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Maharashtra Politics: अंधेरी उपचुनाव में भाजपा ने क्यों हटाया उम्मीदवार, फैसले के पीछे पार्टी की बड़ी सियासी रणनीति

Maharashtra Politics: भाजपा की ओर से इस कदम को उठाए जाने के पीछे बड़ी सियासी सोच मानी जा रही है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 18 Oct 2022 12:09 PM IST
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अंधेरी उपचुनाव में भाजपा ने क्यों हटाया उम्मीदवार (photo: social media )

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में शिवसेना में हुई बगावत के बाद अंधेरी उपचुनाव पर सबकी निगाहें लगी हुई थीं मगर अब यह हाईवोल्टेज मुकाबला देखने को नहीं मिलेगा। दरअसल शिंदे गुट के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाने वाली भाजपा ने इस उपचुनाव से कदम वापस खींच लिए हैं। अब यह उपचुनाव महज औपचारिकता रह गया है क्योंकि उद्धव गुट की उम्मीदवार रुतुजा लटके को चुनौती देने के लिए भाजपा के मुरजी पटेल चुनावी अखाड़े में नहीं होंगे।

उद्धव गुट के विधायक रमेश लटके के आकस्मिक निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। मनसे के प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर अपना उम्मीदवार वापस लेने का अनुरोध किया था। एनसीपी मुखिया शरद पवार ने भी भाजपा से यही अनुरोध किया था। वैसे भाजपा की ओर से इस कदम को उठाए जाने के पीछे बड़ी सियासी सोच मानी जा रही है। दिवंगत रमेश लटके की विधवा के पक्ष में सहानुभूति लहर और मराठी बनाम गुजराती का मुद्दा उठ जाने के कारण रुतुजा की जीत तय मानी जा रही थी। ऐसे में माना जा रहा है कि उद्धव गुट को जीत के बाद मिलने वाले सियासी फायदे से रोकने के लिए भाजपा ने यह कदम उठाया है।

राज ठाकरे और पवार ने किया था अनुरोध

महाराष्ट्र की सियासत में अंधेरी ईस्ट सीट पर हो रहे उपचुनाव को काफी अहम माना जा रहा था। इस उपचुनाव में उद्धव गुट ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी रुतुजा लटके को चुनाव मैदान में उतारा है। मनसे के मुखिया राज ठाकरे ने रविवार को राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को चिट्ठी लिखकर अंधेरी ईस्ट सीट से अपना उम्मीदवार वापस लेने की मांग की थी। पहले रुतुजा का बीएमसी से इस्तीफे का मामला काफी दिनों तक लटका रहा। इसके लिए उन्हें हाईकोर्ट तक की शरण लेनी पड़ी और हाईकोर्ट ने उनका इस्तीफा तत्काल मंजूर करने का आदेश दिया था ताकि वे उपचुनाव लड़ सकें।

उनकी उम्मीदवारी का रास्ता साफ होने के बाद मनसे के मुखिया राज ठाकरे ने डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर भाजपा के उम्मीदवार मुरजी पटेल का नामांकन वापस लेने की मांग की थी। फडणवीस ने इस संबंध में नेतृत्व से चर्चा करने की बात कही थी और बाद में भाजपा ने इस सीट से अपना उम्मीदवार को वापस लेने का फैसला किया।

मराठी बनाम गुजराती से नुकसान की थी आशंका

इस बड़े फैसले के पीछे भाजपा और शिंदे गुट की की बड़ी सियासी रणनीति मानी जा रही है। मराठी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रुतुजा पटेल के मुकाबले गुजराती समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मुरजी पटेल कमजोर साबित हो रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का खेमा इस उपचुनाव को मराठी बनाम गुजराती बनाने की कोशिश में जुटा हुआ था।

इस चुनाव क्षेत्र में मराठी और हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है जबकि गुजरातियों की आबादी कुछ ही इलाकों में है। अभी तक चुनाव में रमेश लटके को मराठी समुदाय का एकजुट समर्थन मिलता रहा था। 2014 की मोदी लहर के दौरान भी उन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की थी। उद्धव खेमे की उम्मीदवार के पक्ष में सहानुभूति लहर भी दिख रही थी।

ऐसे में भाजपा और शिंदे गुट को उद्धव गुट की उम्मीदवार के मुकाबले अपनी स्थिति कमजोर नजर आने लगी। इस उपचुनाव में जीत के बाद उद्धव गुट को बड़ा सियासी लाभ हासिल हो सकता था। इस जीत के जरिए उद्धव गुट यह संदेश देने की कोशिश करता कि अभी भी महाराष्ट्र के मतदाता उसके साथ हैं। ऐसे में उद्धव गुट को बड़ा सियासी लाभ पाने से रोकने के लिए भाजपा ने अपना उम्मीदवार वापस लेने का बड़ा फैसला किया।

बीएमसी चुनावों पर पड़ता असर

एक और बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि भाजपा और शिंदे गुट की निगाहें बीएमसी के चुनावों पर लगी हुई हैं। इस उपचुनाव में हार से बीएमसी चुनाव के दौरान भी भाजपा और शिंदे गुट के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं। शिवसेना में हुई बगावत के बाद उद्धव खेमा अपनी सियासी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है जबकि भाजपा और शिंदे गुट ने बीएमसी चुनावों के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। उपचुनाव की हार भाजपा-शिंदे गुट के लिए महंगी पड़ सकती थी और इसलिए पार्टी ने बड़ी सियासी चाल चलते हुए अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया।

उद्धव गुट को नहीं मिलेगा सियासी लाभ

शिवसेना में बगावत के बाद उद्धव ठाकरे खुद को काफी कमजोर महसूस कर रहे हैं मगर इस उपचुनाव में लड़कर जीत हासिल करने से उन्हें सियासी संजीवनी हासिल हो सकती थी। इस जीत के बाद उद्धव खेमा बढ़े हुए विश्वास के साथ बीएमसी के चुनावों में उतरता। उद्धव खेमे की आक्रामकता भाजपा और शिंदे गुट के लिए महंगी पड़ सकती थी।

सियासी जानकारों का मानना है कि इसी कारण भाजपा नेतृत्व ने बड़ी सियासी चाल चलते हुए उद्धव गुट को सियासी मौका भुनाने के लाभ से वंचित कर दिया है। उद्धव खेमे को चुनाव लड़कर जीतने से जो सियासी फायदा हो सकता था, वह स्थिति अब नहीं बन पाएगी।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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