्होंने ऐसे राजनेताओं का पर्दाफाश किया जिन्होंने सरकारी कार्यों के लिए सार्वजनिक संसाधनों का गलत यूज़ किया। चुनाव के दौरान उन्होंने शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया और चुनाव के समय बिना लाइसेंस के हथियारों को जब्त करने के नियम बनाए। उन्होंने धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार पर रोक लगाने जैसा काम किया।

बूथ कैप्चरिंग पर लगाम

बिहार और यूपी के चुनावों में बूथ कैप्चरिंग आम समस्या हुआ करती थी। पार्टी के दबंग अपने मन के हिसाब से प्रत्याशियों को थोक में वोट गिराते थे। इस क्रम में हिंसा भी आम बात थी। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा मतदाताओं को भुगतना पड़ता था। उनका वोट जबरन कैप्चर कर लिया जाता था। इस पर रोक लगाने के लिए चुनाव पर्यवेक्षकों के अलावा पोलिंग बूथ पर सुरक्षाकर्मी की तैनाती शेषन के दौर में ही अमल में लाई गई। कई पार्टियों ने शेषन की इस कार्यशैली पर प्रश्न उठाए लेकिन वे चुनाव सुधार की अपनी प्रतिबद्धता से डिगे नहीं और इसे प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया। 1991 का पंजाब चुनाव इतिहास के पन्नों में दर्ज है जिसे हिंसा के मद्देनजर निरस्त कर दिया गया था।

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राजनीति में भी आजमाया हाथ

निवार्चन आयुक्त के पद से रिटायर होने के बाद शेषन ने राजनीति में भी किस्मत आजमाई लेकिन वे सफल नहीं हो सके। 1997 में केआर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ा जिसमें वे हार गए। 1999 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। गांधीनगर सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ वे मैदान में उतरे थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जिंदगी के आखरी दिनों में वो अकेले पड़ गए थे क्योंकि पिछले साल उनकी पत्नी जयलक्ष्मी का देहांत हो गया था। वैसे तो पुत्री श्रीविद्या और दामाद महेश उनके साथ उनके अंतिम पलों में उनके साथ थे।

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