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लोहड़ी की कहानी: उमंग और उल्लास से भरा है ये पर्व, जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं

भारत में हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से ठीक एक दिन पहले यानी मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रायः हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है।

Ashiki
Published on: 8 Jan 2021 6:49 AM GMT
लोहड़ी की कहानी: उमंग और उल्लास से भरा है ये पर्व, जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं
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लोहड़ी की कहानी: उमंग और उल्लास से भरा है ये पर्व, जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं

लखनऊ: भारत में हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से ठीक एक दिन पहले यानी मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रायः हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। लोहड़ी पंजाबियों का मुख्य त्योहार है, इसकी धूम उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा दिल्ली और अन्य राज्यों में भी लोहड़ी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।

लोहड़ी का महत्व

बता दें कि लोहड़ी का पर्व कृषि से जुड़ा हुआ है। इस दिन से ही मूली और गन्ने की फसल बुवाई शुरू हो जाती है और काट कर रखी गई रबी की फसल जैसे जौं, चना, मसूर, सरसों, गेहूं, मटर, मक्का आदि को लोहड़ी की अग्नि में अर्पित किया जाता है। इसका मतलब होता है कि नई फसल का भोग भगवान को अर्पित करने से पूरे वर्ष अच्छी फसल होती है। साथ ही धन और संपन्नता की प्रार्थना की जाती है।

LOHARI1 Photo-Social Media

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कैसे मनाते हैं लोहड़ी??

मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर इस त्योहार का उल्लास रहता है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। शाम के वक्त लोग एक जगह पर इकट्ठे होकर लकड़ियों व उपलों का छोटा सा ढेर बनाते हैं और आग जलाते हैं। इसके चारों ओर चक्कर काटते हुए लोग नाचते-गाते हैं रेवड़ी, गजक, मूंगफली, खील, मक्के के दानों की आहुति देते हैं। उसके बाद गले मिलकर एक दूसरे को बधाई दी जाती है और ढोल की थाप पर सब मिलकर भांगड़ा करते हैं। सभी लोगों में लोहड़ी यानि मक्का,गजक तिल गुड़ के पकवान बांटे और खाएं जाते हैं।

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Photo-Social Media

लोहड़ी का इतिहास

लोहड़ी के पर्व को लेकर कई तरह की मान्‍यताएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक मान्‍यता के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव शंकर का तिरस्‍कार किया था। राजा ने अपने दामाद को यज्ञ में शामिल नहीं किया। इसी बात से दुखी होकर सती ने अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुत‍ि दे दी थी। ऐसा माना जाता है कि तब से ही प्रायश्चित के रूप में हर साल लोहड़ी मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस दिन विवाहित कन्‍याओं को घर आमंत्रित कर यथाशक्ति उनका सम्‍मान किया जाता है। उन्‍हें भोजन कराया जाता है, उपहार दिए जाते हैं और श्रृंगार का सामान भी भेंट स्‍वरूप दिया जाता है।

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