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'बापू' की हत्या में इस कार का हुआ था इस्तेमाल, जानें इसके बारें में सबकुछ...
आज 2 अक्टूबर है। पूरी दुनिया आज इस खास दिन को महात्मा गांधी (बापू) की 150 वीं जयंती के तौर पर मना रही है। इस मौके पर हम आपको गांधी जी की हत्या में इस्तेमाल की गई उस कार के बारे में बता रहे हैं।
लखनऊ: आज 2 अक्टूबर है। पूरी दुनिया आज इस खास दिन को महात्मा गांधी (बापू) की 150 वीं जयंती के तौर पर मना रही है। इस मौके पर हम आपको गांधी जी की हत्या में इस्तेमाल की गई उस कार के बारे में बता रहे हैं।
जिसका उपयोग करके नाथूराम गोडसे गांधी जी तक पहुंचा था और उन पर गोलियां बरसाई थी। जिसके बाद बापू की मौत हो गई थी। नाथूराम गोडसे ने हत्या में जिस कार का इस्तेमाल किया था वह 1930 में बनी अमेरिकी कार ‘स्टड बेकर’ थी।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार गोडसे के पकड़े जाने के बाद इस कार को जब्त कर लिया गया और बाद में 1978 में इसे नीलाम कर दिया गया था। अब यह कार दिल्ली के ही जावेद रहमान गैराज में अपना ठिकाना बनाए हुए है।
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हत्या में इस्तेमाल हुई ये कार
यह कार है 1930 में अमेरिका में बनी ‘स्टडबेकर’। जिसका नम्बर USF-73 है। ये कार एक लीटर में मात्र 4 किलोमीटर का सफर तय करती है।
महात्मा गांधी हत्याकांड से जुड़े दस्तावेजों के मुताबिक बापू की हत्या करने के लिए नाथू राम गोडसे इसी कार से बिड़ला हाउस पहुंचा था। गांधी जी की हत्या के बाद कार को दिल्ली के तुगलक रोड थाने की पुलिस ने जब्त कर लिया था।
कार के माथे पर लिखा है ‘किलर’
सन् 1978 में इस कार को एक शख्स ने नीलामी में खरीद लिया। उसके बाद हरे-काले दो रंगों वाली स्टडबेकर कार अपने माथे यानि नंबर प्लेट के ऊपर सफेद रंग से ‘किलर’ लिखवा कर एक मालिक से दूसरे मालिक के दरवाजे पर कई दशक तक (दिल्ली से दूर) इधर-उधर भटकती रही।
स्पेशल आर्डर पर बनवाई गई थी ये कार
सन् 1930 में यह कार जौनपुर के राजा के लिए अमेरिका में विशेष आग्रह पर बनवायी गई थी। गांधी की हत्या के आरोप में फांसी पर लटकाया गया नाथू राम विनायक गोडसे जौनपुर के इन्हीं महाराजा का करीबी माना जाता रहा था।
तमाम विंटेज कार रैलियों में भारी-भरकम इनाम-इकराम हासिल करने वाली ‘किलर’ कार ने कई जगह पत्थर भी खाये। जिस विंटेज कार रैली में किलर की हकीकत लोगों को पता चलती। वहीं उस पर पथराव हो जाता।
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राजघरानों की शान रही ‘किलर’ अब मालिक को मोहताज!
35 बीएचपी, 6 सिलेंडर और 3500 सीसी वाली पॉवरफुल ‘किलर’ कार अमेरिका से जौनपुर, दिल्ली से कोलकता, वाराणसी, लखनऊ, बरेली होती हुई सन् 2000 के दशक में फिर दिल्ली की सड़कों पर लौट आई। दिल्ली में किलर-कार का नया बसेरा बनी लक्ष्मी नगर (ललिता पार्क) में एक मुस्लिम परिवार की गैराज।
इस परिवार के एक होनहार युवक की नजर सन् 2000 में जब पहली बार ‘किलर’ पर पड़ी, तो वो खुद को रोक नहीं सका। परिणाम, बरेली के कमाल साहब से मुंह-मांगी रकम देकर उसने किलर खरीद ली। पुरानी कार और वो भी ‘किलर’ जैसी मशहूर (दुनिया भर में गांधी की हत्या में इस्तेमाल के लिए बदनाम) कार।
जब मौका मिला उस नौजवान मालिक ने दिल्ली की सड़कों पर जी-भर के किलर पर सवारी की। कुछ साल पहले एक दिन हिमाचल में छोटी उम्र में ही दिल का दौरा पड़ने से किलर के इस युवा मालिक की असमय मौत हो गई।
और फिर ब-रास्ते अमेरिका से भारत पहुंचकर यहां के तमाम राजा-महाराजाओं के घराने की कभी ‘शान’ रही ‘किलर’ आज फिर कई साल से सुनसान ‘गैराज’ में तन्हा खड़ी है। एक अदद उस मालिक के इंतजार में, जो उस पर सवारी करने से पहले उसके ऊपर जमी वर्षों पुरानी धूल-मिट्टी को हटाएगा।
उसी दिल्ली शहर (लक्ष्मी नगर ललिता पार्क इलाके में) की आज भीड़ भरी गलियों में, जिस दिल्ली शहर की वीरान (सन् 1930 और उसके बाद के कुछ साल) सड़कों पर उसने 70 साल पहले सफर तय करके उन्हें रौनक बख्श कर उन पर पसरा रहने वा वाला मातमी सन्नाटा दूर किया था।
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