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कांग्रेस को मिल रहे एक बाद एक झटके, अब इस राज्य की सत्ता खतरे में

राज्य के कांग्रेस के कई विधायक केंद्रीय और राज्य नेतृत्व की भूमिका से खुश नहीं हैं। असम में कांग्रेस विधायक दल के नेता देवव्रत सइकिया खुद प्रदेश नेतृत्व की भूमिका से खुश नहीं हैं।

SK Gautam
Published on: 18 March 2020 10:46 AM GMT
कांग्रेस को मिल रहे एक बाद एक झटके, अब इस राज्य की सत्ता खतरे में
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नई दिल्ली: कांग्रेस के हाथ से एक के बाद एक राज्य की सत्ता फिसलती जा रही है। मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद असम में भी कांग्रेस टूटती हुई नजर आ रही है। राज्य के कांग्रेस के कई विधायक केंद्रीय और राज्य नेतृत्व की भूमिका से खुश नहीं हैं। असम में कांग्रेस विधायक दल के नेता देवव्रत सइकिया खुद प्रदेश नेतृत्व की भूमिका से खुश नहीं हैं।

देवव्रत सइकिया दे सकते हैं पद से इस्तीफा

देवव्रत सइकिया ने एक बातचीत के दौरान कहा कि वे कांग्रेस में बने रहेंगे, लेकिन विधानसभा के बजट सत्र के बाद विधायक दल के नेता के पद से इस्तीफा देंगे, क्योंकि वे अपने विधायकों के दबाव में हैं। इससे साफ है कि उनके मन में भी कुछ चल रहा है।

वे कहते हैं कि प्रदेश नेतृत्व विधायकों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने में विफल रहा है। जबकि केंद्रीय नेतृत्व इस बारे में कोई फैसला नहीं ले पा रहा है। ऐसे में बेहतर है कि नेतृत्व किसी अन्य विधायक को विधायक दल के नेता का दायित्व सौंप दे।

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पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हितेश्वर सइकिया के पुत्र हैं देवव्रत सइकिया

मालूम हो कि देवव्रत सइकिया असम के दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हितेश्वर सइकिया के पुत्र हैं। कांग्रेस के भीतर सइकिया के खिलाफ बीते लगभग एक साल से पूर्व मंत्री और विधायक दल के उपनेता रकीबुल हुसैन की अगुवाई वाले विधायक व अन्य नेता नई दिल्ली तक मुहिम चला चुके हैं।

उन्हें विधायक दल पद से हटाने में सफलता तो नहीं मिली, लेकिन हाईकमान सइकिया को एक सीमा से आगे बढ़ने की ढील भी नहीं दे रहा। जबकि सइकिया चाहते हैं कि पार्टी को इस वक्त असम में आक्रमक होने की जरूरत है। उनके समर्थक विधायक पर उन पर कांग्रेस को सक्रिय करने का दबाव डाल रहे हैं।

सइकिया समेत कई कांग्रेस विधायकों का मानना है कि असम में ‘का’ विरोधी आंदोलन की वजह से भाजपा सरकार के खिलाफ राज्य व्यापी माहौल है। कांग्रेस के लिए अपना जनाधार बनाने के लिए यह एक अच्छा मौका था, लेकिन पार्टी चूक गई।

‘का’ के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान भी समय पर पूरा नहीं हो पाया। वैसे प्रदेश अध्यक्ष रिपुण बोरा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उनका प्रदर्शन जमीन पर नहीं दिख रहा है। विधायक और पार्टी को एकजुट करने में विफल रहे हैं।

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हिंदू मतदाता अभी भी दूर हैं

राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने मौलाना बदरुद्दीन अजमल नेतृत्व वाले एआईयूडीएफ के साथ तालमेल करके सही रणनीति अपनाई है। अब कांग्रेस के पास अच्छा मौका है। वह अजमल के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन हिंदू मतदाता अभी भी दूर हैं और उन्हें साथ लेने में पार्टी अभी तक दूर है।

यही वजह है कि विधायकों का एक खेमा विकल्प तलाश रहा है। उसे लगता है कि ऐसे में अगली बार जीतकर आना मुश्किल होगा। यही वजह है कि कई कांग्रेस नेता भाजपा के संपर्क में हैं। नेडा के संयोजक और असम के वित्त मंत्री डॉ. हिमंता बिस्वा शर्मा ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि कांग्रेस के कई विधायक उनके संपर्क में हैं।

SK Gautam

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