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Maharashtra Election 2024: MVA को मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन का भरोसा मगर टिकट देने में दिखाई कंजूसी
Maharashtra Election 2024: एमवीए की ओर से 14 मुसलमानों को टिकट दिया गया है जबकि महायुति ने भी सात चुनाव क्षेत्रों में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनाव में भी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व ज्यादा बढ़ने वाला नहीं है।
Maharashtra Election 2024: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन (MVA) को मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन की बड़ी उम्मीद है मगर गठबंधन ने मुसलमानों को टिकट देने में कंजूसी दिखाई है। मुसलमानों की ओर से इस बार समुदाय के लोगों को ज्यादा टिकट देने की गुहार लगाई गई थी मगर उनकी उम्मीद पूरी नहीं हो सकी। सत्तारूढ़ महायुति से तो मुसलमानों को पहले ही ज्यादा उम्मीद नहीं थी मगर एमवीए ने भी मुसलमानों की मांग को पूरा नहीं किया है। हालांकि एमवीए को लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन का पूरा भरोसा है।
एमवीए की ओर से 14 मुसलमानों को टिकट दिया गया है जबकि महायुति ने भी सात चुनाव क्षेत्रों में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनाव में भी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व ज्यादा बढ़ने वाला नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा में अभी तक 13 से ज्यादा मुस्लिम विधायक कभी नहीं रहे और माना जा रहा है कि ऐसी ही स्थिति इस बार भी दिखने वाली है।
13 से अधिक मुस्लिम विधायक कभी नहीं जीते
महाराष्ट्र की 11 करोड़ की आबादी में करीब 1.3 करोड़ मुसलमान हैं। प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 11.56 फीसदी है। वैसे यदि पिछले 25 वर्षों के इतिहास को देखा जाए तो विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या कभी भी पांच फ़ीसदी से अधिक नहीं रही।
राज्य के विधानसभा में 1999 में आखिरी बार सर्वाधिक 13 मुस्लिम विधायक पहुंचे थे। इससे पूर्व 1972 और 1980 के विधानसभा चुनाव में भी 13 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। पिछले विधानसभा चुनाव में 10 और 2014 में नौ मुस्लिम विधायकों ने चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी।
मुस्लिमों की अधिक टिकट देने की मांग अनसुनी
इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम बिरादरी से जुड़े लोगों ने अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया था। कुछ मुसलमानों ने बाकायदा संगठन बना कर यात्राएं तक निकाली थीं। मुसलमानों की ओर से अलग-अलग नेताओं से संपर्क साधकर अधिक टिकट देने की गुहार लगाई गई थी मगर उनकी मांग अनसुनी रह गई है।
मशहूर मौलाना सज्जाद नोमानी ने एमवीए के नेताओं से अधिक मुसलमानों को टिकट देने की मांग की थी। महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी एमवीए के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। दरअसल महायुति गठबंधन में भाजपा सबसे बड़ा दल है जबकि शिवसेना के शिंदे गुट की छवि भी कट्टर हिंदुत्ववादी मानी जाती रही है।
ऐसे में मुसलमानों को महायुति से ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं मगर एमवीए ने भी मुसलमानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। एमवीए की ओर से 14 मुसलमानों को टिकट दिया गया है जबकि महायुति ने भी सात मुसलमानों को चुनाव मैदान में उतारा है।
महाराष्ट्र की हार-जीत में मुस्लिमों की अहम भूमिका
महाराष्ट्र के कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका प्रत्याशियों की जीत-हार में काफी अहम मानी जाती रही है। राज्य की पांच विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आधे से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं जबकि मालेगांव विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 60 फीसदी है। नौ चुनाव क्षेत्रों में मुसलमानों की संख्या 40 फ़ीसदी से अधिक है जबकि 15 चुनाव क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम 30 फ़ीसदी से अधिक हैं।
राज्य की 38 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी से अधिक है। राज्य की 60 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता किसी प्रत्याशी की जीत-हार में अहम फैक्टर साबित हो सकते हैं। इसके बावजूद एमवीए की ओर से ज्यादा मुसलमानों को टिकट न दिए जाने पर हैरानी जताई जा रही है।
मुस्लिमों के समर्थन का क्यों है भरोसा
सियासी जानकारों का मानना है कि दरअसल एमवीए नेताओं का ख्याल है कि उन्हें समर्थन देना मुस्लिम मतदाताओं की मजबूरी है। मुस्लिम मतदाता भाजपा और शिंदे गुट वाले गठबंधन के प्रत्याशियों के लिए मतदान नहीं कर सकते। लोकसभा चुनाव के दौरान एमवीए के शानदार प्रदर्शन में मुसलमानों और दलितों के समर्थन को बड़ा कारण माना गया था। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं और एमवीए ने 30 सीटों पर जीत हासिल करके एनडीए को बड़ा झटका दिया था।
लोकसभा चुनाव में मिला था समर्थन
लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस का भी मानना था कि कम से कम 14 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम और दलित मतदाताओं के कारण एनडीए के उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान एमवीए की ओर से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा गया था मगर फिर भी विपक्षी गठबंधन को मुसलमानों का भारी समर्थन मिला था।
महाराष्ट्र में पूर्व में भी पारंपरिक रूप से मुसलमानों का समर्थन कांग्रेस और एनसीपी को हासिल होता रहा है। अब शिवसेना का उद्धव गुट भी गठबंधन में शामिल है मगर ज्यादा टिकट न दिए जाने पर भी एमवीए को समर्थन देना मुसलमानों की सियासी मजबूरी माना जा रहा है।
इस बार के विधानसभा चुनाव को लेकर भी एमवीए नेताओं का मानना है कि एआईएमआईएम और सपा की वजह से गठबंधन को ज्यादा नुकसान नहीं होगा और मुसलमानों का समर्थन आमतौर पर एमवीए प्रत्याशियों को ही हासिल होगा।
हिंदुत्व के मुद्दे की दिखेगी प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र के मौजूदा विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा और शिवसेना के शिंदे गुट की ओर से हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की कोशिश की जा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान अजित पवार की एनसीपी को लेकर भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में खास तौर पर नाराजगी दिखाई थी। भाजपा नेताओं की नाराजगी दूर करने के साथ ही हिंदू मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए पार्टी की ओर से हिंदुत्व कार्ड खेलने पर जोर दिया जा रहा है।
भाजपा का यह रुख मुस्लिम मतदाताओं को एमवीए की ओर आकर्षित करने का बड़ा कारण बन रहा है। ऐसे में मुसलमानों के सामने एमवीए को समर्थन देने की सियासी मजबूरी दिख रही है। यही कारण है कि एमवीए नेता मुस्लिम मतदाताओं को लेकर आश्वस्त हैं कि उन्हें इस समुदाय का वोट लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी हासिल होगा।