TRENDING TAGS :
Maharashtra Election 2024:महाराष्ट्र में खिसक गई उद्धव की सियासी जमीन,अब कुनबे को एकजुट बनाए रखने की बड़ी चुनौती
Maharashtra Election 2024:अब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए भी आगे की सियासी राह काफी मुश्किल हो गई है। हिंदुत्व की राजनीति के दम पर एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की पार्टी को भारी चोट पहुंचाई है
Maharashtra Election 2024 : महाराष्ट्र में महायुति की सुनामी ने शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को जबर्दस्त चोट पहुंचाई है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने विधानसभा की 95 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे मगर पार्टी को सिर्फ 20 सीटों पर जीत हासिल हुई है। शिवसेना में हुई टूट के बाद यह विधानसभा चुनाव उद्धव के लिए काफी अहम माना जा रहा था मगर उद्धव अपनी सियासी ताकत दिखाने में नाकाम साबित हुए हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना ने 58 सीटों पर जीत हासिल करते हुए अपनी ताकत दिखा दी है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे को सबक सिखाना चाहते थे मगर उनके अरमानों पर पानी फिर गया है। असली-नकली की लड़ाई में शिंदे अपनी शिवसेना को असली शिवसेना साबित करने में कामयाब साबित हुए हैं। अब उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के सामने पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं को एकजुट बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में बीएमसी और स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं और इस चुनाव में ताकत दिखाना उद्धव के लिए आसान साबित नहीं होगा।
मतदाताओं का मिजाज नहीं भांप सके उद्धव
विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में महायुति की लहर नहीं बल्कि सुनामी दिखी है। उन्होंने स्वीकार किया कि वे मतदाताओं का मूड भांपने में विफल साबित हुए। शिवसेना में हुई बगावत के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो गए थे।
हालांकि उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि जनता की सहानुभूति उनके साथ है और वे विधानसभा चुनाव में बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे को सबक सिखाने में कामयाब हो पाएंगे। हालांकि उनका यह सपना अब अधूरा रह गया है क्योंकि शिंदे और ताकतवर बनकर उभरे हैं।
शिंदे की बगावत ने दी थी बड़ी चोट
उद्धव ठाकरे ने अपने सियासी जीवन में कई झंझावातों का सामना किया है मगर अब उनके सामने सियासी वजूद बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। बाला साहब ठाकरे के बाद पार्टी की कमान संभालने से मुख्यमंत्री बनने तक उन्होंने लंबा सफर तय किया है। शिवसेना के दिग्गज नेता नारायण राणे और अपने चचेरे भाई राज ठाकरे की बगावत के समय तो वे अपनी पार्टी को बचाने में कामयाब रहे मगर एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत में उन्हें करारी चोट दी है।
इसी कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। बाद में पार्टी का सिंबल भी उनके हाथों से छिन गया जिसे लेकर वे केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर लगातार हमला बोलते रहे हैं। विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा और शिंदे सेना पर हमला बोला था मगर उनकी कोई भी रणनीति इस विधानसभा चुनाव में असर नहीं दिखा सकी है।
कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाना पड़ा महंगा
भाजपा से रहे अलग होने के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस और एनसीपी से हाथ जरूर मिला लिया था मगर इसे लेकर उनकी पार्टी में भी जबर्दस्त असंतोष पैदा हो गया था। शिवसेना के अधिकांश विधायक कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन से नाराज थे। वैचारिक रूप से दोनों पार्टियों का शिवसेना से काफी मतभेद रहा है। भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन स्वाभाविक था मगर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन को शिवसेना के कार्यकर्ता भी नहीं पचा सके।
पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं में पैदा हुई इस नाराजगी से उद्धव ठाकरे अनजान बने रहे और इसकी कीमत उन्हें एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत के समय चुकानी पड़ी। इस बगावत के समय शिवसेना के अधिकांश विधायक उद्धव को छोड़कर शिंदे की अगुवाई में भाजपा के साथ मिल गए। इस प्रकरण के बाद ही उद्धव की आधी सियासी जमीन खिसक चुकी थी और अब विधानसभा चुनाव के नतीजे से उनके सामने अपना सियासी वजूद बचाने का बड़ा संकट पैदा हो गया है।
ठाकरे की सियासी राह हुई मुश्किल
अब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए भी आगे की सियासी राह काफी मुश्किल हो गई है। हिंदुत्व की राजनीति के दम पर एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे की पार्टी को भारी चोट पहुंचाई है। करीब ढाई साल पहले शिवसेना में हुई बगावत में के दौरान शिंदे शिवसेना के अधिकांश विधायकों को अपने साथ ले जाने में कामयाब रहे थे। उस प्रकरण के बाद उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे को जबर्दस्त चोट देना पहुंचाना चाहते थे मगर मतदाताओं का समर्थन शिंदे को ही हासिल हुआ है।
उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे वर्ली विधानसभा सीट पर जीत हासिल करने में जरूर कामयाब हुए हैं मगर महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में उद्धव के प्रत्याशियों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अब उद्धव के सामने आदित्य ठाकरे की मदद से शिवसेना में नई जान फूंकने की बड़ी चुनौती है। अब यह देखने वाली बात होगी कि उद्धव ठाकरे आने वाले समय में इस चुनौती का किस तरह सामना करते हैं