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Lok Sabha Election: इस चुनाव में भुला दिए गए आडवाणी, जोशी
Lok Sabha Election Analysis Story: राजनीति को करीब से देखने समझने वालों ने विशेषकर नोटिस किया कि इस प्रचार अभियान में भाजपा के पुरोधा सरीखे "मार्गदर्शक" नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सिरे से गायब रहे। उनकी मौजूदगी तो दूर, न नाम लिया गया और न चर्चा की गई।
Lok Sabha Election Analysis Story: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ गये हैं। वोटों की खातिर जनता के बीच नेताओं का सब शोर-शराबा, आरोप-प्रत्यारोप, हमला-बचाव, सब अब खत्म है। इस बार का लोकसभा चुनाव सिर्फ तीन महीने में अत्यधिक आक्रामक प्रचार अभियान का गवाह बना। जिसमें सबसे आगे रही भारतीय जनता पार्टी, जिसने मतदाताओं के दिलोदिमाग में अपना नैरेटिव बिठाने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन तब भी भाजपा के अभियान में एक महत्वपूर्ण कमी लगातार दिखी, खासकर उत्तर प्रदेश में। राजनीति को करीब से देखने समझने वालों ने विशेषकर नोटिस किया कि इस प्रचार अभियान में भाजपा के पुरोधा सरीखे "मार्गदर्शक" नेता सिरे से गायब रहे। उनकी मौजूदगी तो दूर, न नाम लिया गया और न चर्चा की गई। उनका अस्तित्व ही मानो नकार दिया गया हो।
ये नेता द्वय हैं - लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी। भाजपा के विकास और चुनावी उपलब्धियों में दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दोनों ही पार्टी के मजबूत आधार के शिल्पी रहे हैं। लेकिन शिल्पकार अब कहाँ हैं, क्या करते हैं, कोई उनसे मार्गदर्शन लेता भी है कि नहीं?
सबसे पहले बात करते हैं लाल कृष्ण आडवाणी की
अब 96 वर्ष के हो चले आडवाणी किसी समय भाजपा के "पोस्टर बॉय" हुआ करते थे। पार्टी की पहचान उनसे हुआ करती थी। आडवाणी सामान्य नेता नहीं बल्कि सन 80 में बनी भाजपा के संस्थापकों में से एक थे। ये आडवाणी ही थे जिन्होंने भाजपा के उत्थान की स्क्रिप्ट लिखी थी और 1984 में लोकसभा में दो सीटों वाली भाजपा को 15 साल के भीतर ही सरकार बनाने लायक़ बना दिया था।
दरअसल, आडवाणी ने भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1986 में आडवाणी भाजपा प्रमुख बने और पार्टी हिंदुत्व विचारधारा की ओर मुड़ गई। राजीव गांधी सरकार द्वारा बाबरी मस्जिद के ताला खोलने के आदेश के बाद अयोध्या आंदोलन ने देश भर में ध्यान आकर्षित किया था। भाजपा के राम मंदिर के संकल्प का जबर्दस्त फायदा हुआ। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा की सीटों की संख्या दो से बढ़कर 1989 में 86 हो गई। आडवाणी के नेतृत्व में हिन्दुत्व की विचारधारा भाजपा का राजनीतिक चेहरा बन गई।
दरअसल, आडवाणी के बिना राम जन्मभूमि आंदोलन की कल्पना करना असंभव है, जिनकी सितंबर 1990 की रथ यात्रा ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी थी। 25 सितंबर, 1990 को, आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा शुरू की थी। इसी रथ यात्रा के मद्देनजर भाजपा ने 1991 में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी की सीटों की संख्या बढ़कर 120 हो गई ।यह पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। आडवाणी ने कहा था - मेरा मानना है कि 1989 और 1996 के बीच भाजपा की अभूतपूर्व वृद्धि का श्रेय राम जन्मभूमि आंदोलन को दिए गए हमारे समर्थन को जाता है। हमारे लिए अयोध्या हमेशा राष्ट्रीय जागरण का एक शक्तिशाली प्रतीक रहेगा।
अयोध्या का वही रामजन्मभूमि आंदोलन जो आज भी भाजपा के चुनावी और राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा है। लाला कृष्णा आडवाणी की उपलब्धियां बेहद शानदार रही हैं, वह देश के उपप्रधानमंत्री रहे, चार बार केंद्रीय मंत्री रहे और दो मर्तबा लोकसभा में नेता विपक्ष रहे। आडवाणी ने राज्यसभा के सदस्य के रूप में कुल चार कार्यकाल और लोकसभा के सदस्य के रूप में सात कार्यकाल पूरे किए। यह बहुत बड़ी उपलब्धि रही। आडवाणी 1970 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में संसद में शामिल हुए। वो 1989 तक चार कार्यकालों तक राज्यसभा के सदस्य रहे।
आडवाणी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1989 में नई दिल्ली से लड़ा था और कांग्रेस की वी. मोहिनी गिरि को हराकर लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। बाद में 1991 में उन्होंने दो निर्वाचन क्षेत्रों – गांधीनगर और नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और दोनोंजगाह से विजयी रहे। उन्होंने गांधीनगर में जी.आई. पटेल और नई दिल्ली में राजेश खन्ना को हराया था। बाद में उन्होंने नई दिल्ली सीट खाली कर दी थी। 1998 में आडवाणी फिर से गांधीनगर से लोकसभा के लिए चुने गए। बाद में वे 1999, 2004, 2009 और 2014 में गांधीनगर से फिर से चुने गए।
भाजपा नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी
भाजपा के दूसरे नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी का कद भले ही लाल कृष्ण आडवाणी जैसा न हो लेकिन पार्टी के लिए उनका योगदान कमतर भी नहीं रहा है। आडवाणी की तरह डॉ जोशी भी भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से हैं। मुरली मनोहर जोशी भी राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। उन्होंने 1991 से 1993 के बीच पार्टी के अध्यक्ष के रूप में पार्टी का नेतृत्व किया। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998-2004) में मानव संसाधन विकास व विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में भी काम किया था। डॉ जोशी का चुनावी सफ़र भी शानदार रहा है। वह उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों से लड़े और सांसद बने। डॉ जोशी ने कानपुर, वाराणसी, और प्रयागराज का प्रतिनिधित्व लोकसभा में किया है। यही नहीं वह अल्मोड़ा, उत्तराखंड से भी सांसद रहे। जिस वाराणसी सीट से नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ते हैं उसे 2014 में डॉ जोशी ने ही खाली किया था।
डॉ. जोशी की 90 साल की लंबी और उपलब्धियों भरी यात्रा में देश में सूचना प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष कार्यक्रमों को स्थापित करना और दिशा देना तथा हर बच्चे, खासकर लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के उनके काम ऐतिहासिक रहे हैं।
आतंकवाद के चरम के दिनों में डॉ. जोशी कन्याकुमारी से श्रीनगर तक एकता यात्रा की। इस लंबी यात्रा में उनके साथ नरेंद्र मोदी भी थे। वो डॉ जोशी ही थे जिन्होंने संकटपूर्ण दौर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया था।
रामजन्मभूमि आंदोलन में डॉ जोशी का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। पार्टी की कमान संभालने के बाद आडवाणी ने मुरली मनोहर जोशी को राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया था।इस तरह जोशी पार्टी के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे। उस समय मंदिर आन्दोलन का मतलब ही आडवाणी-जोशी था।
भाजपा अध्यक्ष के रूप में आडवाणी का लगातार दूसरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद फरवरी 1991 में डॉ जोशी को पार्टी प्रमुख के रूप में चुना गया। इसके तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 85 से बढ़कर 120 हो गईं और इसका वोट शेयर 11 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी हो गया। इस चुनाव के शानदार प्रदर्शन में डॉ जोशी की भूमिका महत्वपूर्ण थी। भाजपा अध्यक्ष के रूप में डॉ जोशी ने जून 1991 में कल्याण सिंह को यूपी का सीएम बनाया। इसके तुरंत बाद, नए सीएम और जोशी ने ‘मंदिर यहीं बनाएंगे’ के नारों के बीच अयोध्या का दौरा किया और तत्कालीन विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण की शपथ ली थी। राज्य सरकार ने बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ जमीन भी अधिग्रहित कर ली और उसे वीएचपी को सौंप दिया। इसके बाद रामलला मंदिर निर्माण तक का घटनाक्रम तो सभी जानते हैं।
हैरानी की बात है कि भाजपा को आकार देने वाले डॉ जोशी और आडवाणी 2024 की चुनावी यात्रा में सिरे से नदारद रहे। उनका नाम या उनका योगदान याद तक नहीं किया गया। कहा जाता है कि इतिहास बदलने वाले कई बार खुद इतिहास से लापता हो जाते हैं और शायद यही बात इन दोनों नेताओं पर लागू हुई है।हालाँकि कभी यही भाजपा यह नारा बुलंद करती थी - "भारत माँ के तीन धरोहर, अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर।"