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Lok Sabha Election 2024: क्या विपक्ष नीतीश कुमार को मानेगा अपना चेहरा?
Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार के इस हृदय परिवर्तन को लेकर दिल्ली से लेकर पटना तक राजनीतिक गलियारों में कयासों का बाजार गर्म है।जानकारों का कहना है नीतीश केवल सीएम बने रहने के लिए इस तरफ नहीं आए हैं।
Lok Sabha Election 2024: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राज्यपाल फागू चौहान (Bihar Governor Fagu Chauhan) से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया है। इसी के साथ वो आठवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने की तैयारी में भी जुट गए हैं। नीतीश कुमार अब एक बार फिर राजद (RJD) और कांग्रेस (Congress) के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं। वैसे बिहार की सियासी फिजा में लंबे समय से ऐसी अटकलें चल रही थी, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे नीतीश की 'प्रेशर पॉलिटिक्स' मान रहे थे।
मगर पिक्चर अब साफ हो चुका है। कल तक विपक्ष में बैठने वाली बिहार की विपक्षी पार्टियां अब सत्ता पक्ष की तरफ बैठने की तैयारी कर रही है। वहीं, सत्ता पक्ष में बैठने वाली बीजेपी विपक्ष में बैठने जा रही है। इस अदला-बदली में नीतीश कुमार 'कॉन्सटेंट' हैं।
नीतीश का 'हृदय परिवर्तन'
नीतीश कुमार के इस हृदय परिवर्तन को लेकर दिल्ली से लेकर पटना तक के राजनीतिक गलियारों में कयासों का बाजार गर्म है। सियासी जानकारों का कहना है कि नीतीश केवल सीएम बने रहने के लिए इस तरफ नहीं आए हैं। उन्हें प्रधानमंत्री पद का वादा दिया गया है। पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने भी बीते दिनों कुछ ऐसा ही बयान दिया था। इसके अलावा जदयू के तमाम नेता नीतीश को 'पीएम मेटेरियल' बता ही रहे हैं। दरअसल, राजद भी चाहती है कि नीतीश जल्द से जल्द राज्य की राजनीति से विदा हों। सूत्रों के हवाले से ये भी कहा जा रहा है कि इसे लेकर नीतीश कुमार की सोनिया गांधी से बातचीत हो चुकी है।
क्या विपक्ष नीतीश कुमार को मानेगा अपना चेहरा?
वर्तमान में विपक्ष का मतलब केवल कांग्रेस नहीं है। कांग्रेस जरूर आज भी बीजेपी के बाद सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है। लेकिन वह काफी कमजोर हो चुकी है। जरूरी नहीं कि उसके एक कॉल से सभी विपक्षी पार्टियां उसके पीछे लामबंद हो जाए। हालिया उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice President Election) इसका उदाहरण है। विपक्ष में ऐसे कई धुरंधर हैं, जिन्होंने मोदी-शाह की बीजेपी को कड़ी पटखनी दी है। इनमें कुछ की तो राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा न के बराबर है। वे अपने राज्य की सीमा में ही खुश हैं, जैसे बीजद (BJD) और वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress)। लेकिन ममता बनर्जी (Mamata Banerjee), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और केसीआर (KCR) जैसे ताकतवर क्षत्रपों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। ये नेता अपने-अपने राज्यों में नीतीश कुमार के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत हैं। ऐसे में बिहार में अपनी सियासी जमीन धीरे-धीरे खोने वाले कुमार को कितने विपक्षी नेता पीएम पद का उम्मीदवार मानेंगे, इस पर बड़ा सवाल है।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi)
साल 2014 में केंद्र की सत्ता से बेदखल होने के बाद से कांग्रेस अब तक उबर नहीं पाई है। साल 2019 के आम चुनाव में पार्टी को एक बार फिर जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। ये चुनाव पार्टी ने राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा था। इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था। पार्टी के लाख कोशिशों के बावजूद राहुल ने दोबारा अध्यक्ष बनने से फिलहाल के लिए इनकार कर दिया है।
इस बीच कांग्रेस देश के सियासी नक्शे से सिमटकर गिनती के राज्यों में रह गई। हालांकि, राजनीति में कभी भी कुछ हो सकता है, लेकिन कांग्रेस की वर्तमान स्थिति को देखते हुए 2024 में वह बीजेपी को कड़ी टक्कर दे पाएगी, इस पर संशय है। ऐसे में पार्टी की कोशिश होगी, पीएम मोदी को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखने की। इसके लिए पार्टी को एक बड़े दिल के साथ किसी ग्रैंड अलायंस के साथ जुड़ना होगा, जिसके कोर में वो खूद होगी। साल 2024 में वह दूरगामी फायदे के लिए तात्कालिक कुर्बानी दे सकती है। हालांकि, कांग्रेस ने अभी तक नीतीश के पीएम पद के उम्मीदवार के बारे में कुछ नहीं कहा है। पार्टी के नेता अभी भी राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं।
शरद पवार (Sharad Pawar)
81 वर्षीय एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) एक कद्दावर राजनेता हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रह चुके पवार को भी काफी महत्वाकांक्षी व्यक्ति माना जाता है। एनसीपी सुप्रीमो साल 1991 में प्रधानमंत्री बनते – बनते रह गए औऱ बाजी पीवी.नरसिंह राव ने मार ली थी। पवार को आज प्रधानमंत्री न बन पाने का मलाल है और वह इसी उम्मीद में सियासत से रिटायर नहीं हो रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने से उनके इनकार की वजह को भी इसे ही माना जा रहा है। पवार को लगता है कि विपक्षी नेताओं के साथ उनके संबंध और उनका लंबा सियासी अनुभव उन्हें इस पद तक पहुंचा सकता है। ऐसे में विपक्ष की तरफ से यदि कोई कवायद होती है तो एनसीपी सुप्रीमो अपनी दावेदारी को छोड़ नीतीश कुमार पर सहमत हो जाएंगे, फिलहाल कहना मुश्किल है।
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उनके सबसे कट्टर प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरी हैं। साल 2021 में विपक्ष में उनका कद तब और बड़ा हो गया जब उन्होंने बीजेपी द्वारा पूरी ताकत झोंकने के बावजूद विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार प्रचंद जनादेश के साथ जीत हासिल की। ममता फिलहाल शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर बैकफुट पर हैं। उनकी साफ छवि को धक्का लगा है। हालांकि, अपने करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी को सरकार और संगठन से बाहर कर उन्होंने एक सख्त संदेश देने की कोशिश जरूर की है।
ममता की पार्टी टीएमसी ने साल 2024 के चुनाव के लिए काफी पहले ही कैंपेन छेड़ दिया है। बंगाल के बाहर उनकी पार्टी पैर पसारने की पूरी कोशिश कर रही है। पिछले दिनों कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने टीएमसी का दामन थामा था। इसे 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर बनने की कवायद के तौर पर ही देखा जा रहा है। ऐसे में पश्चिम बंगाल सीएम नीतीश कुमार को बतौर पीएम कैंडिडेट कितना स्वीकार करेंगी, कहना मुश्किल है। साल 2017 में ममता ने नीतीश के महागठबंधन छोड़ने पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
केसीआर (KCR)
तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव एक प्रमुख मोदी विरोधी क्षत्रप के तौर पर उभरे हैं। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में उनके और प्रधानमंत्री के बीच बेहतर संबंध थे। लेकिन जब से बीजेपी ने तेलंगाना में अपनी पैठ बनानी शुरू की है, तब से दोनों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। मतभेद इस हद तक पहुंच चुका है कि केसीआर बीते दिनों पीएम मोदी के तेलंगाना आगमन पर उन्हें रिसीव करने तक एयरपोर्ट नहीं पहुंचे थे। इतना ही नहीं हालिया नीति आयोग की बैठक में भी वो शामिल नहीं हुए। तेलंगाना सीएम लगातार पीएम मोदी पर हमला बोल रहे हैं। इसके अलावा वह तीसरे मोर्चे को लेकर भी खासे सक्रिय हैं। नीतीश कुमार की पिछला ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए वो उन्हें पीएम का उम्मीदवार मानेंगे, ये कहना जल्दबाजी होगा। लगातार दूसरी सीएम बने केसीआर खुद भी राज्य की सत्ता अपने बेटे को सौंपकर प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी ठोंक सकते हैं।
एम.के. स्टालिन (M. K. Stalin)
तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति के नए पोस्टर ब्वॉय बने मुख्यमंत्री एम. के स्टालिन फिलहाल राज्य में कांग्रेस के साथ सरकार चला रहे हैं। स्टालिन की पार्टी डीएमके यूपीए का हिस्सा है। ऐसे में पीएम पद के उम्मीदवार पर उनका फैसला काफी हद तक कांग्रेस के फैसले पर निर्भर करेगा। वो पूर्व में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान चुके हैं। ऐसे में स्टालिन नीतीश कुमार के समर्थन में तभी खड़े हो सकते हैं, जब कांग्रेस भी उन्हें समर्थन देने का ऐलान कर देगी।
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal)
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को बहुत चतुर राजनेता के तौर पर एक कुशल वक्ता भी हैं। उन्होंने दो बार दिल्ली जैसे छोटे राज्य में सीमित संसाधनों और अधिकारों के साथ बीजेपी को जबरदस्त पटखनी दी। इसी साल उनकी पार्टी ने पंजाब में ऐतिहासिक जीत कर सबको चौंका दिया। अरविंद केजरीवाल हिंदी पट्टी राज्यों में तेजी से कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं। राजनीति जानकार आने वाले समय में भारतीय राजनीति में उनकी निर्णायक भूमिका मानते हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनकी नजर हिंदी पट्टी के उन 40-50 लोकसभा सीटों पर है, जहां वो जीत हासिल कर केंद्रीय राजनीति में एक असरदार भूमिका में आ सकते हैं। केजरीवाल लगातार बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर समान रूप से हमलावर हैं। ऐसे में नीतीश कुमार के उभरने से उत्तर भारत में उनके संभावनाओं पर असर पड़ सकता है।