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मध्यप्रदेश में सपाक्स बिगाड़ सकती है गणित
भोपाल। मध्य प्रदेश में हाल में सामान्य पिछड़ा अल्पसंख्यक कल्याण समाज (सपाक्स) का उदय हुआ है। इसका नेतृत्व एक पूर्व आईएएस कर रहे हैं। यह दल मध्य प्रदेश में सभी सीटों पर विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा है। उधर, 2012 में बनी जेएवाईएस आदिवासियों के बीच पैठ बनाकर दावा कर रही है कि उसके पास मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में दस लाख कार्यकर्ता हैं। यह पार्टी आदिवासी बहुल क्षेत्रों की अस्सी सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है।
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सपाक्स में अधिकांशत: अगड़ी जातियों के सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं। सपाक्स के पास सबसे मजबूत हथियार दलित एक्ट में संशोधन का विरोध है। यह पार्टी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में संशोधन का विरोध कर रही है। इसका दावा है कि इसके पास अगड़ों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के 54 फीसदी वोट का जबर्दस्त समर्थन है और इसके पास छह लाख कार्यकर्ता हैं। यह दो अक्टूबर को अस्तित्व में आई है। राज्य की राजनीति में इन दोनों दलों का प्रवेश भाजपा और कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टियों की आंख की किरकिरी बन रहा है।
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अगड़ी जातियों पर नजर
आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए सपाक्स अपनी आंख लगातार अगड़ी जातियों के वोट बैंक पर गड़ाए हुए है। सभी 230 सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही इस पार्टी का नारा है हम हैं माई के लाल। सपाक्स के मुखिया हीरा लाल त्रिवेदी का दावा है कि जो हमारी बात नहीं सुन रहे वह मध्यप्रदेश और राजस्थान में सत्ता में नहीं रहेंगे। हमें संविधान में प्रदत्त बराबरी का अधिकार चाहिए। हम अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एक्ट के विरोध में नहीं हैं, लेकिन हम इसमें किये जा रहे संशोधनों के खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि आरक्षण का लाभ एक बार मिले। श्री त्रिवेदी का कहना है कि हमारा फोकस आरक्षण विरोधी वोटों पर है और आरक्षित वर्ग के उन वोटों पर हैं जो क्रीमी लेयर क्लास के स्वार्थ के चलते आरक्षित वर्ग के लाभ से वंचित हैं। अगड़ों के अलावा 6.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट और कुछ प्रतिशत वंचित वर्ग के वह वोट जिन्हें उनके अधिकार देने से वंचित कर दिया गया है हम उनको साथ लेकर चलेंगे।
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आरक्षण के विरोध में दिख रही एकजुटता
लाख टके का सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दो राजनीतिक दलों का उदय परिवर्तन का संवाहक बनेगा। मध्य प्रदेश में आज हर तरफ इस बात की चर्चा है और लोग आरक्षण नीति के विरोध में एकजुट होते दिख रहे हैं। सपाक्स को बड़े पैमाने पर समर्थन मिलने की बात भी कही जा रही है, लेकिन यह भीड़ वोट के रूप में कितना परिवर्तित होगी, यह देखने की बात है। फिर गौरतलब यह है कि शिवराज सिंह तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। एक ही चेहरा देखकर ऊब चुकी जनता अब परिवर्तन चाहती है। जब वहां कुछ लोगों से बात की तो उनका जवाब यह था कि सवाल यह नहीं है कि कौन सत्ता में आएगा, लेकिन शिवराज सिंह अब हमें स्वीकार नहीं हैं। हम परिवर्तन चाहते हैं। सत्ता में चाहे कोई भी आए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा को इस चुनाव में नुकसान होगा, लेकिन शिवराज जीत जाएंगे और भाजपा की सरकार बन जाएगी। यहां पर केन्द्रीय नेतृत्व का शिवराज पर दबाव बना रहेगा। शीर्ष नेतृत्व कह सकता है कि आप हार रहे थे। हमारी बदौलत जीते हैं। रही बात कांग्रेस की तो कहा यह जा रहा है कि सिंधिया जितने पावरफुल राजस्थान में साबित होते, उतना मध्यप्रदेश में नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस का सत्ता में आना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
भाजपा-कांग्रेस नहीं मान रही ताकत
फिलहाल भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इन दोनों पार्टियों का कोई प्रभाव नहीं मान रही हैं। उनका दावा है कि इनका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का भी मानना है कि हर बार चुनाव से पहले पानी के बुलबुले की तरह इस तरह की पार्टियों का उदय होता है और फिर यह गायब हो जाती हैं। लेकिन जनता की नब्ज समझने में बड़े दलों की असफलता कोई बड़ा गुल खिला सकती है। इस बार यह बात भी सुनी जा रही है कि शिवराज नहीं, और कोई भी। यदि ऐसा हुआ तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।