TRENDING TAGS :
Maharashtra Elections: बारामती में चाचा-भतीजा में कौन पड़ेगा भारी, शरद पवार ने युगेंद्र के जरिए मुश्किल कर दी अजित की राह
Maharashtra Elections: बारामती को सबसे हॉट सीट माना जा रहा है क्योंकि इस सीट पर चाचा अजित पवार को भतीजे युगेंद्र पवार की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है।
Maharashtra Elections: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार बारामती को सबसे हॉट सीट माना जा रहा है क्योंकि इस सीट पर चाचा अजित पवार को भतीजे युगेंद्र पवार की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही है। कहने को तो चुनाव युगेंद्र पवार लड़ रहे हैं मगर उनके पीछे शरद पवार ने अजित पवार को सबक सिखाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इसलिए यह चुनाव शरद पवार और अजित पवार दोनों के लिए प्रतिष्ठा की जंग माना जा रहा है।
अपनी चुनाव सभाओं के जरिए दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। बारामती विधानसभा क्षेत्र को पवार कुनबे का गढ़ माना जाता रहा है मगर दोनों दिग्गज नेताओं की इस लड़ाई में बासमती के मतदाता भी ऊहापोह की स्थिति में फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव में अजित पवार को बड़ा झटका देने के बाद शरद पवार विधानसभा चुनाव में भी उन्हें बड़ी चोट देना चाहते हैं।
बारामती विधानसभा सीट का इतिहास
बारामती विधानसभा सीट के इतिहास को देखा जाए तो इस सीट पर 1962 से कांग्रेस और उसके बाद एनसीपी का कब्जा लगातार बना रहा है। 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी मालतीबाई शिरोले ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद 1967 में पहली बार शरद पवार ने इस सीट पर जीत हासिल की। शरद पवार का इस सीट पर लंबे समय तक कब्जा बना रहा है और वे 1990 तक इस सीट से विधायक रहे।
1991 में राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद शरद पवार ने यह सीट अपने भतीजे अजित पवार को सौंप दी। अजित पवार ने 1991 के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर इस सीट पर जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस टिकट पर 1995 में भी वे जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
लंबे समय से जीत रहे हैं अजित पवार
1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार का कांग्रेस से मतभेद हो गया और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की। 1999 के चुनाव में उन्होंने एनसीपी के टिकट पर बारामती से अजित पवार को उतारा जिसमें अजित को कामयाबी मिली। इसके बाद 2004,2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में भी एनसीपी के उम्मीदवार के रूप में अजित पवार इस सीट पर अपनी जीत का सिलसिला बनाए रखने में कामयाब रहे।
लोकसभा चुनाव में पत्नी सुनेत्रा को मिली थी हार
2019 के विधानसभा चुनाव में अजित पवार ने इस सीट पर कांग्रेस के गोपीचंद पटलकर को भारी मतों से हराया था। पवार ने 1,65,265 वोटों से जीत हासिल करते हुए भाजपा को बड़ी शिकस्त दी थी। यदि पिछले तीन चुनावों की बात की जाए तो अजित पवार को मिलने वाले वोटों में लगातार इजाफा होता रहा है मगर इस बार उनकी सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है।
बारामती लोकसभा क्षेत्र में हाल में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को हराकर जीत हासिल की थी। बारामती क्षेत्र में शरद पवार की भी मजबूत पकड़ मानी जाती रही है।
भतीजे के खिलाफ आसान नहीं है चुनावी जंग
बारामती विधानसभा क्षेत्र में इस बार कुल 23 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं मगर मुकाबला पवार कुनबे के दो सदस्यों के बीच ही माना जा रहा है। चाचा-भतीजे के बीच हो रही इस जंग पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
अपने चाचा अजित पवार को चुनौती देने वाले 32 वर्षीय युगेंद्र महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार के पोते हैं और अजित पवार के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे हैं। युगेंद्र पवार परिवार के मुखिया एवं राकांपा (एसपी) प्रमुख शरद पवार के करीबी रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान सुप्रिया सुले की जीत में भी युगेंद्र पवार ने बड़ी भूमिका निभाई थी और अब वे उम्मीदवार के रूप में खुद अजित पवार को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
बारामती में अजित को देना पड़ रहा है समय
अजित पवार के ऊपर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में चुनाव प्रचार की बड़ी जिम्मेदारी भी है मगर उन्हें बारामती के लिए काफी वक्त देना पड़ रहा है। अजित पवार को भी इस बात की बखूबी जानकारी है कि बारामती में उनकी चुनावी हार की उनके लिए कितना बड़ा सियासी झटका साबित होगी। इसलिए उन्होंने पूरी ताकत लगा रखी है। हालांकि शरद पवार के खुद चुनाव प्रचार में उतर जाने के बाद उनकी सियासी राह आसान नहीं रह गई है।
शरद पवार के उतरने से मुश्किल हुई राह
लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने के बाद विधानसभा चुनाव अजित पवार के सियासी भविष्य के लिए काफी अहम माना जा रहा है। शरद पवार से बगावत करने के बाद उन्होंने शिंदे सरकार में शामिल होने का फैसला किया था मगर शरद पवार अब उन्हें खुद से बगावत का सबक सिखाना चाहते हैं।
यही कारण है कि बासमती की सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है। इस लड़ाई में पवार कुनबे का सदस्य ही जीतेगा मगर इस लड़ाई से बारामती में शरद पवार और अजित पवार दोनों की ताकत का मूल्यांकन जरूर किया जाएगा। अजित पवार की हार हुई तो उनके सियासी भविष्य पर सवालिया निशान जरूर लग जाएगा।