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अपनी बेटी की शादी कराकर दूसरों को बना रहे सन्यासी? सद्गुरु से हाईकोर्ट का सवाल
Sadhguru Jaggi Vasudev: ईशा फॉउंडेशन के खिलाफ दर्ज हुई याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने सद्गुरु से पूछा सवाल।
Sadhguru Jaggi Vasudev: मद्रास हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए आध्यात्मिक प्रवचन देने वाले सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर कड़ी टिप्पणी की हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि अपनी बेटी की शादी की है और वह सांसारिक सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जी रही हैं। फिर अन्य महिलाओं को क्यों सिर मुंडाकर संन्यासी की तरह जीने के लिए प्रेरित करते हैं? दरअसल यह टिप्पणी ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज हुई याचिका की सुनवाई के दौरान हुई। जानिए क्या है पूरा मामला।
क्या है मामला
कोयंबटूर की एक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की ओर से कोर्ट में याचिका दायर की गई है। जिसमें कहा गया है कि उसकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ब्रेनवॉश कर ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र रखा गया है। प्रोफेसर एस कामराजकी तरफ से बताया गया कि उनकी दोनों बेटियों की उम्र 42 और 39 साल है। उन्होंने यह भी कहा कि ईशा फाउंडेशन की तरफ से उन्हें बंदी बनाया गया है। जिसके बाद 30 सितंबर को मद्रास हाई में मामले की सुनवाई के दौरान प्रोफसर की दोनों बेटियों को कोर्ट के सामने पेश किया गया। जिनसे सवाल- जवाब के दौरान बेटियों ने कोर्ट को बताया कि वो कोयंबटूर के योग केंद्र में अपनी मर्जी से रह रही हैं और उन्हें किसी ने बंदी नहीं बनाया है।
हाई कोर्ट ने क्या कहा
केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और जस्टिस वी शिवागणनम ने मामले के सम्बन्ध में कुछ शक जताया है। जस्टिस शिवागणनम ने कहा, ''हम जानना चाहते हैं कि एक शख्स जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से बसाया, वह दूसरों की बेटियों को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासियों का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है?'' जिसके बाद ईशा फाउंडेशन के वकील ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि एक बालिग व्यक्ति को अपनी जिंदगी चुनने का अधिकार है और वो इस शक को समझ नहीं पा रहे हैं। इसके जवाब में हाई कोर्ट ने कहा कि आप इसे नहीं समझ पाएंगे, क्योंकि आप इस मामले में पार्टी (सद्गुरु जग्गी वासुदेव) की ओर से पेश हो रहे हैं, लेकिन ये कोर्ट न किसी के पक्ष में है और न किसी के खिलाफ।
माता- पिता को नजर अंदाज करना पाप है- हाई कोर्ट
केस को लेकर जब दोनों बेटियों को कोर्ट के सामने पेश किया गया तो उनके बर्ताव को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा की आप आध्यात्म के मार्ग पर चलने की बात कह रही हैं। क्या अपने माता-पिता के नजरअंदाज करना पाप नहीं है। भक्ति का मूल है कि सभी से प्यार करो और किसी से नफरत न करो, लेकिन हम आपमें अपने परिजनों के लिए बहुत नफरत देख रहे हैं। आप उन्हें सम्मान देकर बात तक नहीं कर रही हैं।
वहीं याचिकाकर्ता प्रोफेसर एस कामराज ने कोर्ट को बताया कि मेरी बेटी ने ब्रिटेन से एमटेक की डिग्री ली है। वो एक लाख रूपए महीना कमा रही थी। उसकी शादी 2007 में एक ब्रिटेन लड़के से हुई लेकिन 2008 में उनका तलाक हो गया। उसके बाद से ही मेरी बेटी ने ईशा फाउंडेशन में हिस्सा लेना शुरू किया था। बाद में छोटी बेटी ने भी बड़ी को देखते हुए योग केंद्र का हिस्सा बन गई। बेटियों के पिता ने आरोप लगाते हुए कहा कि ईशा योग केंद्र में मेरी बेटियों को किसी तरह की दवा दी जाती थी। जिससे वो अपनी सोचने-समझने की शक्ति खो बैठीं।