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Live-in Relationship: प्यार में डूबी महिलाओं का अकेलापन

Live-in Relationship In India: निक्की यादव, मेघा तोरवी, श्रद्धा वालकर- ये तीनों ही घटनाएं यह भी बताती हैं कि जब परिवार या समाज की स्वीकृति का सुरक्षा जाल असंभव बना दिया जाता है तो एक महिला कितनी अकेली होती है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 21 Feb 2023 7:56 AM IST (Updated on: 21 Feb 2023 8:44 AM IST)
Live-in Relationship Case
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Live-in Relationship Case (Photo - Social Media)

Live-in Relationship in India: # श्रद्धा वालकर - आफताब पूनावाला (Shraddha murder case), नवंबर, 2022 में दिल्ली में आफताब पूनावाला ने अपनी लिव इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की हत्या कर दी। उसके बाद लाश के दर्जनों टुकड़े करके जंगल में फेंक दिए। मुंबई के पास वसई की रहने वाली श्रद्धा की मुलाकात मलाड में एक कॉल सेंटर में काम करने के दौरान बंबल डेटिंग ऐप के जरिए आफताब अमीन पूनावाला से हुई थी। वह भी संयोग से उसी कॉल सेंटर में काम करता था। 2019 में, श्रद्धा अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ रहने के लिए दिल्ली चली गई। दोनों लाइव इन रिलेशनशिप में रहने लगे। आफताब बहुत एग्रेसिव था। श्रद्धा के साथ मारपीट करता था। अंत में उसने श्रद्धा का मर्डर ही कर दिया। यही नहीं, हत्या के बाद लाश के टुकड़े घर में रखे थे, तब आफताब उसी डेटिंग ऐप से मिली एक लड़की से उसी घर में मिल रहा था।

# निक्की यादव - साहिल गहलोत (Nikki Yadav Murder Case)

निक्की यादव का दुखद अंत उसके प्रेमी साहिल गहलोत के हाथों हुआ। निक्की, साहिल यादव के प्यार में डूबी हुई थी। दोनों ने एक मंदिर में शादी भी कर रखी थी। लेकिन साहिल ने अपने परिवार से यह बात छुपा रखी थी। इस बीच साहिल के घरवालों ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी।


जिस दिन यानी 10 फरवरी को शादी होनी थी उसी दिन निक्की को यह सब पता चला। दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। साहिल ने निक्की का गला एक तार से घोंट दिया। इसके बाद उसने निक्की की लाश अपने ढाबे के फ्रिज में रख दी। हत्या के कुछ घण्टे बाद साहिल बरात लेकर गया। बाकायदा शादी रचा ली। दुल्हन को क्या मालूम कि जिसके गले में वह वरमाला डाल चुकी है वह एक मासूम लड़की की हत्या करके मंडप में आया है।

# मेघा तोरवी - हार्दिक शाह (Megha Torvi Murde Case)

मुंबई के नालासोपारा इलाके में मेघा धनसिंह तोरवी को उसका लिव इन पार्टनर हार्दिक शाह 14 फरवरी को झगड़े के बाद गला दबा कर मार डालता है। कई घण्टे के बाद हार्दिक घर का समूचा समान एक कबाड़ीवाले को बुला कर बेच देता है। सिर्फ डबल बेड को छोड़ कर क्योंकि बेड के बॉक्स में मेघा की लाश छिपा कर रखी हुई है। फिर हार्दिक शाह मुंबई से भाग निकला। लेकिन उसने कर्नाटक में तोरवी की चाची को मैसेज भेज दिया कि उसने उसे मार डाला है और लाश बेड के अंदर है। उसने यह भी लिखा कि वह आत्महत्या करने जा रहा है। इसके बाद पुलिस को खबर हुई। एक स्टेशन पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।


निक्की यादव, मेघा तोरवी, श्रद्धा वालकर : तीन युवा महिलाओं का बेहद दुखद अंत। तीनों को उनके रोमांटिक पार्टनर ने गुस्से में आकर मार डाला और उनकी लाश को निपटा दिया गया। प्यार में डूबी इन महिलाओं की कहानियों के दिल दहलाने वाली डिटेल हिंसा, क्रूरता और हत्या की इंसानी लिमिट को तो दर्शाता ही है, हमारे समाज का एक बहुत गंदा आईना भी पेश करता है। तीनों ही घटनाएं यह भी बताती हैं कि जब परिवार या समाज की स्वीकृति का सुरक्षा जाल असंभव बना दिया जाता है तो एक महिला कितनी अकेली होती है।

तीनों घटनाओं की वजह अलग अलग हो सकती हैं, ट्रिगर पॉइंट अलग अलग हो सकते हैं। लेकिन समानताएं बहुत स्पष्ट हैं। परेशान करने वाला एक ही सवाल उठता है : जब प्यार गड़बड़ हो जाता है, तो एक महिला किसकी ओर रुख करती है?

क्या वह अपने परिवार की ओर देख सकती है? जिस देश में प्यार में पड़ना एक बड़े साहस का कार्य है, जिसे अक्सर परिवार और समाज की अवहेलना करते हुए किया जाता है, उसको देखते हुए यह अक्सर एक विकल्प नहीं होता है। प्यार में डूबी अधिकांश भारतीय महिलाएं यह जानती हैं। यदि वे अपने परिवारों से काफी दूर हैं, तो वे अपने पार्टनर के साथ रहने का जोखिम भी उठा सकती। ये बड़े महानगरों में अक्सर होता है। प्रॉपर्टी ब्रोकर, मकान मालिक और पड़ोसियों को भनक नहीं लगने दी जाती है कि वे शादीशुदा नहीं हैं।

चेतावनी के बाद भी क्यों बढ़ रहा चलन?

इस तरह के अनिश्चित रिश्तों के बारे में परिवारवालों को पता ही नहीं होता है। बहुत से बहुत करीबी एक दो दोस्तों को खबर होती है। लेकिन जब रोमांटिक पार्टनर के संग मनमुटाव हो जाता है, तो कोई क्या कर सकता है? किसकी तरफ देखे? ऐसा प्यार तो समाज में वर्जित है, परिवार वाले अंधेरे में हैं, प्यार में डूबी कोई लड़की करे तो क्या करे? इस सवाल ने लिव इन में रहने वाले करोड़ों जोड़ों को इन दिनों परेशान कर रहा है। इस परेशानी के बाद भी लिव इन में रहने वालों की निरंतर बढ़ रही संख्या के सामने अवरोध नहीं खड़ा कर पा रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि आख़िर यह चलन इतनी चेतावनी के बाद भी बढ़ क्यों रहा है? लिव इन में रहने के बाद विवाह करने वालों के विवाह कितने सफल हो रहे हैं? प्रेम का यह स्वरूप जो सीधे शरीर तक पहुंचने का आसान ज़रिया बन गया है, इसे मान्यता मिलनी चाहिए या नहीं? यह कब तक चलेगा? इसके लिए अदालती व सामाजिक समझ व मान्यताओं पर विमर्श ज़रूरी है।

लिव इन पर कोर्ट का स्टैंड

हक़ीक़त यह है कि अदालत इन रिश्तों पर कोई स्टैंड नहीं जता सकी है। साल 1978 में बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली दफा इस संबंध को मान्यता दी थी। इस रिलेशन को लेकर कोई लिखित कानून भारत में नहीं है। जब दो व्यस्क कपल साथ रहते हैं तो उन्हें साथ रहने का अधिकार संविधान के मौलिक अधिकारों से मिलता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपनी मर्जी से शादी करने या किसी के साथ रहने का अधिकार होता है। यानी आसान भाषा में समझें तो लिव-इन रिलेशन में रहने की आजादी और अधिकार को आर्टिकल 21 से अलग बिल्कुल नहीं माना जा सकता है। ऐसे रिलेशन के दौरान बच्चे पैदा हो गए तो उसे नाजायज नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके माता-पिता लंबे समय से एक साथ बेड शेयर कर रहे हैं, तो ऐसे में बच्चा बिल्कुल भी नाजायज नहीं हो सकता है।

तुसला और दुर्घाटिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशन के दौरान जन्मे बच्चे को राइट टू प्रॉपर्टी का अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में साफ़ किया कि, "लिव-इन रिलेशनशिप को पर्सनल ऑटोनोमी (व्यक्तिगत स्वायत्तता) के चश्मे से देखने की ज़रूरत है, ना कि सामाजिक नैतिकता की धारणाओं से।”

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी फ़ैसले का हवाला साल 2010 में अभिनेत्री खुशबू के 'प्री-मैरिटल सेक्स' और 'लिव-इन रिलेशनशिप' के संदर्भ और समर्थन में दिए बयान के मामले में दिया था। लेकिन इसी साल अगस्त में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस सुरक्षा की एक याचिका बर्खास्त कर दी और 5,000 रुपए जुर्माना लगाते हुए कहा कि, "ऐसे ग़ैर-क़ानूनी रिश्तों के लिए पुलिस सुरक्षा देकर हम इन्हें इनडायरेक्ट्ली (अप्रत्यक्ष रूप में) मान्यता नहीं देना चाहेंगे।” इसके फौरन बाद आए राजस्थान हाई कोर्ट के एक फ़ैसले में भी ऐसे रिश्ते को "देश के सामाजिक ताने-बाने के ख़िलाफ़" बताया गया।

पहले लिव इन से पहले तक के रिश्ते ही बनते थे। इसके बाद विवाह और फिर लिव इन के भीतर के प्रसंग व प्रपंच की शुरूआत हुआ करती थी। प्रेम एक ऐसा काल होता था। जो परखने व अपने अनुकूल होने या न होने के पैमाने पर तोल लेता था। समाज इंस्टेंट हुआ, एड-हॉक हुआ। तो इस काल खंड को इतना कम कर दिया गया कि प्रेम से शरीर तक की यात्रा पलक झपकते भी होने लगी। परखने, अनुकूल ,प्रतिकूल होने में खर्च होने वाला समय ख़त्म हो गया।

प्रेम, इश्क, मोहब्बत दुनिया का वह सबसे खूबसूरत एहसास है, जिसके बिना यह दुनिया मुमकिन नहीं। इसे अपनी जि़ंदगी में हर किसी ने महसूस किया है, हर किसी ने जिया है। पर लिव इन भारत में मुहब्बत के रिश्ते बनाने के तौर तरीक़ों और इन्हें लेकर समाज की बदलती सोच की तरफ़ इशारा करती है। अब तो डेटिंग, सोरोगेट डेट पर जाने और मोहब्बत में मुब्तिला होने के नये शऊर सिखा रही हैं। युवा सेक्स डेटिंग और अंतरंग रिश्तों को लेकर ज़्यादा खुले विचार रखते हैं। लिव इन ने सहजता को बढ़ा दिया है। प्रेमी इस जानी पहचानी दुनिया में गुम होने लोग हैं। विवाह केवल दो लोगों के साथ रहने और जीने का ज़रिया नहीं है। यह दो परिवारों, दो समाजों के मिलने- जुड़ने का संस्कार है। ये जो दो परिवार व दो समाज मिलते हैं, ये भी विवाह के चलते रहने व चलाते रहने का माध्यम व दबाव बनते हैं। लेकिन जब इसे दो शरीरों तक भी सीमित कर दिया जायेगा तब भोग के बाद बचेगा ही क्या? भोग लेने की भाषा समझता है। प्रेम देने की भाषा है। लिव इन की ये घटनाएँ बताती है कि आज प्‍यार वासना का रूप ले चुका है।

एक अध्ययन से पता चला है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में कम से कम तीन बार प्यार में पड़ सकता है। हालांकि, इनमें से प्रत्येक संबंध पहले से अलग प्रकाश में हो सकता है। प्रत्येक एक अलग उद्देश्य के रूप में कार्य करता है। मोहब्बत की तलाश को लिव इन के इस सफ़र में नाकामी का तजुर्बा शामिल है। नज़ाकत तो किसी भी अंतरंगता का अटूट हिस्सा है। लिव इन से यही ग़ायब है।

लिव इन भी उन्मुक्त होने के ट्रेंड या रवायत का हिस्सा है। इस रवायत में बहुत सी चीजें शुमार हैं - और सबसे बड़ा है विवाह के इंस्टीट्यूशन को नकारना। हम ट्रेंड को तो फॉलो करने लग गए हैं लेकिन ये नहीं समझ पा रहे हैं कि समाज को इवॉल्व होने में सैकड़ों साल तक लगे हैं। पुरुष की सोच भी इसी का हिस्सा है। वह अब भी आदिम और सिंगुलर है। और यही सबसे खतरनाक स्वरूप में सामने आ रहा है। याद रखना होगा कि हम वह नहीं हैं जो होना चाहते हैं, और ये पाने का रास्ता बहुत लंबा होता है।

( लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार।)



Shreya

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