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Lok Sabha Election: नेशनल कांफ्रेंस की भावी रणनीति को लेकर पिता-पुत्र में मतभेद, फारूक और उमर अब्दुल्ला की अलग-अलग राय
Lok Sabha Election 2024: जम्मू-कश्मीर की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले पिता-पुत्र डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की भी भावी रणनीति को लेकर अलग-अलग राय है।
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही जम्मू-कश्मीर की बड़ी सियासी ताकत मानी जाने वाली पार्टी नेशनल कांफ्रेंस में भावी रणनीति को लेकर मतभेद उभरते दिख रहे हैं। पार्टी के भीतर एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो भाजपा के साथ भविष्य में गठजोड़ की संभावना को बनाए रखना चाहता है जबकि दूसरा वर्ग इससे मुस्लिम वोटों के बड़े नुकसान की दलील देने में जुटा हुआ है।
जम्मू-कश्मीर की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले पिता-पुत्र डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला की भी भावी रणनीति को लेकर अलग-अलग राय है। पार्टी में मतभेद उभरने के कारण ही पार्टी अपनी सियासी मुहिम पर तेजी से अमल नहीं कर पा रही है।
पिता और पुत्र का अलग-अलग नजरिया
नेशनल कांफ्रेंस के दिग्गज नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला राज्य में अकेले चुनाव लड़ने के मूड में दिख रहे हैं जबकि दूसरी ओर उमर अब्दुल्ला की ओर से विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के बैनर तले चुनाव लड़ने की वकालत की जा रही है। फारूक अब्दुल्ला भाजपा से सीधी टक्कर लेने के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है कि राज्य की राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए भाजपा से सीधे टकराव का रास्ता छोड़कर उदार रुख बनाए रखने की जरूरत है।
फारूक अब्दुल्ला की ओर से हाल में दिया गया एक बयान भी सियासी हलकों में काफी चर्चा का विषय बना था। उनका कहना था कि पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरेगी और पार्टी को किसी अन्य दल के सहारे की कोई आवश्यकता नहीं है। इससे साफ हो गया था कि फारूक अब्दुल्ला विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के बैनर तले चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है।
फारूक अब्दुल्ला कर चुके हैं मोदी की तारीफ
नेशनल कांफ्रेंस के नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की थी। हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा पूरे देश को अकेले एकजुट नहीं बनाए रख सकती। उसे अन्य दलों की भी मदद लेनी पड़ेगी। फारूक अब्दुल्ला के इस बयान के बाद उनके एनडीए में शामिल होने की चर्चाएं भी सुनी गई थीं। हालांकि इस मुद्दे पर उन्होंने खुलकर कोई बयान नहीं दिया था।
नेशनल कांफ्रेंस से जुड़े हुए सूत्रों का कहना है कि फारूक अब्दुल्ला ने अपना रवैया यूं ही नहीं बदला है। वे लोकसभा चुनाव और उसके बाद हो होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान नेशनल कांफ्रेंस के सत्ता में लौटने की संभावनाओं को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं।
दरअसल जम्मू संभाग के साथ ही कश्मीर के अन्य हिस्सों में भी नेशनल कांफ्रेंस अब पहले की तरह मजबूत नहीं रह गई है। पार्टी के मजबूत गढ़ कहे जाने वाले कई इलाकों में भी भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत बनाने में कामयाबी हासिल की है। इसके अलावा पीपुल्स कांफ्रेंस के जरिए भी भाजपा ने नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के लिए मुसीबतें पैदा की हैं।
भावी रणनीति को लेकर दो धड़ों में बंटी पार्टी
नेशनल कांफ्रेंस से जुड़े हुए सूत्रों के मुताबिक भावी रणनीति को लेकर पार्टी दो धड़ों में बंटी हुई नजर आ रही है। पार्टी के कई पुराने दिग्गजों की ओर से जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल जाने की दलील दी जा रही है। उनका कहना है कि पार्टी पहले भी केंद्र में भाजपा का समर्थन कर चुकी है। इसलिए बदले हुए सियासी हालात में पार्टी को भाजपा के साथ प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष रूप से चलने में कोई परहेज नहीं करना चाहिए।
दूसरी ओर उमर अब्दुल्ला के साथ पार्टी के कई अन्य नेताओं का मानना है कि ऐसा करना नेशनल कांफ्रेंस के लिए भविष्य में अच्छा साबित नहीं होगा। इन नेताओं का कहना है कि जम्मू-कश्मीर की अधिकांश आबादी मुस्लिम है। भाजपा के साथ गठजोड़ करने की स्थिति में पार्टी का जनाधार घट जाएगा और दूसरे राजनीतिक दलों को इसका बड़ा सियासी फायदा होगा। पार्टी के एक वर्ग का कहना है कि विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के साथ जाने के बजाय पार्टी को अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए ताकि पार्टी अपने एजेंडे पर कायम रह सके।