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Liqour Policy: किन-किन राज्यों में है कैसी शराब पॉलिसी, शराबबंदी के क्या है नफा और नुकसान
Liqour Policy: देश में हर साल 600 करोड़ लीटर शराब की खपत होती है। राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने शराब पर लगने वाली स्टेट एक्साइज ड्यूटी से साल 2019-20 में कुल 1,75,501.42 करोड़ रुपये की आमदनी की है।
Liqour Policy: दिल्ली की नई आबकारी नीति (New Excise Policy of Delhi) की सीबीआई जांच को लेकर इन दिनों सियासी घमासान मचा हुआ है। आप (AAP) और भाजपा (BJP) के नेता इस पर आपस में उलझे हुए हैं। बीजेपी जहां उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Deputy Chief Minister Manish Sisodia) पर घोटाला करने का अंजाम लगा रही है, वहीं सिसोदिया इसे किसी भी तरह का घोटाला मानने से ही इनकार कर रहे हैं। उनकी पार्टी लगातार केंद्र सरकार (Central Government) पर केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग करने का आरोप लगा रही है। इन सबके बीच देश में शराब और उसके वितरण के तरीके पर नए सिरे से बहस छिड़ गया है।
ड्राइ स्टेट को छोड़ दें तो ये भारत के सभी राज्यों में आमदनी का प्रमुख स्त्रोत है। राज्य सरकारों को शराब बिक्री से हजारों करोड़ का राजस्व मिलता है। कोरोना महामारी के पहले लॉकडाउन के दौरान जब लंबे समय तक शराब की दुकानें अन्य दुकानों की तरह बंद रही थी, तब राज्यों की माली हालत बुरी तरह बिगड़ गई थी। उनके पास कर्मचारियों को वेतन देने तक का पैसा नहीं थी। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्यों की अर्थव्यवस्था इसपर कितनी अधिक निर्भर है। खूब सारा पैसा होने के कारण राज्यों की आबकारी नीति अक्सर किसी न किसी वजह से विवादों में आ ही जाती है।
देश में शराब की खपत और आय का गणित
एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल 600 करोड़ लीटर शराब की खपत होती है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने शराब पर लगने वाली स्टेट एक्साइज ड्यूटी से साल 2019-20 में कुल 1,75,501.42 करोड़ रूपये की आमदनी की है। आरबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य अपनी आमदनी का करीब 15 फीसदा हिस्सा शराब पर लगने वाले टैक्स से कमाते हैं। साल 2018-19 में देश के राज्य औसतन हर महीने करीब 12500 करोड़ रूपये केवल शराब की बिक्री से कमाते थे। साल 2019-20 में उनकी आमदनी बढ़कर 15 हजार करोड़ प्रति महीने हो गई। इंटरनेशनल स्पिरिट्स एंड वाइंस एसोसिएशन ऑफ इंडिया (International Spirits and Wines Association of India) की एक रिपोर्ट कहती है साल 2019 में 2.48 लाख करोड़ रूपये की आमदनी शराब की बिक्री से हुई।
शराब से सबसे अधिक कमाई हासिल करने वाले राज्य
रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019-20 में उत्तर प्रदेश को शराब से कुल 31,517.41 करोड़ रूपये की आमदनी हुई थी। यूपी शराब पर 0.5 प्रतिशत के रूप में गो – कल्याण सेस भी लगाता है। कमाई के मामले में दूसरे नंबर पर कर्नाटक है, जिसने इसी अवधि में 20,950 करोड़ रूपये शराब पर टैक्स लगाकर कमाए थे। इसके बार महाराष्ट्र (17,477.38 करोड़ रूपये), पश्चिम बंगाल (11873 करोड़ रूपये) और फिर तेलंगाना (10,901 करोड़ रूपये) का स्थान आता है।
शराब बेचने के लिए लाइसेंस जरूरी
शराब का ठेका या वाइन शॉप खोलने के लिए सरकार द्वारा तय एक लंबी प्रक्रिया का पालन करना होता है। राज्य के हिसाब से प्रक्रिया में थोड़ा – बहुत बदलाव होता रहता है। लेकिन सामान्य नियम के तौर पर देखें तो शराब का बिजनेस करने के लिए लाइसेंस काफी अहम होता है। इसके लिए संबंधित राज्य के आबकारी विभाग (Excise Department) के जरिए व्यवसाय के लिए आवेदन किया जाता है। ये आवेदन तभी किया जाता है जब सरकार द्वारा विज्ञापन निकाला जाता है। शराब के व्यवसाय संबंधी आवेदन में अपनी सामान्य जानकारी के साथ जरूरी कागजात और पेन कार्ड सहित कुछ जरूरी जानकारियां भरनी होती है।
शराब पीने को लेकर उम्र की सीमा
सभी राज्यों ने अपने – अपने हिसाब से शराब के सेवन करने की उम्र की सीमा तय कर रखी है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में 25 से कम उम्र वालों के लिए शराब पीने की मनाही है। हालांकि, महाराष्ट्र में 21 या उससे ऊपर के लोग हल्की बियर का लुत्फ उठा सकते हैं। केरल में 2017 से पहले शराब पीने की न्यूनतम उम्र 21 साल थी, जो बाद में बढ़ाकर 23 साल कर दी गई। वहीं राजस्थान, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम, पुदुचेरी, लद्दाख और जम्मू कश्मीर में लोग 18 साल की उम्र में शराब का सेवन कर सकते हैं। बाकी अन्य राज्यों में 21 साल की उम्र निर्धारित की गई है।
देश के शराबबंदी वाले राज्य
देश में कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे भी हैं जहां शराब पीना अपराध है। वहां शराबबंदी कानून लागू है, इसलिए इन्हें आमबोल चाल की भाषा में 'ड्राइ स्टेट' भी कहते हैं। इनमें गुजरात, बिहार, नागालैंड, मिजोरम और लक्ष्यद्वीप आते हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र और मणिपुर के कुछ जिलों में शराबबंदी है। महाराष्ट्र के तीन जिलों वर्धा, गड़चिरौली और चंद्रपुर में शराबबंदी है।
शराबबंदी के फायदे
शराब सेहत के लिए कितना नुकसानदायक ये जगजाहिर है। शराब की लत के कारण कई बार लोग असमय बीमार पड़ते हैं और फिर उन्हें अपना शेष जीवन अस्पतालों के चक्कर में काटना पड़ता है। इससे उनकी आर्थिक सेहत कमजोर होती है औऱ वे धीरे – धीरे गरीबी की दलदल में धंसते चले जाते हैं। अपनी गाढ़ी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा लोग शराब में बर्बाद कर देते हैं। जिससे घर का माहौल तनावपूर्ण हो जाता है। महिलाओं और बच्चों की स्थिति घर में काफी खराब रहती थी। रिश्ते खराब होने लगते हैं। इनसे सबसे अधिक प्रभावित निम्न आर्य वर्ग और पिछड़े तबके लोग होते हैं। खासकर इन तबकों की महिलाओं को सबसे अधिक कष्ट झेलना पड़ता है। बिहार में शराबबंदी कानून लाने की सबसे बड़ी वजह महिलाओं की मांग रही है, जो सीएम नीतीश कुमार की सबसे मजबूत वोटबैंक बन चुकी है।
सीएम नीतीश कुमार ने शराबबंदी लागू होने के कुछ साल बाद एक समारोह में कहा था कि शराबबंदी से पहले लोग हर हफ्ते भोजन पर 1005 रूपया खर्च करते थे, जबकि शराबबंदी के बाद 1331 रूपये खर्च कर रहे हैं। शराबबंदी के बाद सब्जियां अधिक बिकने लगी है। 43 फीसदा पुरूष खेती पर अब अधिक समय देने लगे हैं। 84 फीसदी महिलाओं को अधिक बचत हो रही है और उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है।
शराबबंदी के नुकसान (Disadvantages of Alcoholism)
जिस तरह हर सिक्के के दो पहलु होते हैं। इसी तरह शराबबंदी के भी दो पहलु हैं। ये कट्टु सत्य है कि शराबबंदी कभी सफल नहीं हो पाया है और न कभी हो पाएगा। शराबबंदी के कारण नए माफियाओं का जन्म हुआ है, जो सत्ता के संरक्षण में रहकर बखूबी अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। साल 1960 में शराबबंदी कानून लागू करने वाला राज्य गुजरात इस मकसद में पूरी तरह से नाकाम रहा है। राज्य में गैरकानूनी ढंग से शराब पंजाब, एमपी, दमन दीव और राजस्थान से आती है। अभी तक हजारों करोड़ रूपये की शराब जब्त की जा चुकी है। शराबबंदी के बाद राज्य में जहरीली शराब पीने से मरने वालों की तादात में जोरदार इजाफा हुआ है।
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 3000 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई है। साल 2008 में अहमदाबाद में हुई एक बड़ी दुर्घटना में शराब पीने से 150 लोग मारे गए थे। सबसे ताजा घटना गुजरात के बाटोद की है जहां 23 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई थी और 40 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डायमंड सिटी के नाम से मशहूर सूरत अब अवैध शराब के कारोबार का गढ़ बनता जा रहा है, जहां हर माह 15 से 20 लाख की शराब पुलिस जब्त करती है।
वहीं बिहार की भी हालत कुछ ऐसी ही है। यहां भी अभी तक लाखों लीटर शराब जब्त की जा चुकी है। राज्य के पुलिस औऱ आबकारी विभाग के अधिकारियों के लिए भ्रष्ट कमाई का सबसे आसान रास्ता खुल गया है। शराबबंदी नियम तोड़ने के आरोप में अब तक साढ़े चार लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। अदालतें आबकारी मामलों से दबी हुई हैं। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट और पटना हाईकोर्ट ने इस कानून को लेकर तल्ख टिप्पणी कर दी थी। जेलों में क्षमता से कई गुना अधिक कैदी हो चुके हैं। इनमें सबसे अधिक गरीब और पिछड़े वर्ग के लोग हैं। यही वजह है कि बिहार में यह एक राजनीतिक मुद्दा रहा है। जदयू को छोड़कर तमाम पार्टियां इस कानून को खत्म करने के लिए एक तरह से राजी हैं। शराबबंदी के बाद गुजरात की तरह बिहार में भी जहरीले शराब के सेवन के कारण लोगों की मौतें हो रही हैं। विगत पांच सालों में 31 लोगों की मौत हो चुकी है। इन सबके अलावा बिहार के लिए शराबबंदी का फैसला आर्थिक मोर्चे पर भी एक आत्मघाती कदम की तरह साबित हुआ है। क्योंकि बिहार के पास आय कोई अन्य वैकल्पिक मजबूत स्त्रोत नहीं है। गुजरात एक औद्योगिक राज्य है इसलिए शरारबंदी के कारण उसकी सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा है। लेकिन बिहार जिसके पास बेहद सीमित आय के विकल्प हैं, वहां इसका असर साफ दिख रहा है। बिहार में शराबबंदी से पड़ोस के राज्यों से तस्करी बढ़ी है, जिससे राज्य को राजस्व का तगड़ा नुकसान हो रहा है। वहीं अन्य राज्य इससे लाभान्वित हो रहे हैं।