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Maharashtra Election: मराठवाड़ा में महायुति के सामने कड़ी चुनौती, लोकसभा चुनाव में लगा था बड़ा झटका
Maharashtra Election: महाराष्ट विधानसभा चुनाव में मराठवाड़ा पर सब की नजरें टिकी है।
Maharashtra Election: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में मराठवाड़ा की 46 सीटों पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। मराठा आरक्षण का गढ़ रहे इस इलाके में सत्तारूढ़ महायुति की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है। जातीय ध्रुवीकरण से प्रभावित इस इलाके में ऊंट किस करवट बैठेगा, इस बारे में अभी अनुमान लगाना कठिन माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को मराठवाड़ा में करारा झटका लगा था और पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले मराठवाड़ा के दिग्गज नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी पार्टी को कोई सफलता नहीं दिला सके थे। ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव की कसक विधानसभा चुनाव में दूर करना चाहती है।
पिछले विधानसभा चुनाव का हाल
2019 के विधानसभा चुनाव के समय राज्य के सियासी हालात पूरी तरह अलग थे। उस समय भाजपा का अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन था। 2019 में भाजपा ने मराठवाड़ा की 16 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि शिवसेना को 12 सीटों पर कामयाबी मिली थी। कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी ने 8-8 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि अन्य को दो सीटों पर कामयाबी मिली थी।
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद मराठा आरक्षण की आवाज लगातार बुलंद होती रही है। मराठा आरक्षण आंदोलन के सूत्रधार मनोज जरांगे पाटिल ने इस मुद्दे को लगातार गरमाए रखा है। मराठा आरक्षण के मुद्दे पर पाटिल लगातार सत्तारूढ़ गठबंधन को घेरते रहे हैं। विशेष तौर पर वे भाजपा के वरिष्ठ नेता और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते रहे हैं। ऐसे में मराठवाड़ा इलाके में भाजपा के प्रदर्शन पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
लोकसभा चुनाव में नहीं खुला था भाजपा का खाता
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता पाटिल के आह्वान की वजह से लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को करारा झटका लगा था और पार्टी मराठवाड़ा इलाके में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। पार्टी के कई दिग्गज उम्मीदवार भी लोकसभा चुनाव में ढेर हो गए थे। हालात यह हो गई थी कि भाजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। कांग्रेस से भाजपा में आने वाले दिग्गज नेता अशोक चव्हाण भी पार्टी की नैया पार नहीं लगा सके थे।
चव्हाण की इस इलाके में मजबूत पकड़ मानी जाती रही है मगर वे भी भाजपा की मदद करने में नाकाम साबित हुए थे। इस क्षेत्र की आठ लोकसभा सीटों में से तीन पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट भी तीन सीटें जीतने में कामयाब हुआ था। शरद पवार की एनसीपी और शिवसेना के शिंदे गुट को एक-एक सीट पर जीत मिली थी जबकि भाजपा का खाता नहीं खुल सका था।
सात सीटों पर जीते थे मराठा उम्मीदवार
लोकसभा चुनाव के दौरान मराठा आरक्षण आंदोलन का खासा असर दिखा था और सात सीटों पर जीत हासिल करने वाले उम्मीदवार मराठा थे। आठवीं लातूर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां भी कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत का परचम लहराया था। जातीय ध्रुवीकरण ने इतना जबर्दस्त असर दिखाया था कि छत्रपति संभाजी महाराज नगर से मतदाताओं ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना के ओबीसी उम्मीदवार चंद्रकांत खैरे को हराकर शिवसेना (शिंदे) के मराठा उम्मीदवार संदीपन भुमरे को जीत दिलाई। इससे समझा जा सकता है कि मराठा आरक्षण आंदोलन ने कितना बड़ा असर दिखाया है।
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता पाटिल की एक घोषणा ने भी महायुति की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। पाटिल ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर रखा है। यदि अपनी घोषणा के अनुरूप उन्होंने उम्मीदवार उतारे तो मराठा समीकरण और प्रभावी दिख सकता है।
ओबीसी मतदाता भी कर सकते हैं बड़ा खेल
वैसे मराठवाड़ा में एक दूसरा समीकरण भी दिख रहा है जिसकी परीक्षा विधानसभा चुनाव में होनी है। दरअसल मराठों का बड़ा केंद्र होने के साथ ही यह इलाका वंचितों और ओबीसी मतदाताओं का भी बड़ा गढ़ माना जाता रहा है। पिछड़ा वर्ग आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 28 फ़ीसदी और ओबीसी मतदाताओं की आबादी करीब 52 फ़ीसदी है।
भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे को मराठवाड़ा इलाके का बड़ा ओबीसी नेता माना जाता था। उनके निधन के बाद उनकी विरासत उनकी बेटी पंकजा मुंडे ने संभाल रखी है। अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के महायुति में शामिल होने के बाद उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे भी सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ आ चुके हैं। ऐसे में ओबीसी मतदाताओं का समीकरण भी मराठवाड़ा के इलाके में बड़ा असर दिखा सकता है।
आरक्षण में सेंधमारी नहीं चाहते ओबीसी मतदाता
पाटिल के मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से ओबीसी मतदाताओं में बेचैनी दिखती रही है। ओबीसी मतदाता अपने आरक्षण कोटे में किसी और की सेंधमारी नहीं देखना चाहते। मराठा आरक्षण आंदोलन की वजह से मराठा और ओबीसी समुदाय के बीच दूरियां काफी बढ़ गई हैं। गांवों में दोनों समुदायों के बीच दरार साफ तौर पर देखी जा सकती है।
ऐसे में विधानसभा चुनाव के दौरान ओबीसी मतदाताओं के ध्रुवीकरण की संभावना भी जताई जा रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि यह ध्रुवीकरण किस गठबंधन को फायदा पहुंचाने वाला साबित होता है। मराठों और ओबीसी मतदाताओं के ध्रुवीकरण का मराठवाड़ा की विधानसभा सीटों पर बड़ा असर पड़ना तय माना जा रहा है।